प्रारम्भिक केन्द्र मेदपाट (मेवाड़)
चित्रकला के ग्रंथ 1060 ई. के ओध नियुक्ति वृति और दस वैकालिका सूत्र
राजस्थान का प्रथम ग्रन्थ 1260 ई. में श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र
राजस्थान का दूसरा ग्रन्थ 1397-1433 ई. में सुपार्श्वनाथ चरितम
राजस्थानी चित्रकला का स्वर्णकाल 17वीं और 18वीं शताब्दीं का प्रारम्भिक काल
आन्नद कुमार स्वामी ने 1916 ई. में राजपुत पेंटिग नामक पुस्तक में किया था।
मेवाड़ शैली – चावण्ड़, उदयपुर, नाथद्वारा, देवगढ़
मारवाड़ शैली – जोधपुर, बीकानेर, किशनगढ़, जैसलमेर, पाली नागौर, घाणेराव
हाड़ौती शैली – कोटा, बूंदी
ढूँढाड़ शैली – आमेर, जयपुर, अलवर, उणियारा, शेखावटी
राजस्थान की सबसे प्राचीन व मूल शैली
इस शैली का विकास महाराणा कुम्भा ने
मेवाड़ शैली का स्वर्णकाल महाराणा जगतसिंह प्रथम के शासन काल (1628-1652 ई.) को
मुगलों का प्रभाव महाराणा अमरसिंह के शासनकाल (1597-1620 ई.) में
16वीं सदीं के अन्त में महाराणा प्रताप ने
चावण्ड़ शैली का स्वर्णकाल अमरसिंह का शासन काल
प्रसिद्ध कृति ढोला मारू (1592 ई.)
चावण्ड शैली में 1648 ई. में भागवत पुराण का चित्रण
चावण्ड शैली में 1649 ई. में रामायण का चित्रण
महाराणा राजसिंह के समय में 1672 ई.
श्रीनाथ जी मूर्ति स्थापना के साथ ही इस शैली का विकास
इस शैली का उद्भव उदयपुर एवं ब्रज शैली के समन्वय
1680 ई. में महाराणा जयसिंह ने
इस शैली को प्रकाश में लाने का श्रेय श्रीधर अंधारे
मारवाड़, ढूँढाड़ व मेवाड़ की समन्वित शैली
रंग का प्रयोग- हरा और पीला
चित्रण- भित्ति चित्र, मोती महल शिकार, कृष्ण की लीला
मालदेव के शासनकाल 1531-62 ई. में
मुगल प्रभाव- मोटाराजा उदयसिंह के समय
मारवाडी साहित्य के प्रेमाख्यान पर आधारित
नाथ सम्प्रदाय से प्रभावित 19वीं सदीं में
प्रसिद्ध कृति- बणी-ठणी 1755-57 ई.
स्वर्ण काल सांवत सिंह (1699-1764 ई.) में
मुगल प्रभाव- किशनसिंह के समय
लोकप्रिय बनाने का श्रेय एरिक डिक्सन और फैयास अली को
प्रसिद्ध कृति- मूमल
संरक्षक- महारावल हरराज, अखेसिंह व मूलराज ने
इस शैली में मुगल और जोधपुरी शैली का प्रभाव नही पड़ा
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