राजस्थान की हवेलियां
राजस्थान मे हवेली कला का विकास एक स्वतंत्र कला के रुप मे हुआ जिसमे यहां के सामन्त एवं साहुकारों का योगदान रहा है
सर्वप्रथम हवेलियों का प्रचलन जयपुर से शुरू हुआ। लेकिन कुछ समय पश्चात् यह ताज शेखावटी ने छीन लिया
जयपुर की प्रसिद्ध हवेलियां-
- रत्नाकर पुण्डरिक हवेली
- पुरोहित प्रतापनारायण की हवेलीं
- नटाणियों की हवेली
सलीम हवेली – यह हेरिटेज हवेली का रुप प्राप्त कर चुकी है
नसीमुद्द्दीन खां प्यारे की हवेली – यह जर्मन पत्रकारों द्वारा 30 नवम्बर 2010 को अवार्ड प्राप्त चुकी है
शेखावटी की प्रसिद्ध हवेलियां-
- शेखावटी की हवेलियां भित्ति चित्रों व अपने फ्रेस्को बुनो पद्धति के लिए विख्यात मानी जाती है
- फ्रेस्को बुनो पद्धति – ताज प्लास्टर ली हुई नम भित्ति पर चित्रांकन करना। उसे आरायश/आलागीला भी कहा जाता है।
- गोरीलाल बियाणी की हवेली, ताराचन्द रुइया की हवेली, गौरी लाल बियाणी की हवेली, रामगोपाल पोद्दार, घनश्यामदास पोद्दार एवं रामनारायण खेमका की हवेलियां – रामगढ (सीकर)
- नन्दलाल देवडा की हवेली, कहैन्या लाल गोयनका की हवेली, नेमीचन्द चौधरी, सिंघानिया एवं सहजाराम पोद्दार की हवेलियां – फतेहपुर (सीकर)
- शेखावटी की हवेलियां स्वर्ण नगरी के रुप मे विख्यात है नवलगढ (झुंझुनू) मे 100 से ज्यादा हवेलियां अपनी शिल्प सौन्द्रर्य के लिए प्रसिद्ध है इसलिए नवलगढ को शेखावटी की स्वर्ण नगरी कहा जाता है
झुंझुनू की प्रसिद्ध हवेलियां.
- नवलगढ (झुंझुनू)- रुप निवास, भगत निवास, जालान हवेली, पौद्धार हवेली तथा भगेरियां की हवेलियां आदि प्रसिद्ध हवेलियां है
- बिसाऊ (झुंझुनू) – नाथूराम पोद्दार की हवेली, सेठ हीरालाल बनारसीलाल की हवेली, सीता राम सिगतिया की हवेली, सेठ जयदयाल केडिया की हवेली।
- मण्डावा (झुंझुनू) – रामनाथ गोयनका, सागरमल लाडिया, रामदेव चौखाणी, हरिप्रसाद ढंढारिया, सर्राफों की हवेली, बुधमल की हवेली, विश्वनाथ गोयनका, मोहनलाल आदि हवेलियां भित्ति चित्र के लिए प्रसिद्ध है।
- महनसर झुंझुनू – महनसर झुंझुनू की प्रसिद्ध हवेली सोने-चांदी से निर्मित हवेली है इस हवेली का निर्माण हरचन्द पौद्धार ने करवाया था।
नोट- इस हवेली मे राम एवं कृष्ण की लीलाओ का चित्रण किया गया है।
- ईसरदास मोदी – झुंझुनू मे ईसरदास मोदी की हवेली शत्ताधिक खिडकियों के लिए प्रसिद्ध हवेली है
जैसलमेर की हवेलियां-
- जैसलमेर की हवेलियां राजपुताना के आकर्षण का केन्द्र रही है जो पत्थर की जाली व कटाई के लिए विश्व प्रसिद्ध है
- पटवों की हवेली (1805 ई.)- यह गुमान चन्द बाफना द्वारा निर्मित हवेली है जो पांच मंजिल की बनी हुई है। इसकी पहली मंजिल पर जहाज के आकार के गवाक्ष है। इस हवेली मे भारत, सिंध, यहुदी व मुगल स्थापत्य का समन्वय है
- नथमल की हवेली – इस हवेली का निर्माण लालू व हाथी नामक दो भाइयों ने करवाया था।
- सालिम सिंह की हवेली (1815 ई.)- यह हवेली नौ मंजिला है इसके प्रथम सात खण्ड पत्थर के ओर ऊपरी दो खण्ड लकडी के बने हुए है कुछ समय पश्चात् लकडी के दोनों खंड उतार दिये गये वर्तमान यह सात मंजिला है। यह जैसलमेर की सबसे ऊंची इमारतो मे से एक है।
- पालीवालों की हवेली जैसलमेर की प्रसिद्ध है
बीकानेर की हवेलियां-
- लाल पत्थरों से निर्मित बच्छावतों की हवेली बीकानेर की प्रसिद्ध है। जिसका निर्माण 1593 ई. रायसिंह के शासन काल मे हुआ था।
- बीकानेर की हवेलियों मे मुगल, किशनगढ व यूरोपिय चित्रशैली का प्रयोग हुआ है जो ज्यामित्तीय शैली की नक्काशी पर आधारित है
- कर्ण सिंह की हवेली, मोहता की हवेली, मूंदड़ा की हवेली, रामपुरिया की हवेली, डागा की हवेली, बागडी की हवेली, आदि हवेलियां बीकानेर की प्रसिद्ध है।
जोधपुर की हवेलियां-
- खींचन गांव जोधपुर मे गोलेछा एवं टाटियां परिवारो की हवेली अपने कलात्मक स्वरुप के लिए प्रसिद्ध है
- बडे मियां की हवेली, पोकरण की हवेली, राखी हवेली, पाल हवेली, मोतीलाल, अमरचन्द कोचर, सांगीदास थानवी, फूलचन्द गोलेछा एवं लालचन्द ढड्डा की हवेलियां
उदयपुर की हवेलियां – बागौर की हवेली, बाफना की हवेली, बारहठ की हवेली, पिपालिया की हवेली
टोंक- सुनहरी कोठी अपने कलात्मक चित्रण के लिए प्रसिद्ध है इसका निर्माण 1824 ई मे टांेक के नवाब वजीउद्दोता ने कराया इस कोठी मे रंगीन कांच से जडित सुन्दर शीशमहल स्थित है
धौलपुर – बाडी शहर मे अपने पांच चौको के लिए पांच चौक की हवेली प्रसिद्ध है इस हवेली मे प्रवेश के साथ हमे एक साथ पांच चौक क्रम से देखने को मिलते है।
कोटा – बडे देवताजी की हवेली, श्री धरजी की हवेली, झाला की हवेली
अटरालिया की हवेली (कोटा)- इस हवेली मे क्रांतिकारी जोरावर सिंह बारहठ ने अपना अन्तिम समय बिताया था।
चित्तौड की हवेलियां – पुरोहितो की हवेली, भामाशाह की हवेली, रणमल की हवेली, आलाकाबरा की हवेली
अन्य हवेलियां
सेठ लालचन्द गोयनका की हवेली | डूंडलोद |
सेठ राधाकृष्ण एवं केसरदेव कानोडिया की हवेलियां | मुकुन्दगढ |
मालजी का कमरा | चूरू |
सुराणा की हवेली | चूरू |
मंत्रियों की हवेली | चूरू |
कन्हैयालाल बागला की हवेली | चूरू |
तोलाराम जी कमरा | महनसर, झुंझुनू |
पंसारी की हवेली श्री माधोपुर | सीकर |
टीबडेवाले की हवेली | झुंझुनू |
राजस्थान की छत्तरियां
छत्तरियां | सम्बन्ध |
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रैदास की छत्तरी | चित्तौड़गढ़ |
क्षारबाग की छत्तरी | कोटा |
बडा बाग छत्तरी | जैसलमेर |
गोरा धाय छत्तरी | जोधपुर |
राणा सांगा की छत्तरी | धूपतलाई बसवा, दौसा |
कुत्ते की छत्तरी | सवाई माधोपुर |
देवकुण्ड की छत्तरी | बीकानेर के राजवंशो की |
मामा-भांजा की छत्तरी- जोधपुर | यह मामा-भान्जा धन्ना व भीमा वीरों की छत्तरी है जिसका निर्माण महाराजा अजीत सिंह ने करवाया था। |
33 करोड देवी-देवताओं का देवल | मण्डोर , जोधपुर |
8 खम्भों की छत्तरी, बाडौली, चित्तौड़गढ़ | महाराणा प्रताप की छत्तरी (महाराणा प्रताप के बचपन का नाम कीका था) |
12 खम्भों की छत्तरी, कुभ्भलगढ, राजसमंद | पृथ्वीराज उडना राजकुमार की छत्तरी |
32 खम्भों की छत्तरी, स. माधोपुर | राजा हम्मीर देव द्वारा निर्मित |
66 खम्भों की छत्तरी, केसरबाग, बूंदी | यह केसरबाग की छत्तरियां बूंदी के राजवंश से सम्बंधित है यहां राजा के साथ सत्ती हुई रानी की मूर्ति भी स्थापित है |
80 खम्भों की छत्तरी, अलवर | यह अलवर के महाराजा बख्तावर सिंह की रानी मूसी की स्मृति मे विनयसिंह ने बनवाई थी। |
84 खम्भों की छत्तरी देवपुरा बूंदी | शिव को समर्पित 1683 ई. मे इन छत्तरियों का निर्माण राजा अनिरूद्ध सिंह ने करवाया था |
महासतियो की छत्तरी आहड, उदयपुर | मेवाड के सिसोदिया वंश से सम्बन्धित है जिसमे सर्वप्रथम अमरसिंह की छत्तरी लगी उसके बाद सभी महाराणाओं की छत्तरी यही बनाई गई |
गैटोर की छत्तरियां, जयपुर | जयपुर के कछवाह शासको से सम्बन्धित सवाई जयसिंह से लेकर सवाई माधोसिंह द्वितीय तक की छत्तरी यहां स्थित है |
अकबर की छत्तरी | बयाना, भरतपुर |
मिश्रजी की छत्तरी | अलवर |
ब्राह्मण देवता की छत्तरी | जोधपुर |
अमरसिंह की छत्तरी | नागौर |
गंगाबाई की छत्तरी | गंगापुर, भीलवाडा (महादाजी सिंधिया की पत्नि) |
अकबर की छत्तरी | भरतपुर |
जोधसिंह की छत्तरी | बदनोर, भीलवाडा |
जोगीदास की छत्तरी | उदयपुरवाटी, झुंझुनूं |
गोपाल सिंह की छत्तरी | करौली |
नाथों की छत्तरी | जालौर |
कागा की छत्तरी | जोधपुर |
पंचकुण्ड की छत्तरी | मण्डोर, जोधपुर |
बन्जारो की छत्तरी | लालसोट, दौसा |
वीर दुर्गादास छत्तरी | उज्जैन (क्षिप्रा नदी के तट पर) |