मन्दिर स्थापत्य कला में राजस्थान का विशेष महत्व है यहां मन्दिरों के विकास का काल सातवीं से दसवीं शताब्दी के मध्य रहा है। हांलाकि राजस्थान में मौर्यकाल से ही मन्दिरों के साक्ष्य मिलना प्रारम्भ हो गये थे।
राजस्थान में मन्दिरों के विकास का काल क्रम-
मौर्य काल से गुप्त काल के प्रारम्भ तक (लगभग 300 ई. पूर्व से 300 ई. तक)
- बैराठ (जयपुर)- यहां से मौर्यकालीन एक गोल बौद्ध मन्दिर (चैत्य) के अवशेष मिले है, जो भारत के प्राप्त मन्दिर अवशेषों में प्राचीनतम है।
- नगरी (चित्तौड़गढ़)- यहां बैराठ के बाद दूसरे स्थान पर मौर्यकालीन बिना छत वाले (खुले) वैष्णव मन्दिर के अवशेष मिले है।
- ऐसा ही एक उदाहरण भरतपुर के पास नोह के ‘‘जाखबाबा‘‘ के रूप में मिला था।
- नांद (पुष्कर)- यहां से कुषाण कालीन चतुर्भुज शिवलिंग की मूर्ति प्राप्त हुई।
- प्रारम्भिक गुप्त मन्दिर सपाट छत वाले मन्दिर थे।
- दर्रा का शिव मन्दिर- कोटा (लगभग 400-425 ई.)
- चारमौसा का शिवालय- कोटा (लगभग 500 ई.)
- शीतलेश्वर महादेव मन्दिर- झालावाड़ (यह राजस्थान का पहला तिथियुक्त मन्दिर 689 ई.) है जो निश्चित ज्ञात है।
- कन्सुआ का शिव मन्दिर- कोटा (739 ई.)
गुर्जर प्रतिहार काल या महामारू शैली के मन्दिर (लगभग 700 ई. से 1000 ई. तक)
- लगभग 8वीं शताब्दी से राजस्थान में जिस क्षेत्रीय शैली का विकास हुआ उसे गुर्जर प्रतिहार अथवा महामारू कहा गया है।
- ओसियां का सूर्य मन्दिर, जोधपुर- 8वीं सदी में निर्मित
- कालिया माता (मूलतः सूर्य मन्दिर, चित्तौड़गढ़)- 8वीं सदी
- कुम्भश्याम मन्दिर, चित्तौड़गढ़- 8वी सदीं
- दधिमाता, गोठ-मांगलोद, नागौर- 850 ई.
- नकटी माता, भवानीपुरा, जयपुर- 875 ई.
- मगरमण्डी माता, निजाम, पाली- 900 ई.
- नीलकण्ठेश्वर मन्दिर, पाली- 950 ई.
- कैकीन्द नाथ का मन्दिर/जसनगर- पाली 950 ई.
- नीलकण्ठेश्वर महादेव- पारानगर, अलवर
- हर्षनाथ का मन्दिर- रैवासा, सीकर
- अम्बिका माता का मन्दिर- जगत, उदयपुर 975 ई.
- सोमेश्वर मन्दिर किराडू, बाड़मेर- 1016 ई.
- यह गुर्जर प्रतिहार शैली का अन्तिम व सबसे भव्य मन्दिर है।
राजस्थान में भूमिज शैली के मन्दिर-
- मन्दिर स्थापत्य के चरमोत्कर्ष काल में मध्यप्रदेश और उत्तरी महाराष्ट्र में मन्दिर निर्माण की उत्तरी भारतीय अथवा नागर शैली के अंतर्गत एक विशिष्ट उपशैली का विकास हुआ जिसे भूमिज शैली का नाम दिया गया।
- मेवाड़ी का जैन मन्दिर (1010-20 ई.)- पाली
- यह भूमिज शैली का सबसे प्राचीन मन्दिर है।
- महानालेश्वर मन्दिर (लगभग 1075 ई.)-
- मैनाल, चित्तौड़गढ़ यह पंचरथ व पंचभूम मन्दिर है।
- भण्ड़देवरा मन्दिर (लगभग 1125 ई.)- रामगढ, बारां
- उण्ड़ेश्वर मन्दिर (लगभग 1125 ई.)- बिजोलिया, भीलवाड़ा
- सूर्य मन्दिर- झालावाड़
- अद्भूत नाथ मन्दिर- चित्तौड़गढ़
अन्य प्रमुख मन्दिर-
त्रिपुरा सुन्दरी का मन्दिर-
- बांसवाड़ा से 19km दूर उमराई गांव में स्थित है जहां माता की पंचाल समाज के लोगों द्वारा पूजा की जाती है। इसे तुरतई माता भी कहा जाता है।
एकलिंग जी का मन्दिर (चतुर्मुखी प्रतिमा)- उदयपुर
- एकलिंग जी का लकुलिश मन्दिर मेवाड़ के महाराणाओं का कुलदेवता (इण्टदेव) है जो उदयपुर के समीप कैलाशपुरी गांव में बना हुआ है।
- इस मन्दिर का निर्माण 8वीं सदीं में मेवाड़ के गुहिल शासक बप्पा रावल ने करवाया था। लेकिन वर्तमान स्वरूप महाराणा रायमल ने दिया था यहां शिवरात्री को प्रतिवर्ष मेला आयोजित होता है।
विष्णु मंदिर- उदयपुर
- इस मन्दिर का निर्माण महाराणा कुम्भा ने एकलिंग जी के समीप करवाया था जिसे ‘‘मीराबाई‘‘ का मन्दिर कहा जाता है।
जगदीश मन्दिर – उदयपुर
- इस मंदिर का निर्माण 1651 ई. महाराणा जगतसिंह ने करवाया था इसमें भगवान जगदीश (विष्णु) की काले पत्थर से निर्मित पांच फीट ऊंची प्रतिमा स्थापित है यह मन्दिर पंचायतन शैली का बना हुआ है। इसे सपने में बना मन्दिर भी कहा जाता है।
सास बहु का मन्दिर – नागदा, उदयपुर
- सास बहु के मन्दिर में बडा मन्दिर सास का है जो 10 सहायक देवताओं से घिरा हुआ है जबकि छोटा मन्दिर बहु का है।
नोट- देवरानी-जेठानी का मन्दिर- माउण्ट आबू, सिरोही
अम्बिका देवी का मन्दिर – जगत, उदयपुर
- इस मंदिर में नृत्य करते हुए गणेश जी की मूर्ति स्थापित है इस मन्दिर को मेवाड़ का खजुराहो कहते है।
राजस्थान का एकमात्र बाजना गणेशजी का मन्दिर माउण्ट आबू, सिरोही।
राजस्थान का एकमात्र खड़े गणेशजी का मन्दिर- कोटा
मोतीडूंगरी गणेशजी- जयपुर
गणेश मंदिर – रणथम्भौर (सवाई माधोपुर)
- इस त्रिनेत्र गणेश जी के मन्दिर में केवल गणेश जी के मुख की पूजा की जाती है गर्दन, हाथ, शरीर, आयुध व अन्य अवयव इस प्रतिमा में नहीं है।
कैलादेवी का मंदिर – करौली
- इस यादव वंश की कुल देवी का मंदिर संगमरमर से बना हुआ है जिसमें कैलादेवी एवं चामुण्डा देवी की प्रतिमा स्थापित है जहां प्रतिवर्ष लगने वाले मेलंे को लख्खी मेला कहते है इस देवी को प्रसन्न करने के लिए जो भजन गाये जाते है उन्हें लांगुरिया गीत कहते है।
किराडू का मन्दिर – बाड़मेर
- यहां के बने इन प्राचीन मन्दिरों में वीररस, श्रृंगार रस, युद्ध, नृत्य तथा कामशास्त्र की भावभंगिमा युक्त मूर्तियां बनी हुई है इस कारण किराडू को राजस्थान का खजुराहों कहा जाता है।
राजस्थान का मिनी खजुराहो- भण्ड़देवरा, बारां
जगत शिरोमणी का मन्दिर – आमेर, जयपुर
- इस मन्दिर का निर्माण कछवाह शासक मानसिंह की पत्नि कंकावती ने अपने पुत्र जगतसिंह की याद में करवाया था।
श्रीनाथ जी का मन्दिर- नाथद्वारा (राजसमंद)
- यह वल्लभ सम्प्रदाय के पुष्टि मार्गीय वैष्णवों का प्रमुख तीर्थस्थल है यहां कृष्ण के बालरूप की उपासना की जाती है।
- महाराणा राजसिंह के समय 1672 ई. में श्री नाथजी की मूर्ति सिहाड़ नाथद्वारा में स्थापित की गई थी।
- यहां अष्टछाप कवियों के पद गाये जाते हैं जिन्हें हवेली संगीत कहा जाता है।
- श्रीनाथ की प्रतिभा के पीछे पर्दे पर कृष्ण की लीलाओं का चित्रण किया जाता है जिसे पिछवाई कहते है।
सच्यिया माता का मन्दिर- ओसिया, जोधपुर
- 12वीं सदीं के इस पंचायतन शैली के मन्दिर के कोणों पर विष्णु, शिव व सूर्य के मन्दिर बने हुए है।
दिलवाड़ा का जैन मन्दिर- माउण्ट आबू, सिरोही
- यहां के स्थित जैन मन्दिरों में दो प्रमुख मन्दिर है।
विमलशाह का मन्दिर-
- इस मन्दिर का निर्माण 1031 ई. में गुजरात के चालुक्य वंश के राजा भीमदेव के मंत्री विमलशाह ने बनवाया था जो प्रथम जैन तीर्थकर ऋषभदेव को समर्पित है।
लूणवसही का मंदिर-
- यह जैनधर्म के 22वें तीर्थकर नेमीनाथ का मन्दिर है जिसका निर्माण 1230 ई. में वास्तुपाल व तेजपाल ने करवाया था।
रणकपुर का जैन मन्दिर – पाली
- इस मन्दिर का निर्माण महाराणा कुुम्भा के शासन काल (1433-68 ई.) में धरणशाह नामक एक जैन व्यापारी ने प्रसिद्ध शिल्पकार देपाक से करवाया था।
- यह मन्दिर 1444 खम्भों पर टिका हुआ है। इसलिए इसे खम्भों का अजायबघर कहा जाता है।
- इस मन्दिर के मूलगर्म में आदिनाथ की चार मुख वाली मूर्ति लगी हुई है, इस कारण इसे चौमुखा मन्दिर भी कहा जाता है।
शिव मन्दिर- बाड़ोली, चितौड़गढ़
- इस मन्दिर का निर्माण हूण शासक तोरमाण के पुत्र मिहिरकुल के द्वारा करवाया गया बताया है इस मंदिर को प्रकाश में लाने पर श्रेय कर्नल जेम्स टॉड को दिया जाता है।
शिव मन्दिर – भण्ड़देवरा, बारां
- इस मन्दिर का निर्माण 10वीं शताब्दीं में मेदवंशीय राजा मलय वर्मा ने करवाया था।
- यह हाड़ौती का खजुराहो कहलाता है।
शिलादेवी का मंदिर – आमेर, जयपुर
- इस मन्दिर का निर्माण 1589-1614 ई. दौरान कछवाह शासक सवाई मानसिंह ने करवाया था इस देवी की मूर्ति सवाई मानसिंह I ने बंगाल के राजा केदार से जीत कर आमेर में स्थापित करवाई थी।
गोविन्द देवजी का मन्दिर- जयपुर
- यह गौड़ीय सम्प्रदाय का प्रमुख मन्दिर है जिसे गौड़ीय सम्प्रदाय के द्वारा राधाकृष्ण के रूप में पूजा जाता है
- गोविन्द देवजी की मूर्ति सवाई जयसिंह के द्वारा वृन्दावन से लाकर जयपुर में स्थापित करवाई गई थी
हर्षनाथ मन्दिर – सीकर
- इस मन्दिर का निर्माण 956 ई. में अजमेर के चौहान शासक विग्रहराज चतुर्थ के शासनकाल में हुआ था
गलताजी- जयपुर
- यहां गालव ऋषि की तपोभूमि थी जिस कारण इसे गलता कहा जाने लगा। यहां बदंरो की संख्या अधिक होने के कारण इसे मंकी वैली भी कहा जाता है।
- गलता पीठ के संस्थापक कृष्णदास पयहारी थे।
वराह मन्दिर – पुष्कर, अजमेर
- इस मन्दिर का निर्माण पृथ्वीराज चौहान के पितामह अर्णोराज ने करवाया था।
ब्रह्मा जी का मन्दिर – पुष्कर, अजमेर
- यह राजस्थान के प्राचीनतम मंदिरों में से एक है जहां चतुमुर्खी ब्रह्माजी की मूर्ति स्थापित है।
- ब्रह्याजी के मन्दिर का निर्माण 1809 ई. में गोकुलचन्द पारीक ने करवाया था।
- ब्रह्याजी का वाहन हंस है।
ब्रह्मा जी मंन्दिर – आसोतरा, बाड़मेर
छींछ के ब्रह्मा जी का मन्दिर- बाँसवाड़ा
ऋषभदेव का मन्दिर – धुलैव, उदयपुर
- ऋषभदेव के इस प्राचीन जैन मन्दिर में बनी मूर्ति पर केसर चढ़ाई जाती है जिसके कारण इनको केसरिया नाथजी भी कहते है काले पत्थर की मूर्ति होने के कारण इस क्षेत्र के भील इन्हें कालाजी कहते है।
द्वारकाधीश मन्दिर – कांकरोली, राजसमंद
- नाथद्वारा से 16 किमी. दूर कांकरोली में वल्लभ सम्प्रदाय का द्वारकाधीश मन्दिर स्थित है। 1669 ई. मंे औरंगजेब के आंतक से भयभीत वल्लभ सम्प्रदाय के पुजारियों को मेवाड़ के महाराणा राजसिंह ने शरण दी थी।
चारभूजा नाथ का मन्दिर – राजसमंद
- यह मेवाड़ के प्राचीनतम मन्दिरों में से एक है, जो राजसमंद के गढ़बोर गांव में स्थित है, इसे मेवाड़ का बद्रीनाथ भी कहते है।
सांवलिया जी का मन्दिर – मण्ड़पिया गांव, चितौड़गढ़
- यहां काले पत्थर की श्रीकृष्ण की मूर्ति स्थापित है।
मूंछला महावीर का मन्दिर – घाणेराव, पाली
- यह पूरे भारत में एक मात्र मन्दिर है, जहां मूंछो वाले महावीर स्वामी की मूर्ति स्थापित है।
दाढी-मूंछ वाले हनुमान जी का मन्दिर – सालासर, चूरू
- मोहनदास किसान ने यह मन्दिर दो मुस्लिम कारीगरों मुर्रा व दाउद के सहयोग से बनवाया था। मोहनदास किसान ने यहां जीवित समाधि ली थी।
विभीषण का मन्दिर – कैथून, कोटा
- यह विश्वभर में एक मात्र विभीषण का मन्दिर है।
मातृकुण्ड़िया- राश्मी चितौड़गढ़
- यह राजस्थान का हरिद्वार कहलाता है यहां पर स्थित जलाशय कुण्ड़ में मृत व्यक्ति की अस्थ्यिां विसर्जित की जाती है।
ब्रह्माणी माता का मन्दिर – सोरसेन, बारां
- यह सम्पूर्ण भारत का एक मात्र मन्दिर है जिसमें देवी की पीठ की पूजा की जाती है।
शीतला माता का मन्दिर – चाकसू, जयपुर
- यह राजस्थान की एक मात्र देवी है, जो खण्डित रूप से पूजी जाती है।
वेणेश्वरघाम – नवाटापुरा डूंगरपुर
- यह सम्पूर्ण भारत का एक मात्र मन्दिर है जहां खण्डित शिवलिंग की पूजा की जाती है।
- यहां पर प्रतिवर्ष माघ शुक्ल एकादशी से माघ शुक्ल पूर्णिमा तक मेलें का आयोजन किया जाता है।
गवरी बाई का मन्दिर – डूंगरपुर
- इस मन्दिर का निर्माण शिवसिंह ने करवाया था इसी गवरी बाई को वागड़ की मीरा कहते है।
भांड़ाशाह/त्रिलोक प्रसाद का मन्दिर – बीकानेर
- इस मन्दिर की नींव में सैकडों मन देसी घी डाला गया था। जिसकी खुशबु आज भी महकती है।
लक्ष्मण मन्दिर- भरतपुर
- यह भारत का एक मात्र मंदिर है जिसके मंदिर का निर्माण महाराजा बलदेव सिंह ने करवाया था।
कपिल मुनि का मन्दिर- कोलायत, बीकानेर
- यह सांख्य दर्शन के प्रणेता का तीर्थ स्थल है जहां प्रतिवर्ष कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष को मेला आयोजित किया जाता है।
आलमजी का मंदिर- धोरीमन्ना, बाड़मेर
- धोरी मन्ना को आलम का धोरा एवं घोडी का तीर्थस्थल कहा जाता है यहां भाद्रपद में शुक्लपक्ष द्वितीया को मेला आयोजित किया जाता है।
महामन्दिर- जोधपुर
- यह 84 खम्भों पर निर्मित है जिसका निर्माण 1872 ई. में जोधपुर के महाराजा मानसिंह ने करवाया था।
अन्य मन्दिर –
कुंजबिहारी का मंदिर | जोधपुर |
सुगालीमाता | आउवा, पाली |
जीणमाता | रैवासा सीकर |
काला-गोरा का भैरव मन्दिर | सवाई माधोपुर |
भैरव मन्दिर | कोड़मदेसर, बीकानेर |
करणीमाता | देशनोक |
धूणी के रणछोरजी | बांसवाड़ा |
नन्दनी माता तीर्थ | बड़ोदिया, बांसवाड़ा |
पाड़ा माता | डीडवाना |
गुसाई मन्दिर | नागौर |
मीराबाई | मेड़ता |
कनक वृदांवन का मन्दिर | जयपुर |
रणछोड़ जी का मन्दिर | जोधपुर |
घनश्याम जी मन्दिर | जोधपुर |
बंशी वाले का मन्दिर | नागौर |
रानी सती का मन्दिर | झुंझुनू |
रंगनाथजी का मन्दिर | अजमेर |
सावित्री मन्दिर | पुष्कर, अजमेर |
वराह मन्दिर | अजमेर |
वराह श्याम मन्दिर | भीनमाल |
कल्याण जी | ड़िग्गी, टोंक |
ताड़केश्वर मन्दिर | जयपुर |
दाढ़ी-मुंछ वाले हनुमान जी का मन्दिर | सालासर, चूरू |
गेपरनाथ महादेव का शिवालय | कोटा |
नागणेची मन्दिर | बीकानेर |
बिहारी मन्दिर आमेर | जयपुर |
अर्थूणा का जैन मन्दिर | बांसवाडा |
कुंवारी कन्या का मन्दिर | माउण्ट आबू |
आशापुरी माता | जालौर (सौनगरा चौहानों की कुलदेवी) |
सोमनाथ का मन्दिर | पाली |
अम्बिका देवी | माउण्ट आबू, सिरोही |
नेमीनाथ/देवरानी-जेठानी का मन्दिर | माउण्ट आबू |
आदिनाथ का मन्दिर | माउण्ट आबू, सिरोही |
द्वारिकाधीश मन्दिर | कांकरोली राजसमंद |
मुथरेशजी का मन्दिर | कोटा |
पिप्पलाद माता हल्दीघाटी | राजसमंद |
स्वर्ण मन्दिर (मिनी मुम्बई) | फालना, पाली |
कुशाल माता | बदनौर, भीलवाडा |
नारायणी माता | राजगढ, अलवर |
सुन्धा माता | जालौर |
संत मावजी का मन्दिर | साबला गांव, डूंगरपुर |
त्रिपुरा सुन्दरी | तलवाडा, बांसवाडा |
मदन मोहन जी | करौली |
रंगनाथ जी | अजमेर |
छींछ का ब्रह्माजी मन्दिर | बांसवाडा |
सवाई भोज मन्दिर | आसींद, भीलवाड़ा |
चामुण्ड़ा देवी | जोधपुर |
केसरिया नाथ जी मन्दिर | ऋषभदेव, उदयपुर |
सोनीजी की नसियां | अजमेर |
रावण का मन्दिर | जोधपुर |
ओम बन्ना राठौड का मन्दिर | चौटिलागांव, पाली |
33 करोड देवी-देवताओं का मन्दिर | मंडोर, जोधपुर |
घोटिया अंबा | बाँसवाडा |
नीलकण्ठ महादेव का मन्दिर | अलवर |
सात सहेलियों का मन्दिर | झालावाड |
सूर्य मन्दिर | झालारापाटन, झालावाड |
वीर हुनमान मन्दिर | सामोद, जयपुर |
महावीर जी | करौली |
काकूनी मन्दिर | कोटा |
कुंभाश्याम का मन्दिर | चित्तौडगढ़ |
नौ ग्रहो का मन्दिर | किशनगढ, अजमेर |
नोट- अम्बिका देवी – इस मन्दिर के तलहटी मे दुध बावडी ऐतिहासिक स्थल है