अलौकिक चमत्कारों से युक्त उत्कुष्ट कार्य बलिदान पूर्ण कृत्य वाले महापुरूष लोक देवता के रूप मे प्रसिद्ध हुए।
पाबू हडबू रामदे ए मांगलिया मेहा।
पांचू पीर पधारज्यो ए गोगाजी जेहा।।
पाबूजी, हडबूजी, रामदेवजी, मांगलियाजी , गोगाजी
पाबूजी राठौड-
- पाबूजी का जन्म 1239 ई. में जोधपुर की फलौदी तहसील के कोलू गांव मे हुआ था इनके पिता का नाम धांधल जी राठौड, माता का नाम कमलादे तथा पत्नि का नाम फुलमदे (अमरकोट के सोढ़ा राजा सूरजमल की पुत्री) था। पाबूजी की घोडी का नाम केसरकालमी था।
- पाबूजी का मेला चैत्र अमावस्या को जोधपुर की फलौदी तहसील मे कोलू गांव मे भरता है।
- इन्हे लक्ष्मण का अवतार माना जाता है।
- पाबूजी के पावडे (गीत) विशेष प्रचलित है।
- पाबूजी की फड़ भोपों द्वारा रावणहत्था वाद्य यन्त्र के साथ बांची जाती है।
- पाबूजी को ऊंटो के देवता के रूप मे पूजा जाता है तथा इन्हे प्लेग रक्षक देवता भी कहते है
- राइका (रेबारी) जाति के लोग इन्हे अपना आराध्य देवता मानते है।
- आसिया मोडजी द्वारा लिखित पाबू प्रकाश पुस्तक मे पाबूजी के जीवन चित्रण का उल्लेख किया गया है
- पांच पीरो मे पाबूजी का नाम सबसे पहले लिया जाता है।
- पाबूजी की पूजा भाला लिए हुए अश्वारोही के रूप मे की जाती है।
- देचू नामक स्थान पर (जोधपुर) 1276 ई मे फूलमदे इनके साथ सत्ती हो गई
पाबूजी के सन्दर्भ मे कथा
पाबूजी को चारण जाति की महिला ने केसर कालमी नामक घोडी इस शर्त पर दी गई कि जब भी मेरे पास संकट आएगा तो आप मेरी रक्षा करने के लिए आयेगे। चारणी महिला ने पाबूजी को बताया कि जब भी मुझ पर व मेरे पशुधन पर संकट आएगा तभी यह घोडी हिन्-हिनाएगी। इसके हिनहिनाते ही आप मेरे ऊपर संकट समझकर मेरी रक्षा के लिये आ जाना।
चारणी को उसकी रक्षा का वचन देने के बाद अमरकोट के सोढा राणा सूरजमल के यहां ठहरे हुए थे सोढी राजकुमारी ने जब पाबूजी को देखा तो उसके मन मे पाबूजी से शादी करने पर विचार उत्पन्न हुआ कुछ वार्तालाप के पश्चात दोनों की शादी तय हो गई।
किन्तु पाबूजी ने जिस समय तीसरा फेरा लिया। ठीक उसी समय केसर-कालमी घोडी हिन्-हिना उठी, चारणी महिला पर संकट आ गया था। वचनबद्ध पाबूजी केसर- कालमी घोडी पर सवार होकर अपने बहनोई जिंदराव खिंची (जायल का राजा) से गाय छुडवाकर अपने वचन का पालन करते हुये वीरगति को प्राप्त हो गये।
हडबू जी-
- हड़बू जी का जन्म नागौर जिले के भूण्डेल गांव मे हुआ था। जो सांखला राजपुत थे। ये राव जोधा के समकालीन थे। मण्डोर पर अधिकार करने से पहले राव जोधा ने इनसे आशीर्वाद लिया था। हडबूजी ने राव जोधा को एक कटार भेंट की थी।
- अतः राव इनके आशीर्वाद से मण्डोर जीतने के बाद इन्हे जोधपुर जिले की फलौदी तहसील का बंेगटी गांव दे दिया।
- जहां पर इनका मन्दिर (पूजा स्थान) बना हुआ है।
- मन्दिर का निर्माण 1721 ई. में जोधपुर के महाराजा अजीत सिंह ने करवाया था।
- हडबूजी बैलगाडी मे गायों के लिए चारा लाया करते थे इसलिए बेंगटी गांव मे उनकी बैलगाडी की पूजा होती है।
- यह शकून शास्त्र के ज्ञाता थे।
- हडबूजी रामदेवजी के मौसेरे भाई थे।
- समाधि लेने के बाद रामदेवजी ने हडबूजी को दर्शन देकर एक रतन कटोरा व सोहन चुरिया भेंट की थी।
रामदेवजी-

- रामदेव जी का जन्म भाद्रपद की शुक्ल द्वितीया का विक्रम संवत 1409 (सन् 1352) मे बाडमेर की शिव तहसील के उंडकासमेर गांव मे हुआ था। ये तंवर राजपूत थे। इनके पिता का नाम अजमल जी, माता का नाम मैणादे, भाई का नाम वीरमदेव, पत्नि का नाम निहालदे (अमरकोट, पाकिस्तान के दलेसिंह की पुत्री थी), बहिन का नाम सुगना बाई तथा मुँह बोली बहिन डाली बाई थी।
- रामदेवजी के गुरू का नाम बालिनाथ जी (बालक नाथ) था।
- रामदेवजी ही एक मात्र ऐसे देवता थे। जो एक प्रसिद्ध कवि भी थे। जिन्होने डाली बाई के एक दिन बाद मे जीवित समाधि ली थी।
- इनके द्वारा रचित कृति चौबीस बणियां है।
- रामदेवजी ने जाँति-पाँती व छुआछुत का विरोध कर हिन्दू-मुस्लिमों मे एकता स्थापित की थी।
- रामदेव जी ने वि.स. 1425 में रूणीचा नगर बसाया जहां वि.स. 1442 को भाद्रपद द्वितीया को 33 वर्ष की आयु मे जीवित समाधि ली थी। रूणीचा में भाद्रपद द्वितीया से (जन्म) से एकादशी (समाधि) तक विशाल मेला आयोजित किया जाता है जो साम्प्रदायिक सद्भावना का सबसे बडा मेला है।
- रामदेवजी के मेले पर कामड जाति की महिलाओं द्वारा बैठकर तेरहताली नृत्य किया जाता है।
- इनके द्वारा कामडिया पंथ प्रारम्भ किया गया था।
- इनकी यशोगाथा का चमत्कारी वर्णन परचा मे किया गया है।
- रामदेव का स्थान देवरा, झण्डा को नेजा (पांच रंग) रात्री जागरण को जम्मा तथा इनके भजनों को लीलाएं व ब्यावले कहा जाता है।
- मुसलमान इन्हे रामासासीर के रूप मे पूजते है
- मेघवाल जाति के लोग रामदेवजी के परमभक्त है जिन्हे रिखिया कहा जाता है।
- हिन्दू इन्हे कृष्ण भगवान का अवतार मानते है।
- यहां एक पानी का कुण्ड बना हुआ है जिसे रामसरोवर कुण्ड कहा जाता है।
- रामदेवजी का प्रतीक चिन्ह पगल्या तथा वाहन घोडा है।
- रामदेवजी के मन्दिर का निर्माण 1931 ई मे बीकानेर के महाराजा गंगासिंह ने करवाया था।
- रुणीचा के अलावा रामदेव के मन्दिर बारादिया अजमेर, सुरताखेडा चितौडगढ, कुडा गांव सांचौर तथा मसूरिया जोधपुर मे स्थित है
मांगलिया जी (मेहाजी)-
- मेहाजी राजस्थान के पंचवीरों मे से एक है जिनका जन्म क्षत्रिय परिवार मे हुआ था इनके पिता का नाम गोपालराज सांखला था। इनका पालन पोषण ननिहाल मे हुआ। ननिहाल पक्ष का गोत्र मांगलियासी था इसी कारण मेहाजी मांगलिया जी के नाम से प्रसिद्ध हुए जो मारवाड के राव चूडा के समकालीन थे।
- मेहाजी ने पहिलाप गांव मे तीन तालाब खुदवाये एक तालाब उनके नाम से प्रसिद्ध हुआ दो अन्य लूंआसर व हरभूसर के नाम से जाने गये
- मेहाजी ने राव चूडा से भेट कर भूंडेल को अपना स्थान बनाया
- मेहाजी शकून शास्त्र के अच्छे ज्ञाता थे।
- मेहाजी जैसलमेर के रावराणगदेव भाटी से युद्ध करते हुई वीरगति को प्राप्त हुऐ।
- इनका प्रमुख मन्दिर बापणी गांव जोधपुर मे है जहां प्रतिवर्ष भाद्रपद की कृष्ण अष्टमी को मेला आयोजित किया जाता है।
- मेहाजी की प्रिय घोडी का नाम किरड काबरा था।
गोगाजी-
- गोगाजी का जन्म विक्रम संवत 1003 को चूरू जिले के ददेरवा नामक गांव मे हुआ था। इनके पिता का नाम जेवर सिंह चौहान, माता का नाम बाछल दे था। इनकी पत्नि का नाम केलम दे था।
- गोगाजी महमूद गजनवी (998-1030) से युद्ध करते हुए (अपने मौसेरे भाईयो अर्जन, सुर्जन की गायों को बचाने हेतु) वीरगति को प्राप्त हुए।
- गोगाजी का सिर जहां पर पड़ा। वह स्थान शीशमेडी (ददेरवा) कहलाया। जहां शरीर (धड) पड़ा। उस स्थान को गोगामेड़ी या धूरमेड़ी कहा जाता है।
- गोगाजी की स्मृति मे भाद्रपद की कृष्ण नवमी को गोगामेड़ी नामक स्थान पर (समाधी स्थल) विशाल मेला आयोजित किया जाता है।
- गोगजी का पूजा स्थल खेजडी वृक्ष के नीचे होता है।
- महमूद गजनवी ने इनको जाहर पीर कहा था।
- गोगाजी के खीर चूरमा का भोग लगाते है।
- गोगाजी के गुरू गोरखनाथ जी थे।
- गोगाजी का राज्य – सतलज से हांसी (हरियाणा) तक विस्तृत था।
- गोगाजी को सांपों के देवता के रूप मे पूजा जाता है इनके स्थान गोगामेडी को स्थानीय भाषा मे पूरबिय कहते है।
- गोगामेडी का निर्माण फिरोजशाह तुगलक के द्वारा किया गया था जिसके दरवाजे पर बिस्मिल्लाह का चिन्ह अंकित है।
- गोगाजी राजस्थान के अलावा गुजरात, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश में भी लोक देवता के रूप मे पूजा जाता है।
वीर तेजाजी-
वीर तेजाजी का जन्म 1074 ई. को नागौर जिले के खडनाल गांव में धौल्या गौत्र के जाट परिवार मंे हुआ था। इनके पिता का नाम ताहडजी, माता का नाम राजकुंवरी एवं पत्नी का नाम पैमलदे था जो पनेर गांव (अजमेर) के रायमल की पुत्री थी।
तेजाजी को सांपों का देवता तथा किसान खेत मे हतोलिया (हल चलाने से पहले) करने से पहले तेजाजी के नाम की राखी बाँधते है।
तेजाजी के पूजारी को घोडला व चबुतरे को थान कहते है तथा इन्हे काला और बाला का देवता भी कहा जाता है
तेजाजी का प्रतीक तलवारधारी अश्वारोही योद्धा है।
तेजाजी का पशु मेला भाद्रपद की शुक्लदशमी को परबतसर नागौर मे आयोजित किया जाता है।
तेजाजी को सर्प ने सैंदरिया गांव ब्यावर मे डसा था। लेकिन मृत्यु सुरसुरा गांव अजमेर मे हुई थी।
परबतसर मे तेजाजी के मन्दिर का निर्माण 1734 ई. जोधपुर के महाराजा अभयसिंह के समय परबतसर के सामन्त ने करवाया था।
तेजाजी की बहिन डूंगरी माता के रूप मे खडनाल मे पूजी जाती है तेजाजी की घोडी का नाम लीलण था।
तेजाजी पर 7 सितम्बर 2010 को डाक टिकट भी जारी किया जा चुका है।
इनके प्रमुख मन्दिर सुरसरा, ब्यावर, सैंदारिया और भावंता में है।
तेजाजी की कथा
तेजाजी का विवाह बचपन में पनेर गांव के रायमल की पुत्री पैमल के साथ हो गया था। लेकिन विवाह के कुछ समय बाद उनके पिता और मामा मे कहासुनी हो गई जिसमें पैमल के मामा की मौत हो गई। इस कारण इनके विवाह की बात को इन्हे बताया नही गया था। एक बार तेजाजी खेत जोतने के लिए गये तो खेत में भाभी समय पर खाना लेकर नही पहुंची तो उस समय तेजा का गुस्सा सर आसमान पर था जब भाभी खाना लेकर आई तो तेजा ने भाभी को खरी खोटी सुनाया। तब भाभी ने तेजा को कहा तुम्हारी जोरू पीहर मे बैठी है कुछ शर्म लाज है तो जाकर ले आओ। तेजा खेत से सीधा घर पहुंचकर मां से अपने विवाह के बारे पूरी जानकारी प्राप्त करता है।
तेजाजी अपनी मां से ससुराल जाने की अनुमति मांगता है तब भाभी ने कहा देवरजी अपनी बहन राजल को ले आओ। आपकी दुल्हन का उसके बिना बधावा कौन करेगा। तेजा अपनी बहन को लाने उसके ससुराल तबीजी की ओर जाता है तो रास्ते में मीणा सरदारों ने उस पर हमला कर दिया जिसमें तेजाजी की जीत हुई तेजाजी तबीजी पहंुचकर अपने बहनोई जोगाजी सियाग से अनुमति लेकर राजल को खड़नाल ले आये।
अगली सुबह अपनी मां और भाभी से विदाई लेकर अपनी लीलण नामक घोड़ी पर सवार होकर पैमल को लाने निकल पड़े। जब तेजाजी अपने ससुराल पनेर गांव पहंुचे उस समय उनकी सास गाय का दुध निकाल रही थी। तेजाजी का घोड़ा हिनहिनाते हुए पिरोल में पहंुचा। सास ने उन्हे पहचाना नही वह अपनी गायों के डर जाने से तेजा को सीधा शाप दे डाला ‘‘जा तुझे काला साँप खाए‘‘ तेजाजी उसके शाप से इतने दुखी हुए कि बिना पैमल को साथ लिए ही लौट पड़े।
पैमल की सहेली लाछा गुजरी जिसने पैमल को कुंवर तेजाजी से मिलवाने का यत्न किया। इस समय लाछा गुजरी ऊँटनी पर सवार होकर तेजाजी का पीछा कर तेजा तक जा पहंुची। तब लाछा ने तेजा से कहा कि उसके मां बाप उसकी शादी किसी और से तय कर चुके है लेकिन पैमल आपको ही पति मानती है पैमल तो मरने वाली ही थी लेकिन मैं उसे वचन देकर रोक आई। लाछा के समझाने पर भी तेजा के कोई असर नही हुआ।
पैमल भी अपनी मां को खरी खोटी सुनाकर लाछा व तेजा के पास पहुंच गई और तेजा से विनती करने लगी कि मैंने आपके इंतजार मे इतने दिन बिताये। ये मैं ही जानती हूँ आज आप चले गये तो मेरा क्या होगा। पैमल की व्यथा सुनकर तेजा पैमल के साथ वापस ससुराल चला गया। वहां तेजा की मनवार की गई।
उस समय लाछा गुजरी की गायों को मीणा सरदार चुराकर ले गये। तेजा लीलण घोड़ी पर सवार होकर जाने लगा तब पैमल ने घोड़ी की लगाम पकड़कर कहा मैं भी आपके साथ चलूंगी तेजा ने कहा मैं क्षत्रिय धर्म का पालक हूँ अकेला ही जाऊगा।
तब पैमल ने कहा-
डूंगर पर डांडी नही मेहा अन्धेरी रात।
पग पग कालो नाग मति सिधारो मेरे नाथ।।
अर्थात पहाड़ों पर रास्ता नही वर्षा की अन्धेरी रात और पग पग पर काला नाग दुश्मन है ऐसी स्थिति मे मत जाओ। लेकिन तेजा पैमल की बात नही माना।
वर्तमान सुरसरा नामक स्थान पर बासक नामक नाग अपनी आग मे मोक्ष प्राप्त कर रहा था तब तेजा ने आग से उठाकर नाग को बाहर फेंक दिया तब नाग ने कहा- कि मैं सैकड़ो वर्षो के बाद मोक्ष प्राप्त कर रहा था। तुने मेरी मोक्ष को रोक दिया तब नाग ने डसने के लिए कहा तेजाजी ने नाग को वचन दिया कि मैं वचनों मे बंधा हुआ हूँ लाछा की गायों को लाने के पश्चात् वापस आऊगाँ तब मुझे डस लेना। तेजा मंडवारियों की पहाड़ियों मे मीणों को परास्त कर गायांे का छुड़ाकर लाछा को सौंप दिया। जब लाछा को काणा केरडा दिखाई नही दिया तो वह उदास हो गई। तेजा काणा केरडा को वापस लाने गया। तब वह पूरी तरह घायल हो गया
वचन का पक्का तेजा वापस नाग देवता के पास पहुंचकर अपना वचन निभाया। नाग उसकी ईमानदारी से प्रसन्न हुआ तेजा के छलनी शरीर को देखकर न डसने की इच्छा प्रकट की तो तेजा ने अपनी जीभ निकालकर कहा अपना वचन निभाओ सर्प ने सेदंरिया गांव में अपना वचन निभाया और कहा आज के बाद तुम कुलदेवता के रूप मे पूजे जाओगे और काला सांप का काटा हुआ तुम्हारे नाम की लोग तांती बाधेगे तो उसका पान उतर जायेगा ये समाचार जब पैमल को मिला तब पैमल अपनी पति के साथ सुरसुरा नामक स्थान पर सती हो गई।
देवनारायणजी-
- देवनारायण जी का जन्म 1243 ई. मे बगडावत गुर्जरो मे हुआ था। इनके बचपन का नाम उदयसिंह था। पिता का नाम सवाईभोज तथा माता का नाम सेठू गुजरी था पत्नि का नाम पीपल दे था जो धार नरेश जयसिंह पुत्री थी। एवं देवनारायणजी के घोडे का नाम लीलागर था।
- पिता सवाईभोज देवनारायणजी के जन्म से पूर्व ही भिनाय के शासक से युद्ध करते हुए अपने 23 भाईयों के साथ मारे गये थे।
- माता सेठू गुजरी अपने पुत्र की रक्षा करने के लिए पीहर देवास (M.P.) लेकर चली गई। जिसका विवरण बीकानेर संग्रहालय मे संरक्षित ग्रंथ ‘‘अथ वात देवजी बगडावत री‘‘ मे किया गया है।
- देवनारायणजी अपने पूर्वजों का प्रतिशोध लेने वापस भिनाय आये वहां भिनाय के शासकों से भयंकर संघर्ष हुआ इस युद्ध मे उन्होंने उनको मौत के घाट उतार दिया।
- देवनारायण जी ब्यावर तहसील के मसूदा गांव से 60 किमी दूर देवमाली गांव मे भाद्रपद शुक्ल सप्तमी को अपनी देह का त्याग किया इसी कारण यहां प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल सप्तमी को विशाल मेले का आयोजन किया जाता है।
- इनका प्रमुख मंदिर आसीन्द भीलवाडा में हैं तथा इसके अतिरिक्त देवमाली एवं टोंक जिले की निवाई तहसील के जोधपुरिया गांव मे स्थित है।
- देवनारायण जी गुर्जर जाति के प्रसिद्ध लोक देवता है।
- देवनारायण जी की फड जन्तर वाद्य यंत्र के साथ बाचते है समस्त लोकदेवताओ मे इनकी फड़ सबसे लम्बी है जो जर्मनी के म्यूजियम मे रखी हुई है
- देवनारायणजी को गुर्जर जाति के लोग विष्णु का अवतार मानते है
- देवनारायणजी को गोबर व नीम को औषधि के रूप मे उपयुक्त मानते है इसलिए इन्हे आयुर्वेद का ज्ञाता कहा जाता है।
- यह एक मात्र देवता है जिन पर भारतीय डाक विभाग द्वारा 1992 मे पांच रूपये का टिकिट जारी किया गया था।
- इनके मन्दिर मे मूर्ति के स्थान पर ईटों की पूजा की जाती है।
- बगडावत नामक पुस्तक लक्ष्मी चुडावत द्वारा लिखी गई है।
- देवनारायण जी को राज्य क्रांति का जनक माना जाता है।
- राज. मे देवमाली स्थान को बगडावतो का गांव कहा जाता है जहां देवनारायण एवं सवाई भोज का मन्दिर स्थित है।
वीर कल्ला जी-
- वीर कल्लाजी का जन्म 1544 ई. को सामियाना गांव मेडता नागौर मे हुआ था।
- पिता का नाम आससिंह था जो कृष्णभक्त मीराबाई के भतीजे थे।
- इनके गुरू का नाम जालन्धर नाथ (भैरवनाथ) था।
- इन्हे शेषनाग का अवतार माना जाता है।
- वीरकल्ला जी चित्तौड़गढ़ के तीसरे साके (फरवरी 1568 ई.) मे अपने ताऊ जयमल राठौड़ के पैर कट जाने से कल्ला अपने कंधों पर बैठाकर दोनों हाथों मे तलवार लेकर युद्ध किया था। इसलिए वीर कल्ला को चार हाथों वाला देवता कहा जाता है।
- वीरकल्ला का प्रमुख मंन्दिर डूंगरपुर में स्थित है।
- वीरकल्ला का कमधण, कमधज, केहर, योगी, कल्याण, बालब्रह्मचारी आदि नामों से पूजा जाता है।
मल्लीनाथजी-
- मल्लीनाथजी का जन्म 1358 ई. को तिलवाडा बाडमेर मे हुआ था।
- इनके पिता का नाम राव सलखा, माता का नाम जीणादे तथा पत्नी का नाम रूपादे था।
- मल्लीनाथजी का प्रमुख मन्दिर लूनी नदी के किनारे तिलवाडा, बाडमेर मे स्थित है जहां प्रतिवर्ष चैत्रमाह मे कृष्णपक्ष की एकादशी से शुक्ल पक्ष की एकादशी तक इनके नाम से मल्लीनाथ जी का पशु मेला आयोजित किया जाता है जो मुख्यतः होली के दूसरे दिन से भरता है
- इनके गुरू का नाम उगमसिंह भाटी था जिनसे इन्होने योग साधना की शिक्षा ग्रहण की थी।
तल्लीनाथ जी-
- तल्लीनाथ जी शेरगढ (जोधपुर) ठिकाने के राजा थे
- इनके पिता का नाम वीरमदेव था
- इनका वास्तविक नाम गांगदेव राठौड था
- इनके गुरू का नाम जलन्धर नाथ था।
- तल्लीनाथजी का प्रमुख मन्दिर पांचोटा गांव जालौर मे बना है जहां इसे ओरण के देवता के रूप मे पूजते है
- बाडमेर के मालानी क्षेत्र का नाम इन्ही के नाम पर पडा।
वीर बिग्गाजी-
- बिग्गाजी का जन्म 1301 ई. मे बीकानेर के रीड़ी गांव के एक जाट परिवार मे हुआ था।
- पिता का नाम राव महन तथा माता का नाम सुल्तानी था जो मुस्लिमों से गाय छुडाते समय अपने प्राण त्याग दिये थे
- यह जाखड समाज के कुल देवता है।
पनराजजी-
- पनराज जी का जन्म जैसलमेर जिले के नंगा गांव मे हुआ था।
- पनराजजी ने गायों की रक्षा करते हुए अपने प्राण त्याग दिये थे।
- इनकी स्मृति मे वर्ष मे दो बार भाद्रपद शुक्ल दशमी और माघ के शुक्ल पक्ष की दशमी को मेला आयोजित होता है।
भूरिया बाबा-
- भूरिया बाबा मीणा जनजाति के इण्टदेव देवता है मीणा जनजाति के लोग इनकी कसम खाकर कभी झूठ नहीं बोलते है।
- इनका प्रसिद्ध मन्दिर गोमतेश्वर महाराज या भूरिया बाबा नाम से प्रतापगढ से स्थित है।
वीर फत्ताजी-
- वीर फत्ताजी का जन्म जालौर जिले के साथू गांव मे हुआ था
- साथू गांव मे इनकी स्मृति मे भाद्रपद की नवमी को विशाल मेला आयोजित किया जाता है
भोमिया जी-
- भोमियाजी गांव -गांव मे भूमि के रक्षक के रूप मे पूजे जाते है।
बाबा मामादेव-
- बाबा मामादेव वर्षा के लोक देवता के रूप मे पूजे जाते है। यह एक विशिष्ट देवता है जिनकी मूर्ति पत्थर की नही होती बल्कि लकडी का एक कलात्मक तोरण होता है। जो गांव के बाहर सड़क पर पूजा जाता है।
- मामादेव जी को प्रसन्न करने के लिए भैंसे की बली दी जाती है
- राजस्थान मे जब कोई राजपुत योद्धा लोक कल्याणकारी कार्य हेतु वीरगति को प्राप्त होता था तो उस विशेष योद्धा (मामाजी) के रूप मे पूजा जाता है इनकी मूर्तियां जालौर के कुम्हार बनाते है जिन्हे मामाजी के घोडे कहते है।
- पश्चिमी राजस्थान मे ऐसे अनेक मामाजी है धोणेरी वीर, बाण्डी वाले मामाजी, सोनगरा मामाजी आदि।
बाबा झुंझारजी-
- झुंझारजी का जन्म सीकर जिले की नीमकाथाना तहसील के इमलोहा गांव के राजपुत परिवार मे हुआ था। स्यालोदडा मे इन्होने गायांे की रक्षा करते हुए अपने प्राण त्याग दिये थे। इसी समय बाबा झुंझारजी सगे तीन भाईयों के शीश काट दिये थे इसी वक्त वहां से एक बारात गुजरी जिसमे दुल्हा-दुल्हन का वध कर दिया था।
- स्यालोदडा गांव मे प्रतिवर्ष रामनवमी को बाबा झुंझार जी का मेला लगता है। इनकी पूजा खेजडी वृक्ष के नीचे की जाती है।
- स्यालोदडा गांव मे पांच पत्थर की मूर्तियां लगी हुई जिनमे तीन भाईयों व दुल्हा-दुल्हन की मूर्तियां है। बाद मे बाबा झुंझारजी लोक देवता के नाम से लोकप्रिय हुए।
डूंगजी-जवाहर जी-
- डूंगजी का जन्म सीकर जिले के बाठोठ-पटोदा गांव मे हुआ डूंगजी-जवाहरजी दोनो क्रमशः चाचा भतीजे थे।
- ये अमीर लोगो का धन लूटकर गरीबों मे बांटते थे।
- एक बार अंग्रेजों ने डूंगजी (चाचा) को गिरफ्तार करके आगरा के किले मे कैद कर दिया। वहां से इनके भतीजे जवाहरजी व दो अन्य साथी करणा मीणा व लोटा जाट के सहयोग से छुड़वा लाए। छुटने के बाद इन्होंने नसीराबाद छावनी को लूटा। उस समय राजस्थान ।ण्ळण्ळण् सढ़रलैण्ड था। बाद में डंूगजी को जोधपुर के महाराजा तख्तसिंह व जवाहरजी को बीकानेर के महाराजा रतनसिंह ने अपने पास रख लिया।
हरिराम जी-
- बाबा हरिराम जी का जन्म विक्रम संवत 1959 मे हुआ। इनके पिता का नाम रामनारायण व माता का नाम चंदणी देवी था।
- इनका प्रमुख मंदिर नागौर जिले झोरड़ा गांव मे है जहां सांप रक्षक देवता के रूप मे पूजे जाते है।
- इनके मन्दिर मे सांप की बांबी की पूजा की जाती है।
केशरिया कुंवर जी-
- केशरिया कुंवर जी गोगा जी के पुत्र थे। जो सांप रक्षक देवता के रूप मे पूजे जाते है इनके थान पर सफेद रंग की दजा फहराते है
आलमजी-
- आलमजी का प्रमुख मंदिर बाडमेर जिले के धोरी मन्ना नामक स्थान पर है जहां भाद्रपद की शुक्ल पक्ष की द्वितीया को मेला लगता है धोरीमन्ना को आलम जी का धोरा एवं घोडो का तीर्थ स्थल कहा जाता है
इलोही जी-
- राजस्थान के मारवाड मे छेडछाड के अनोखे लोक देवता के रूप मे पूज्य है।
- इलोजी की मारवाड मे मान्यता है कि ये अविवाहितो को दुल्हन, नव दम्पत्तियों को सुखद गृहस्थ जीवन और बांझ स्त्रियों को संतान देने मे सक्षम है जबकि वे स्वयं जीवन भर कुंवारे रहे। इनकी मनौती कुंकुम-रोली से मनाई जाती है।
ओम बन्ना-
- ओम बन्ना का पूरा नाम ओम सिंह राठौड है ये चोटिला ठिकाने (पाली) के ठाकुर जोग सिंह जी के पुत्र थे राजपूतों में युवाओं को बन्ना कहा जाता है इसी वजह से ओम सिंह राठौड सभी मे ओम बन्ना के रूप में प्रसिद्ध हुए।
- इनके मन्दिर मे बुलेट मोटरसाइकिल की पूजा होती है।
- सन् 1988 में ओम बन्ना अपनी बुलेट पर अपने ससुराल बगड़ी से अपने गांव चोटिला आ रहे थे तभी उनका एक्सीसेण्ट एक पेड़ से टकराने हो गया। उसी वक्त उनकी मृत्यु हो गई। एक्सीसेंट के बाद उनकी बुलेट मोटरसाइकिल थाने ले जाई गई अगले दिन वह बुलेट उसी स्थान पर चली गई ऐसा कई बार हुआ ग्रामीण और पुलिस वालों ने ये चमत्कार मानकर उस बुलेट को वहीं पर रख दिया। यह एक दुर्घटना क्षेत्र था लेकिन उस दिन के बाद वहां कोई दुर्घटना नही घटी।