राजस्थान की रियासतों एवं ठिकानों से अत्यधिक लाग-बाग, बेगार के विरोध मे आन्दोलन प्रारम्भ हुये-
बिजौलिया किसान आन्दोलन- 1897 से 1941 तक (44 वर्षाे तक)
- बिजौलिया वर्तमान मे भीलवाडा जिले मे स्थित है
- यहां के जागीरदार रावजी कहलाते थे यह मेवाड रियासत का प्रथम श्रेणी का ठिकाना था।
- यहां मुख्यतः धाकड, भील, कराड, लुहार, सुधार, सिलावट राव चारण, बाह्यण, साधु, बैरागी आदि जाति के लोग बसे हुये थे। अतः अधिकाशं किसान धाकड जाति के थे।
- बिजौलिया ठिकाने का संस्थापक अशोक परमार था जो मूलतः भरतपुर के जगनेर का था जिन्होंने खानवा के युद्ध मे राणा सांगा की तरफ से लडते हुए वीरता का परिचय दिया था जिसके उपहार स्वरूप अशोक परमार को ऊपरमाल की जागीर प्रदान की गई थी।
- राव केशवदास को मराठों के विरूद्ध यहां की धाकड जाति ने मराठों से बिजोलिया मुक्त करवाने मे सहयोग किया था अर्थात राव गोविन्द दास तक के किसानों को जागीरदारो से कोई शिकायत नही थी।
- गोविन्ददास की मृत्यु के बाद 1894 ई. में राव कृष्ण दास जागीरदार बना और बिजोलिया के किसानों पर 84 प्रकार के कर लगा दिये। जिससे यहां के किसानों जागीरदार के प्रति असन्तोष उत्पन्न हो गया।
- बिजोलिया किसान आन्दोलन तीन चरणों में हुआ-
- प्रथम चरण 1897 – 1915
- दूसरा चरण 1915 – 1923
- तीसरा चरण 1923 – 1941
प्रथम चरण (1897 – 1915)
- 1897 मे बिजौलिया के किसान गंगाराम धाकड के मृत्युभोज अवसर गिरधारी पुरा गांव मे एकत्रित हुए और उन्होने जागीरदार के इस अत्याचार एवं शोषण के सम्बन्ध विचार विमर्श किया।
- इस अत्याचार व शोषण की शिकायत यहां के महाराणा फतहसिंह से करने के लिए नानजी और ठाकरी पटेल को उदयपुर भेजा
- महाराणा ने बिजौलिया की रिपोर्ट के लिए राजस्व अधिकारी हामिद हुसैन को भेजा जिसकी रिपोर्ट सही पाई गई लेकिन महाराणा ने कोई कार्यवाही नही की जिससे कृष्णसिंह का हौसला ओर बढ गया और नानजी एवं ठाकरी पटेल को बिजौलिया से निर्वासित कर दिया
- रावकृष्ण ने इस समय कूटनीति के द्वारा किसानों की एकता को कमजोर बनाने का मार्ग निकाला
- 1899-1900 (छप्पनियां अकाल) के दौरान किसानों को अपनी ओर अग्रसर करने के लिए अनाज की सहायता देकर कुछ प्रमुख पटेलू को अपना बनाकर अन्य किसानों से पृथक कर दिया।
- 1903 ई. में उसने चंवरी कर (पांच रूपये) के नाम से एक लागत ओर बढा दी जिसके तहत प्रत्येक व्यक्ति को ठिकाने को देना पडता था।
- जिसमे किसान तंग आकर बिजौलिया से पलायन प्रारम्भ कर दिये। फिर कृष्णसिंह ने किसानों से समझौता कर चंवरी का 1/2 कर दिया जो यह किसानों की असहयोग एवं अहिंसात्मक तरीके से पहली विजय थी।
- 1906 ई. में राव कृष्ण की मृत्यु हो गई।
- 1906 ई. में पृथ्वी सिंह बिजौलिया का जागीरदार बना जिसने तलवार बन्दी नाम से एक कर ओर बढा दिया पुराने करो में वृद्धि कर दी गन्ने का लगान दुगुना कर दिया।
- Note:- मेवाड रियासत की परम्परा के अनुसार पृथ्वीसिंह का उत्तराधिकारी कर तलवार बधाई देना था तो पृथ्वी सिंह ने बिजौलिया की जनता पर एक नया कर तलवार बधाई ओर बढा दिया।
- 1913 मे साधु सीताराम दास, बृह्यदेव तथा फतहकरण के नेतृत्व मे लगभग सैकडों किसान मिलने गये जिसे जागीरदार पृथ्वीसिंह ने नजर अंदाज कर दिया।
- 1914 मे पृथ्वीसिंह मृत्यु हो गई उसके बाद उसका पुत्र केसरीसिंह अल्पव्यस्क होने के कारण प्रशासन महाराणा के नियंत्रण मे चला गया और राणा ने अमरसिंह राणावत को ठिकाने का प्रशासक नियुक्त किया जिसने किसानों के लगान (तकी, हल्का, पूला) को घटाकर अन्य 2/5 से 1/3 कर दिया।
दूसरा चरण 1915-23
- 1915 ई. साधु सीतारामदास के आग्रह पर विजयसिंह पथिक ने 1916 मे बिजौलिया किसान आन्दोलन का नेतृत्व किया
- विजयसिंह पथिक का वास्तविक नाम भूपसिंह गुर्जर था जो बुलन्द शहर U.P. का रहने वाला था जो एक प्रसिद्ध क्रांतिकारी था।
- पथिक में बिजौलिया में विधा प्रचारिणी सभा का गठन किया जिसके माध्यम से किसानों से सम्पर्क किया।
- पथिक की प्रेरणा से माणिक्य लाल वर्मा भी साथ हो गया पथिक ने साधु सीताराम दास एवं माणिक्य लाल वर्मा के सहयोग से संगठित कर विजय सिंह पथिक ने 1917 में हरियाली अमावस्य के दिन बिजौलिया मे ऊपरमाल पंच बोर्ड की स्थापना की जिसका सरपंच श्री मन्ना पटेल को बनाया गया
- 1916 ई. मे जागीरदार ने 10 रूपये प्रति हल के हिसाब से प्रथम विश्व युद्ध का चन्दा वसुलना शुरू किया जिसका पथिक के नेतृत्व मे किसानों ने विरोध किया
- मेवाड सरकार ने स्थिती को नियन्त्रित करने के लिए अप्रेल 1919 मे किसानों की शिकायतों की जांच करने के लिए ठाकुर अमरसिंह न्यायाधीश अफजल अली का एक जांच आयोग गठित किया गया लेकिन कोई सार नही निकला।
- पथिक ने कानपुर से प्रकाशित होने वाले गणेश शंकर विद्यार्थी के समाचार पत्र प्रताप से इस आन्दोलन को देशव्यापी बनाया
- प्रयाग से अभ्यूदयः, कोलकत्ता से भारतमित्र तथा पूना से तिलक के पत्र मराठा मे भी इस आन्दोलन की चर्चा होने लगी
- 1919 मे पथिक वर्धा से रायनारायण चौधरी से मिलकर राज. केसरी नामक समाचार पत्र निकला
- 1920 ई. मे कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन मे पथिक ने बिजौलिया के तीन किसानों फालूजी, नन्दराम जी तथा गोकुलजी को नागपुर बुलाया तथा अधिवेशन मे गांधी से भेंट कर आन्दोलन की सफलता का आशीर्वाद लिया।
- 1921 मे बिजौलिया किसान आन्दोलन अपनी चरम सीमा पर था इसी समय मेवाड मे मोतीलाल तेजावत के नेतृत्व मे एकी आन्दोलन शुरू हो गया था। जिससे राज्य मे अशान्ति फैल चुकी थी।
- मेवाड के ब्रिटिश रेजीडेंट विल्किंसन ने अपनी रिपोर्ट मे ब्रिटिश सरकार को मेवाड की स्थिति से अवगत करवाया।
- ब्रिटिश सरकार ने आन्दोलन को शान्त करने के लिए ए.जी.जी. हॉलैण्ड के नेतृत्व मे समिति का गठन कर 4 फरवरी 1922 को बिजौलिया पहुंचे।
- अन्त मे हॉलैण्ड के प्रयत्नो से जागीरदार और किसानों के मध्य 11 फरवरी 1922 को समझौता हो गया।
तीसरा चरण 1923-1941
- 1923 -26 तक अनावृष्टि के कारण फसले नष्ट हो गई इसी समय मई 1927 मे पथिक व रामनारायरण चौधरी के मध्य मतभेद हो गया। जिससे दुःखी होकर पथिक ने किसान आन्दोलन छोड दिया।
- 1927 मे माणिक्य वर्मा के आग्रह पर जमनालाल बजाज ने आन्दोलन का नेतृत्व किया तथा संचालन हरिभाऊ उपाध्याय को सौपा गया।
- अन्त मे उपाध्याय माणिक्य लाल वर्मा, प्रधानमंत्री सुखदेव प्रसाद अंग्रेज ट्रैन्च एवं 1941 मे प्रधानमंत्री टी. विजय राहावाचार्य के निर्देश पर तत्कालीन राजस्व मंत्री मोहन सिंह मेहता के माध्यम से किसानों को उनकी जमीन वापस लौटा दी गई और आन्दोलन को समाप्त कर दिया गया।
बेंगू किसान आन्दोलन
- बिजौलिया किसान आन्दोलन से प्रोत्साहित होकर बेंगू के किसानो ने भी अत्यधिक लाग-बाग, बैठ, बेगार के विरोध मे आन्दोलन का निर्णय लिया
- बेंगू वर्तमान मे चितौडगढ जिले मे स्थित है
- राज. सेवा संघ के सदस्य विजयसिंह पथिक, माणिक्य लाल वर्मा एवं रामनारायण चौधरी ने किसानों को जागृत किया
- (1919 वर्धा द्वारा तथा 1920 मे अजमेर मे हुई पथिक द्वारा)
- 1921 ।कण् मे बेंगू के किसान मेनाल के भैरूकुण्ड नामक स्थान पर एकत्रित हुये
- बेंगू के ठाकुर अनूपसिंह ने 1922 मे पथिक की मध्यस्ता मे किसानों से समझौता किया लेकिन मेवाड सरकार ने इसे मंजूर नही किया मेवाड के महाराजा ने इस समझौते को बोल्शेविक की संज्ञा दी
- 1923 मे बेंगू के ठिकानेदार को हटाकर मुंशी अमृतलाल को बेंगू का मुंशरिम नियुक्त किया
- मेवाड सरकार ने किसानो की शिकायतो की जांच के लिए सेटलमेंट कमिश्नर ट्रेन्च का गठन किया गया।
- ट्रेन्च ने 2-4 लागतो को छोडकर सभी का उचित ठहराया जिसके विरोध मे बेंगू के किसान गोविन्दपुरा गांव मे एकत्रित हुये
- 13 जुलाई 1923 को ट्रेन्च के आदेश पर किसानो पर गोलियां चलाई जिसमे रूपाजी और कृपा जी धाकड नामक दो किसान शहीद हो गये तथा 500 किसानों को गिरफ्तार कर लिया गया।
- बेंगू किसानों के लगातार दबाव से 1925 मे लगान देर निर्धारित की गई तथा 34 लागते समाप्त कर दी गई जिसमे किसानों की स्थिति मे सुधार आया।
बूंदी किसान आन्दोलन
- बिजौलिया किसान आन्दोलन से प्रेरित होकर बूंदी के किसानों ने राज. सेवा संघ के कार्यकर्त्ता नयनूराम के नेतृत्व मे अर्थात 1921-22 मे हरीभाई कींकर, रामनारायण चौधरी एवं प. नयनूराम शर्मा ने बूंदी के बरड क्षेत्र के किसानों को संगाठित कर उनमे जागृति पैदा की।
- अप्रैल 1922 मे बूंदी प्रशासन के विरूद्ध आन्दोलन प्रारम्भ कर दिया
- बरड के किसानों के आन्दोलन का नेतृत्व राज. सेवा संध के कार्यकर्त्ता भंवरलाल सोनी के द्वारा किया गया।
- 2 अप्रैल 1923 को किसानों ने डाबी नामक गांव मे एक सम्मेलन का आयोजन किया गया। जिसमे पुलिस अधिकारी के आदेश पर गोलियां चलायी गई जिसमे नानकजी भील शहीद हो गये।
- अजमेर से तरूण राजस्थान, नवीन राज. तथा वर्धा से राज. केसरी व कानपुर से प्रताप नामक समाचार पत्र ने किसानो पर हो रह अत्याचार की निन्दा की थी।
- तरूण राज. एवं नवीन राज. पत्रों पर बूंदी मे वितरण पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
- 5 अक्टूबर 1936 को हिन्डोली के धुलेश्वर महादेव मन्दिर पर 90 गांवो के गुर्जर, मीणा व किसान एकत्रित हुए।
- अतः लम्बे समय के बाद 1943 मे यह आन्दोलन समाप्त हो गया।
अलवर किसान आन्दोलन
- यह आन्दोलन राजपुत किसानो ने लगान मे वृद्धि के फलस्वरूप प्रारम्भ किया।
- अलवर राज्य मे 1887 मे पहला, 1900 ई. मे दूसरा तथा 1923-24 मे तीसरा भुबन्दोबस्त किया गया जिसके तहत लगान मे वृद्धि की गई
- जानसुर व थानागाजी के किसानो मे बढी हुई दरो से असन्तुष्ट होकर 1924 मे अनके गांवों मे सभाओं का आयोजन किया गया।
- जन. 1925 मे अलवर के राजपुत किसानों ने दिल्ली मे अखिल भारतीय क्षेत्रीय महासभा क्षेत्र मे अधिवेशन मे भाग लिया एवं पुकार नामक पत्रिका मे अपनी समस्याओं का ब्यौरा प्रस्तुत किया।
- किसानों ने अपनी मांगे भुराजस्व घटाने, जंगली जानवारो का मारने की अनुमती देने एवं भूमि को जब्त न करने से सम्बन्धित प्रस्ताव रखा।
- अलवर रियासत मे जंगती सुअरों को अनाज खिलाकर पाला जाता था। ये सुअर किसानों की खडी फसलों को बर्बाद करते थे जिसके विरोध मे यह आन्दोलन प्रारम्भ हुआ।
- 13 मई, 1925 को नीमूचाणा गांव (आनसुर तहसील) मे किसानों की सभा हो रही थी जिस पर कमाण्डर छाजूसिंह द्वारा गोली चलाने एवं गांव को जलाले के आदेश दिये गये। फलस्वरूप 144 घर जला दिये गये जिसमे 50 व्यक्ति व 160 पशु मारे गये तथा 1600 व्यक्ति घायल हो गये।
- महात्मा गांधी ने रियासत नामक समाचार पत्र मे इसकी तुलना जलियावाला बाग हत्याकाण्ड से की है।
- रामनारायण चौधरी ने इसे नीमूचाणा हत्याकार की संज्ञा दी है।
बीकानेर किसान आन्दोलन 1934-
- बीकानेर के किसानों से आबियाना (पानीकर) नामक कर तोप्रर वसूल किया जाता था परन्तु किसानों को उत्पादन हेतु पूरा पानी नहीं किया जाता था।
- अतः बीकानेर में किसानों ने जीवन चौधरी के नेतृत्व में 1934 में आन्दोलन किया जिसका दमन कर दिया गया।
- 1936 में मेघाराम व रघुवर दयाल के द्वारा कलकत्ता में बीकानेर प्रजामण्डल की स्थापना की गयी इसका भी दमन कर दिया गया।
- बीकानेर प्रजामण्डल के लिए भु्रण हत्या शब्द का प्रयोग किया गया।
- 1942 में रघुवर दयाल के द्वारा बीकानेर राज्य प्रजा परिषद की स्थापना की गई।
- 1946 में इस संगठन के द्वारा गंगानगर के रायसिंह नामक स्थान पर शांतिपूर्ण जुलुस का आयोजन किया गया यहां बीरबल नामक व्यक्ति के द्वारा तिरंगा फहराने पर सैनिकों ने बीरबल की हत्या कर दी।
- बीरबल सिंह के सम्मान में तिरंगे की खातीर शब्द का प्रयोग किया गया।
सीकर किसान आन्दोलन 1934-
- सीकर जयपुर राज्य का एक बहुत बड़ा ठिकाना था यहाँ किसानों से अनेक प्रकार के कर लिये जाते थे। 1922 ई. में सीकर के राव राजा कल्याण सिंह ने पूर्व ठाकुर के दाह संस्कार मृत्युभोज तथा स्वयं के खड़गबंधाई समारोह में अधिक व्यय होने से करो में 50ः की और वृद्धि कर दी। किसानों ने लगान जमा कराना बंद कर दिया तो उन पर कई अत्याचार किये गये।
- राजस्थान सेवा संघ के सचिव रामनारायण चौधरी ने किसानों और ठिकाने के मध्य समझौता करवाने के लिए किसानों को संगठित कर संघर्ष के लिए तैयार किया।
- सीकर में किसानों पर अत्याचार की गूँज केन्द्रीय सभा एवं ब्रिटेन की लोकसभा में उठाई गई।
- सीकर से सम्बन्धित समस्या का एक लेख इंग्लैण्ड से प्रकाशित डेली हेराल्डर नामक समाचार पत्र मंे प्रकाशित करा दिया।
- 1933 ई. मंे अखिल भारतीय जाट महासभा के कार्यकर्त्ताओं ने गांवों में घूम-घूमकर किसानों को जाग्रत किया।
- कैप्टन वैब ने किसानों से समझौता कर उनके अनेक कर कम करवाये लेकिन ठिकाने के राव राजा ने इनका पालन नहीं किया।
- 1935 ई. में ठिकाने का राजस्व अधिकारी कुन्दन गाँव में लगान के लिए पहुँचा जिससे किसान उग्र हो गये। पुलिस ने किसानों पर गोलियाँ बरसाई जिसमें 4 किसान मारे गये तथा 14 घायल हो गये। 175 किसानों को गिरफ्तार कर लिया गया अन्त में किसानों के बढ़ते प्रभाव को देखकर कर समाप्त कर दिया गया। इस प्रकार 1947 ई. में यह आन्दोलन समाप्त हुआ।
दुधवा खारा (चूंरू)-
- दुधवाखारा के किसान सामन्ती अत्याचारों से बहुत परेशान थे दुधवाखारा के जागीरदार सूरजमल बीकानेर रियासत में सचिव थे।
- 1944 ई. में सूरजमल पुलिस की सहायता से किसानों को उनकी जोत से बेदखल कर उनकी सम्पत्ति लूट ली-
- सूरजमल के अत्याचारों से परेशान किसानों ने हनुमानसिंह चौधरी के नेतृत्व में माउण्ट आबू के महाराजा शार्दुलसिंह से मिले लेकिन कोई निष्कर्ष नहीं निकला और शिकायत करने पर उसे गिरफ्तार करके जले भेज दिया
- हनुमानसिंह की रिहाई के लिए मघाराम वैध सरकार के पास गये उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया गया। हनुमानसिंह ने भूख हड़ताल शुरु कर दी। स्वास्थ्य खराब होने पर उसे रिहा कर दिया गया
- 20 मार्च 1946 ई. को हनुमानसिंह को किसानों के भड़काने के विरोध में फिर से गिरफ्तार कर लिया गया। फिर भूख हड़ताल शुरु कर दी उसने 65 दिन तक भूख हड़ताल की। अन्त में 1948 ई. में उसे जले मुक्त कर दिया। और किसानों की समस्या का समाधान कर दिया इस प्रकार दुधवाखारा आन्दोलन समाप्त हुआ।
कटराथल सभा 1934-
- श्रीमती किशोरी देवी के नेतृत्व में कटराथल नामक स्थान पर एक सभा का आयोजन किया गया। जिसमें लगभग 1000 महिलाओं ने हिस्सा लिया। यहां श्रीमती उत्तमादेवी के द्वारा भाषण दिया गया।
आदिवासी आन्दोलन-
- राजस्थान के दक्षिणी भाग में भील जनजाति को चौकादारी के बदले बालाई नामक शुल्क प्राप्त होता था। 1818 की संधि के बाद अंग्रेजों ने यह शुल्क समाप्त कर दिया अतः भीलों ने अपना पहला विद्रोह उदयपुर में किया।
भगत आन्दोलन-
- गुरू गोविन्द गिरी के द्वारा यह आन्दोलन चलाया गया भील जनजाति गोविन्द गिरी के प्रति भक्ति भावना रखती थी। अतः आन्दोलन भक्त आन्दोलन के नाम से भी जाना जाता है। गुजरात के ईडर में रहते हुए गोविन्द गिरी ने इस आन्दोलन का नेतृत्व किया।
- 1883 में गोविन्द गिरी के द्वारा सम्प सभा की स्थापना की गयी। सम्प शब्द से तात्पर्य है कि आपसी भाईचारा व एकता।
- 1903 में बांसवाड़ा स्थित मानगढ़ की पहाड़ी पर सम्प सभा का पहला अधिवेशन आयोजन किया गया यहां प्रत्येक वर्ष अधिवेशन बुलाते का निर्णय किया।
- 1913 के अधिवेशन में भीलों ने गुलमोहम्मद नामक सैनिक की हत्या कर दी। अतः सैनिकों ने इस अधिवेशन पर गोलियां चला दी जिसमें लगभग 1500 भील मारे गये।
- गुरू गोविन्द गिरी को गिरफ्तार कर फांसी की सजा सुनाई। तथा भीलों के दबाब के कारण पहले 20 वर्ष तथा बाद में 10 वर्ष कारावास में बदल दी गई।
मीणा आन्दोलन 1942-
- अंग्रेजी सरकार के द्वारा जनजातियों पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए 1924 में क्रिमिनल टाइप्स एक्ट पारित किया गया। और इस कानून के तहत 1930 में जयराम पेशा कानून लागू कर दिया गया।
- इस कानून के तहत 12 वर्ष से अधिक आयु के मीणा जनजाति के पुरुष व महिला को प्रतिदिन पुलिस थाने में हाजरी देना अनिवार्य कर दिया। इस कानून का विरोध पंडित वशीधर शर्मा व बंशी नारायण हारवाल के द्वारा किया गया
- 1946 में जयपुर में तथा 1951 में पूरे राजस्थान में यह कानून समाप्त कर दिया।