भारत में सर्वप्रथम आर्य (मध्य एश्यिा से) जाति का आगमन हुआ जो उत्तर भारत में आकर बस गये इसके पश्चात द्रविड़ आये।
तद्उपरांत सातवीं शताब्दी में गुप्त, हुण व राजपूत आये। ये क्षत्रिय जातियाँ थी जिसमें सिसोदिया, कछवाहा, राठौड़, चौहान, परमार आदि राजपूत जातियों ने इनमें कुछ ने मुगलों से वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किये व कुछ ने अपने राज्य के लिए संघर्ष किया।
आर्य जाति से ब्राह्मण जाति की उत्पति हुई उसके बाद में अपने कर्मों के आधार पर ये जातियाँ चार भागों में बंट गई।
- ब्राह्मण- यज्ञ कर्मकाण्ड़ करने वाले।
- क्षत्रिय- अपनी रियासत की सुरक्षा करने वाले ।
- वैश्य- व्यापार में संलग्न वर्ग।
- शुद्र- तीनों वर्णो की सेवा करने वाला।
- राजपूत- यह राजस्थान की रियासतों के अधीन रही है जो अपने राज्य, जाति व मान-मर्यादा के लिए केसरिया बाना पहनकर तथा अपने परिवार सहित वीरगति को प्राप्त होने वाली क्षत्रिय वंशज राजपूत जाति कहलाई।
- जाट- यह राजस्थान की काश्तकारों में एक प्रमुख जाति है जो सर्वप्रथम बीकानेर, जैसलमेर, जोधपुर, बाड़मेर में आकर निवास करने लगे थे। भरतपुर रियासत इसी जाट जाति के अधीन रही है।
- यदुवंशी यादव- यादव जाति को कृष्ण का पालक व नन्द का वंशज माना जाता है। इन्हें दूधवाला अहीर के नाम से भी जानते है।
- माली- माली जाति बागवानी के लिए प्रसिद्ध है। इसकी प्रमुख शाखा गहलोत, सोलंकी, पड़िहार, कछवाहा आदि है।
नोट- जाटों का अफलातून व प्लेटो- सूरजमल जाट
राजस्थान में सर्वाधिक दृष्टि से धर्म का बाहुल्य क्षेत्र
हिन्दु | दौसा |
मुस्लिम | जैसलमेर |
बौद्ध | अलवर |
सिक्ख | गंगानगर |
जैन | उदयपुर |
ईसाई | बांसवाड़ा |
भील-
- भील राजस्थान की सबसे प्राचीन जनजाति है।
- भील शब्द वील से बना है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है- धनुष
- कर्नल जेम्स टॉड ने भीलों को वन-पुत्र कहा है।
- इस जनजाति के लोग उदयपुर, डूंगरपुर, बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़, प्रतापगढ़, राजसमंद आदि जिलों में पाये जाते है।
- भील जनजाति राजस्थान में सर्वाधिक उदयपुर में निवास करती है।
- भील जनजाति प्रतिशत के आधार पर बांसवाडा जिलें में सबसे अधिक निवास करती है।
- भीलों के घरों को टापरा या कू कहा जाता है।
- भील समाज पितृसत्तात्मक होता है।
- भील जनजाति में दापा प्रथा (वधू-मूल्य), छेड़ा-फाड़ना (तलाक की विधि) तथा ड़ाम प्रथा (जले हुए का निशान) आदि प्रथाएं प्रचलित है।
- भीलों में सामुदायिक सहयोग की प्रथा को हलमा प्रथा कहा जाता है।
- भील-जनजाति में बाल-विवाह नहीं होता है, परन्तु विधवा-विवाह का प्रचलन है।
- हिन्दु प्रथा में जीवित भोज को जोसर व मृत्यु भोज को मौसर कहा जाता है।
- भील-जनजाति के लोग मृत्युभोज को काट्टा कहते है।
- भील जनजाति के लोग विवाह के अवसर पर हाथीमन्ना नृत्य करते है।
- हाथीवैडो- यह भीलों की एक अनोखी परंपरा है जिसमें भील पेड़ों का साक्षी मानकर जीवनसाथी बन जाते है।
- हमसिढ़ों- विवाह के अवसर पर गाया जाने वाला गीत हमसिढ़ों कहलाता है।
- भील जनजाति के लोग विवाह के अवसर पर कच्ची दीवारों पर लोक देवी-देवाताओं के चित्र बनाते है इन्हें भराड़ी कहा जाता है।
- भराड़ी माता भीलों की लोक देवी है जिसे विवाह की देवी भी कहा जाता है। भीलों के भंगोरिया त्यौहार पर भील जनजाति अपना जीवन साथी चुनती है।
- ये लोग अपने गांव के मुखिया को पालवी/गमेती कहते है।
- भील जनजाति में लंगोटी (तंग धोती) को खोयतू/ढे़पाडा कहते है। तथा पगड़ी का पोत्या कहा जाता है।
- भील जाति कमर पर अंगोछा लपेटते है उसे फालु कहते है।
- भील स्त्रियों घुटने तक लाल व काले रंग का घाघरा पहनती है उसे कछाबु कहा जाता है।
- भीलों के गौत्र को अटक तथा कुलदेवता को टोटम कहा जाता है।
- भील मन्दिरों के पुजारी को विला कहा जाता है।
- भील केसरियानाथजी के चढ़ा हुआ पानी पीकर कभी झूठ नहीं बोलते।
- परविक्षा विवाह- इस विवाह में भील अपनी वीरता का परिचय देता है।
- विनिमय विवाह- (घर जवांई प्रथा) इस विवाह में भील पुरुष वधु के घर जाकर उनके माता-पिता की सेवा करता है।
- हरण विवाह- लड़की को भगाकर विवाह करना। अन्त में कन्या पक्ष की ओर से कन्यादान करवाना उसको दापा कहा जाता है। दापा स्वरूप भेंट में 12 बछड़े तथा 12 थान कपडे़ होते है।
- हट विवाह- जबरदस्ती विवाह करना।
- पीरिया- विवाह के अवसर पर दुल्हन के द्वारा पहने जाने वाला पीले रंग का लहंगा।
- सिन्दुरी- विवाह के अवसर पर स्त्रियों द्वारा पहने जाने वाली लाल रंग की चुनड़ी/साड़ी।
- भीलों के मार्गदर्शक को बोलवा/बोलना कहा जाता है।
- यदि कोई भील किसी सैनिक के घोडे़ को मार देता है तो ऐसे भील पुरुष को पाखरिया कहा जाता है।
- गोविन्द गिरी- भीलों को जाग्रत करने के लिए बांसवाड़ा की मानगढ़ पहाड़ी पर गोविन्दगिरी के नेतृत्व में (1883 ई.) सम्प सभा का गठन किया गया जिस पर अंग्रेजों ने अन्धा-धूंद गोलियां चलाई इस घटना को जालियावाला बाग हत्याकाण्ड की संज्ञा दी गई।
- मोतीलाल तेजावत- भीलों के उत्थान के लिए 1920 ई. में मातृकुण्ड़िया (चित्तौड़गढ़) में एकी आन्दोलन की शुरूआत की थी। (मातृकुण्ड़िया को राजस्थान का हरिद्वार कहा जाता है।)
- कन्ड़ो (गोबर के उपले) की होली या उपलों की राड-भीलों के द्वारा खेली जाती है – उदयपुर व डूंगरपुर।
- भीलों के द्वारा पहाड़ी ढ़ालों पर की जाने वाली कृषि को वालरा/झूमिंग तथा मैदानी भागों में वनों को काटकर की जाने वाली खेती को धजिया एवं जलाकर की जाने वाली खेती को चिमाता कहा जाता है।
मीणा जनजाति-
- जैन संत मुनि मगन सागर ने मीन-पुराण की रचना की। जिसमें मीणाओं को भगवान विष्णु के मत्यस्य अवतार का वंशज बताया है।
- राजस्थान में मीणा-समुदाय मुख्य रूप से दो हिस्सों में- जमीनदार मीणा व चौकीदार मीणाओं में बंटे हुए है।
- मीणा समाज में गांव के मुखिया को पटेल कहा जाता है।
- मीणा-समाज में लीला-मोरिया विवाह-संस्कार का प्रचलन है।
- मीणा समाज में नाता-प्रथा, छेड़ा-फाड़ना, झगड़ा राशि आदि प्रथाएं प्रचलित है।
- मीणा जनजाति सबसे सभ्य, सुसंस्कृत व शिक्षित जनजाति मानी जाती है।
- मीणा जनजाति जयपुर जिलें में सर्वाधिक संख्या में निवास करती है।
- मीणा जनजाति के भाटों के अनुसार 24 खांप व 5200 गौत्र है।
- मीणा जनजाति की पंचायत को चौरासी पंचायत कहा जाता है।
- 1924 ई. में क्रिमिनल टाइब्स एक्ट मीणा जनजाति के लिए पारित किया गया था। इस कानून के तहत 1930 ई. में जयाराम पेशा कानून लागू कर दिया
- 1946 ई. में जयपुर तथा 1951 ई. में इस कानून को समस्त राजस्थान में समाप्त कर दिया।
गरासिया जनजाति-
- कर्नल जेम्स टॉड ने गरासियों की उत्पति गवास से मानी है जिसका अर्थ होता है – सेवक
- राजस्थान में सर्वाधिक गरासिया जनजाति सिरोही जिले में निवास करती है जो राज्य की तीसरी बड़ी जनजाति है।
- गरासिया लोग शिव, भैरव व दुर्गा की पूजा करते है। सफेद रंग के पशुओं को पवित्र मानते है गणगौर व होली इनका प्रमुख त्यौहार है।
- मोर गरासियों का पवित्र पक्षी है।
- गरासिया जनजाति में किसी व्यक्ति की मृत्यु पर बनाये जाने स्मारक को हुर्रे कहा जाता है।
- गरासिया जनजाति की कुंवारी कन्याओं के द्वारा लाख का चूड़ा और विवाहित महिलाओं के द्वारा हाथी दांत का चूड़ा पहना जाता है।
- गरासिया के छोटे गांव को फलां व बडे गांव को पाल कहते है। गरासियों के मुखिया को सहतोल कहा जाता है।
- गरासिया जनजाति की सहकारी संस्था को हेलरू कहा जाता है।
- गरासिया जनजाति के मृत्यु भोज को कांदिया कहा जाता है।
- वालरा- यह गरासिया जनजाति का प्रसिद्ध नृत्य है जिसमें किसी वाद्य यंत्र का प्रयोग नहीं होता है।
- ये लोग प्रेम-विवाह को मानते है।
- इनमें नाता-प्रथा व दापा-प्रथा का प्रचलन है।
- इनकी सबसे पवित्र झील नक्की झील है।
- इनका प्रमुख मेला मिनखा रो मेलो (मन का मेला) – आबू रोड़, सिरोही में लगता है।
- गरासिया जनजाति में विवाह के प्रकार-
- मोरबन्दिया विवाह- इस विवाह में मोरबन्दिया आदि रस्में पूरी की जाती है। इसके उपरान्त ब्राह्मण को दक्षिणा देते है।
- ताणना विवाह- इसमें सगाई फेरो आदि की रस्में पूरी नहीं होती। कन्या पक्ष से वर पक्ष को कन्यादान कर दिया जाता है।
- पहरावना विवाह- इसमें नाममात्र के फेरे होते है। विवाह के समय पण्डितजी की कोई आवश्यकता नहीं होती है।
ड़ामोर जनजाति-
- यह जनजाति डूंगरपुर, बांसवाड़ा में निवास करती है।
- डूंगरपुर की सिमलवाड़ा तहसील में सर्वाधिक 71% ड़ामोर जनजाति निवास करती है।
- गाय को पवित्र मानते है।
- मुख्य रूप से यह जनजाति गुजरात की है।
- ये अपनी उत्पत्ति राजपूज से मानते है।
- इनमें बहुपत्नी प्रथा का प्रचलन है।
- ड़ामोर-जनजाति में नाता-प्रथा का प्रचलन है।
- इस जनजाति में स्त्री व पुरूष दोनों गहने पहनते है।
- इनका परिवार एकांकी होता है। स्त्री-पुरूष सिर मुंडवाते है।
सहरिया जनजाति-
- सहरिया शब्द ‘‘सहर (फारसी शब्द)‘‘ से बना है जिसका अर्थ होता है, वनवासी।
- सहरिया जनजाति राजस्थान की सबसे पिछड़ी जनजाति है इसलिए भारत-सरकार ने इन्हें आदिम-जनजाति की श्रेणी में रखा है।
- सहरिया जनजाति के लोग सर्वाधिक 99.46% किशनगंज और शाहबाद (बारां जिला) में निवास करती है।
- इन लोगों में लठमार होली खेली जाती है।
- इस जनजाति में स्त्री-पुरूष सामूहिक रूप से नृत्य नहीं करते।
- इनका सबसे बड़ा मेला सीताबाड़ी (बांरा) में लगता है।
कंजर जनजाति-
- यह एक घुमन्त जनजाति है, जो सर्वाधिक हाड़ौती क्षेत्र में निवास करती है।
- कंजर जनजाति में व्यक्ति के मरते समय शराब की कुछ बूंदे उसके मुंह में ड़ाली जाती है।
- यह किसी मामले की सच्चाई जानने के लिए हाकम राजा का प्याला हाथ में देकर सौगन्ध दिलवाते है।
- कंजर जनजाति मोर का मांस अत्यधिक पसंद करती है।
- चौथ माता- चौथ का बरवाड़ा, यह कंजर जनजाति की आराध्य देवी है।
कथौड़ी जनजाति-
- यह सर्वाधिक उदयपुर की कोटड़ा तहसील मेें निवास करती है।
- यह जनजाति खैर के वृक्ष से हांडी प्रणाली द्वारा कत्था तैयार करती है।
- मावलिया नृत्य- कथौड़ी जनजाति का सबसे लोकप्रिय नृत्य है जो नवरात्रा व होली के अवसर पर किया जाता है।
- इस जनजाति की महिलाएं मराठी महिलाओं की तरह साड़ी पहनती है जिसे फड़का कहा जाता है।
- इस जनजाति की महिला-पुरूष दोनों एक साथ शराब पीते है।
- ये लोग मृतक को जलाते नहीं किन्तु दफनाते है।
- इस जनजाति में गांव के मुखिया को भोपा या पटेल कहा जाता है।
सांसी जनजाति-
- इस जनजाति की उत्पत्ति सांसमल नामक व्यक्ति से मानी जाती है।
- राजस्थान में यह जनजाति सर्वाधिक भरतपुर और धौलपुर जिले में निवास करती है।
- यह जनजाति बीजा व माला समुदाय में बटीं हुई है।
- इस जनजाति में कूकड़ी रस्म पाई जाती है जिसमें नारी को अपने सत्तीत्व या चरित्र की अग्नि परीक्षा देनी होती है।
पटेलिया जनजाति-
- बांरा, कोटा, झालावाड़ जिलों में पायी जाती है।
- मूल रूप से यह जनजाति मध्यप्रदेश में झाबुआ जिलें में पायी जाती है।
- अन्य घटक-
- लोकायी व कान्दिया- आदिवासियों के द्वारा दिया जाने वाला मृत्युभोज कान्दिया व लोकायी कहलाता है।
- लीलामोरिया- जाति व जनजाति में विवाह प्रथा।
- हेलरू- गरासिया जनजाति की सहकारी संस्था।
- हेलरो- किसी भी मांगलिक अवसर पर गरासिया जनजाति में अपने सगे सम्बन्धियों को दिया जाने वाला भोज हेलरो कहलाता है।
- बढ़ार- वर पक्ष की ओर से विवाह के पश्चात दूसरे या तीसरे दिन दिया जाने वाला भोज बढ़ार कहलाता है।
- मौताणा- (उदयपुर) आदिवासियों में किसी दुर्घटना या आकस्मिक घटना से किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो मृत्यु के बदले लिये जाना हर्जाना मौताणा कहलाता है।
FAQ
Q. 1 राजस्थान में सबसे अधिक जनजाति कौन सी है?
Ans. राजस्थान में सबसे अधिक जनजाति भील जनजाति है भील जनजाति उदयपुर, डूंगरपुर, बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़, प्रतापगढ़, राजसमंद आदि जिलों में पाये जाते है। भील जनजाति राजस्थान में सर्वाधिक उदयपुर में निवास करती है। परन्तु प्रतिशत के आधार पर बांसवाडा जिलें में सबसे अधिक निवास करती है।
Q. 2 राजस्थान की प्रमुख जनजाति कौन सी है?
Ans. भील, मीणा, सहरिया, गरासिया, डामोर, कंजर, कथौड़ी आदि जनजातियाँ निवास करती है।
Q. 3 राजस्थान की सबसे पिछड़ी जनजाति कौन सी है?
Ans. सहरिया जनजाति राजस्थान की सबसे पिछड़ी जनजाति है
Q. 4 राजस्थान की कौनसी जनजाति आदिम जनजाति है?
Ans. सहरिया जनजाति सबसे पिछड़ी होने के कारण सरकार ने इन्हें आदिम जनजाति के श्रेणी में रखा है।
Q. 5 भील जाति का क्या मतलब है?
Ans. भील शब्द वील से बना है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है- धनुष
Q. 6 भील जाति का गोत्र क्या है?
Ans. भीलों के गौत्र को अटक कहा जाता है।