Rajasthan ke Pramukh Shilalekh | राजस्थान के प्राचीन शिलालेख एवं प्रशिस्तियां

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Rajasthan ke Pramukh Shilalekh

बडली शिलालेख-

  • यह राजस्थान का सबसे प्राचीन शिलालेख माना जाता है।
  • इसका समय 200 ई. पूर्व माना जाता है।
  • यह अभिलेख बाह्मी लिपि में लिखा हुआ है।
  • यह शिलालेख वर्तमान में अजमेर संग्रहालय में रखा हुआ है।

राजप्रशस्ति राजसमंद-

  • यह विश्व का सबसे बडा शिलालेख है। इसे 25 काले रंग की बडी शिलाओं पर उत्त्कीर्ण किया गया है।
  • यह शिलालेख 1907 संस्कृत श्लाकों में है इसकी रचना 1676 ई. में राणा राजसिंह के समय में कवि रणछोड भट्ट ने की थी।
  • इस शिलालेख में बप्पारावल से लेकर राणा राजसिंह तक का इतिहास उत्त्कीर्ण है।
  • यह शिलालेख राजसमंद झील के किनारे (नौ चोकी पाल) स्थित है।

कीर्ति स्तम्भ प्रशस्ति –

  • (चितौडगढ दुर्ग) इसकी रचना कवि अत्रि ने की थी।
  • अत्रि की मृत्यु के पश्चात उसके पुत्र महेश ने इसे पूरा किया है।
  • इस प्रशस्ति की रचना राणा कुम्भा ने 1460 ई. में करवायी।
  • इस प्रशस्ति से मेवाड के राजाओं की वंशावली का पता चलता है।
  • यह प्रशस्ति विजय स्तम्भ की शिलाओं पर उत्त्कीर्ण है।
  • यह प्रशस्ति के बप्पा रावल से लेकर कुंभा तक की विजयों का वर्णन मिलता है।

रणकपुर प्रशस्ति (पाली) –

  • यह प्रशस्ति रणकपुर के चौमुखा मन्दिर की दीवारों पर उत्त्कीर्ण है।
  • इस प्रशस्ति की रचना 1439 ई. में कवि दैपा ने की।
  • इसमे बप्पा रावल से कुंभा तक की जानकारी है।

चीखा अभिलेख (उदयपुर) –

  • यह अभिलेख 1273 ई. का है।
  • इस अभिलेख से सती प्रथा की जानकारी मिलती है।

कणसव अभिलेख-

  • कोटा (738 ई.) इस अभिलेख से धवल मौर्य नामक शासक का वर्णन मिलता है।

मानमौर्य का अभिलेख-

  • (734 ई.) चितौड़गढ़ में यह अभिलेख प्राप्त हुआ
  • इस अभिलेख को कर्नल टॉड इंग्लैण्ड जाते समय समुद्र में फेंक गया था।
  • इस अभिलेख से 8वीं शताब्दी का वर्णन मिलता है

कुंभलगढ शिलालेख (राजसमंद)-

  • इस शिलालेख की रचना 1460 ई. में की गई है।
  • इस शिलालेख से महाराणा कुंभा की विजयों तथा गुहिल वंश की जानकारी मिलती है।

चित्तौड का शिलालेख –

  • यह शिलालेख 1278 ई. का है।
  • शिलालेख से गुहिल राजवंश की धार्मिक सहिष्णुता का पता लगता है।
  • मेवाड के महाराणों के शैव -मतावलम्बी होने पर भी जैन मन्दिरों को अनुदान देने का वर्णन मिलता है।

बिजौलिया अभिलेख (भीलवाडा) –

  • यह अभिलेख भीलवाडा के बिजौलिया गांव में स्थित है।
  • यह अभिलेख 1170 ई. का है। इस अभिलेख से चौहानों की उत्पत्ति के बारे में पता चलता है
  • इस अभिलेख से ये मालूम होता है कि अजमेर के चौहान वंश वत्सगौत्र के ब्राह्मण थे।
  • इस अभिलेख से राजस्थान के प्राचीन स्थानों के नामों का पता चलता है।
    • जैसेः- जालौर – जाबालीपुर, भीनमाल – श्रीमाल, सांचौर – सत्यपुर, सांभर-शाकम्भरी

जूनागढ प्रशस्ति –

  • यह प्रशस्ति जूनागढ दुर्ग में स्थित है।
  • इस प्रशस्ति से राव बीका से लेकर रायसिंह तक के इतिहास का पता चलता है।

घोसुण्डी शिलालेख –

  • इस शिलालेख से भागवत धर्म और अश्वमेघ यज्ञ के बारे में पता चलता है।
  • यह अभिलेख नगरी (चितौडगढ) से प्राप्त हुआ।
  • यह संस्कृत भाषा में लिखा गया है।
  • इससे दूसरी शताब्दी ई.पू. के गज वंश के शासक सर्वदाता के बारे मे जानकारी मिलती है।

श्रृंगी ऋषि का अभिलेख –

  • उदयपुर 1428 ई. इस अभिलेख से महाराणा मोकल के बारे में जानकारी मिलती है।
  • किराडू का अभिलेख (बाडमेर) – यह 1161 ई. का है।
  • इस अभिलेख से परमार शासकों के बारे में जानकारी मिलती है।
  • इस अभिलेख से परमारों की उत्पत्ति अग्निकुण्ड द्वारा बताई गयी है।
  • घटियाल का शिलालेख – जोधपुर
  • हर्षनाथ की प्रशस्ति – सीकर
  • नाथ प्रशस्ति – उदयपुर
  • अपराजित का शिलालेख – नागदा, उदयपुर
  • सारणेश्वर (सांडनाथ) – उदयपुर
  • बुंचकला शिलालेख – जोधपुर
  • चाटसू शिलालेख – जयपुर
  • बरनाला शिलालेख – जयपुर
  • नान्दसा – भीलवाडा
  • रसिया जी की छत्री, शिलालेख – 1274 ई. चितौड़गढ़
  • आबू का अचलेश्वर शिलालेख – 1285 ई. सिरोही
  • समिद्वेश्वर के मन्दिर का शिलालेख – 1428 ई. चितौडगढ
  • दिलवाडा का शिलालेख – 1434 ई. सिरोही
  • जगवा रामगढ प्रशस्ति – 1652 ई. जयपुर
  • जगन्नाथ राय की प्रशस्ति – 1652 ई. उदयपुर
  • नगरी शिलालेख – चितौड़गढ़ (180-200 ई.पू)
  • सामोली शिलालेख – 646 ई. (उदयपुर)
  • बडवा शिलालेख – कोटा

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