परिभाषा- ‘‘निश्चित प्रमाणों पर आधारित लेखन सामग्री जिसे पढा जा सके तथा उसके अर्थ को ग्रहण किया जा सके, इतिहास कहलाता है।
विकास क्रम- पाषाण काल (25 लाख ई.पू. से 1 हजार ई.पू.)
- पुरा पाषाण काल- 25 लाख ई.पू. – 10 हजार ई.पू.
- आविष्कार- शिकार व अग्नि
- मध्य पाषाण काल- 10 हजार ई.पू. – 4 हजार ई.पू.
- पशुपालन
- नव पाषाणकाल- 4000 ई.पू. – 1000 ई.पू.
- आविष्कार- कृषि, स्थायी निवास, मृदभाण्ड, पहिया,
- ताम्र + पाषाण- आहड, गिलूण्ड, गणेश्वर,
- सिन्धु सभ्यता- (कांस्य युगीन)
सिन्धुघाटी सभ्यता-

- 1826 मे चार्ल्स मैसन ने पहली बार हडप्पा क्षेत्र से सिन्धु घाटी सभ्यता के अवशेष प्राप्त किए। किन्तु खुदाई का कार्य नही किया गया।
- 1921 मे रायबहादुर दयाराम साहनी ने रावी नदी के तट पर हडप्पा की खुदाई प्रारम्भ करवाई।
- 1922 मे राखलदास बनर्जी ने सिन्धु नदी के तट पर मोहनजोदडो की खुदाई से अवशेष प्राप्त किए।
- प्रारम्भिक स्थल सिन्धु नदी व उसकी सहायक नदी के तट पर होने के कारण इस सभ्यता को जौन मार्शल ने सिन्धु घाटी सभ्यता नाम दिया।
- यह सभ्यता कांस्य युगीन है, जिसका समयकाल 2350 ई.पू. से 1750 ई.पू. स्वीकार किया जाता है।
- सिन्धु घाटी सभ्यता एक नगरीय सभ्यता थी इसका नगर नियोजन समकालीन सभ्यताओं मे सर्वश्रेष्ठ है।
- इस सभ्यता मे पक्की ईंटों के मकान जल निकासी की उत्तम व्यवस्था, व्यवस्थित नगर नियोजन जिसमे समकोण पर सडकों का एक-दूसरे को काटना तथा पक्की सड़के प्रमुखता से प्राप्त हुई है।
- सिन्धु घाटी के लोग सम्भवतः भूमध्य सागरीय जलवायु के द्रविड थे।
- सिन्धु घाटी सभ्यता शांतिपूर्ण सभ्यता थी, समाज मातृसत्तात्मक था।
- सिन्धु घाटी सभ्यता के लोग सिक्कों के प्रचलन से परिचित नहीं थे।
- सिन्धु घाटी के सम्बन्ध मे जानकारी का मुख्य स्त्रोत ‘सेलखडी से बनी मुहरें‘ या ‘मुद्राएँ‘ है।
- सिन्धु घाटी मे सर्वाधिक मोहरें वर्गाकार प्राप्त हुई हैं तथा सर्वाधिक मुद्राएँ प्राप्त करने का स्थान ‘मोहनजोदडों‘ है।
- सर्वाधिक मुद्राओं पर एक श्रृंगी बैल (कुकुदमान वृषभ) का चित्रांकन प्राप्त हुआ है, इसे सिन्धु घाटी सभ्यता का राजकीय चिह्न माना जाता है
- इस लिपि को पढने का प्रयास सर्वप्रथम वेडेन ने किया किन्तु अभी तक सफलता प्राप्त नहीं हो पायी है।
- सिन्धु घाटी के लोग लोहे तथा घोडे़ से परिचित नहीं थे।
- इस सभ्यता काल मे लगभग सभी प्रचलित धातुओं का उपयोग किया गया।
- सिन्धु घाटी का समाज दो या तीन स्तरों मे बँटा हुआ था। जिसका आधार आर्थिक था।
- नगर नियोजन को देखकर अनुमान लगाया जाता है कि कोई नगर निकायों जैसी संस्थाएँ अस्तित्व मे थी।
- सिन्धु घाटी के लोग सामुदायिक जीवन पद्धति से सम्बन्धित थे।
- अन्नागार और स्नानागार इसके प्रमाण है।
- लोकतंत्र या राजतंत्र अथवा किसी अन्य शासन प्रणाली को निश्चित रूप से स्वीकार नहीं किया जा सकता।
- सुमेरियन सभ्यता के कीलाक्षर अभिलेखों मे लिखा है कि सुमेर का व्यापार मेलुहा (सिन्धु घाटी सभ्यता) के साथ होता था जिससे माकन (ओमान) तथा दिलमुन (बहरीन द्वीप) बिचोलिए का कार्य करते थे।
- स्टुअर्ट पिग्गट ने हडप्पा व मोहनजोदडों को किसी प्राचीन साम्राज्य की दो जुडवां राजधानियाँ कहा है।
- इतिहासकार दशरथ शर्मा ने कालीबंगा को इस साम्राज्य की तृतीय राजधानी कहा है।
सिन्धु घाटी के स्थल- अब तक लगभग 350 स्थलों की खुदाई हो चुकी है, तथा सर्वाधिक स्थल गुजरात से प्राप्त हुए है।
- हडप्पा- 1921 मे दयाराम साहनी ने पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के मोंटगोमरी जिले मे रावी नदी के तट पर इस स्थल की खुदाई का कार्य प्रारम्भ करवाया।
- प्रमुख अवशेष- मातृदेवी की मूर्ति, स्वास्तिक का चिह्न, नर्तक की मूर्ति, नरकबन्ध, R-37 कब्रिस्तान, शंख का बैल
- मोहनजोदडो- मृतकों का टीला, सिन्धु का नखलिस्तान मोहनजोदडो की खोज 1922 मे राखलदास बनर्जी ने पाकिस्तान के सिन्ध प्रांत मे लरकाना जिले मे सिन्धु नदी के तट पर की।
- प्रमुख अवशेष- पशुपति शिव की मूर्ति, काँसे की बनी नर्तकी की मूर्ति, प्राचीन तबले के अवशेष, योगी की मूर्ति, वस्त्र व धागे के अवशेष, विशाल स्नानागार, विशाल अन्नागार, स्तूप टीला सभ्यता
- विदेशी कपास को सिण्डन कहते थे जिससे सिन्धु शब्द बना।
- विशाल अन्नागार- मोहनजोदडों की सबसे बडी इमारत।
- स्तूप टीला सभ्यता- कुषाण वशीय शासक कनिष्क ने एक स्तूप का निर्माण करवाया था, इसी स्थल पर मोहनजोदडों की खुदाई की गई। अतः इसे स्तूप टीला सभ्यता स्थल भी कहते है।
- सिन्धु घाटी के सभी स्थलों मे से मोहनजोदडों का क्षेत्रफल सर्वाधिक है।
- कालीबंगा- कालीबंगा का अर्थ है काले रंग की चूडियाँ।
- राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले मे स्थित इस स्थल की खोज 1951-52 मे अमलानन्द घोष ने की।
- घग्घर नदी के किनारे स्थित, इस स्थल की खुदाई का कार्य 1961 मे बी.बी. लाल और बी.के. थापर ने करवाया। (बृजवासी लाल व बाल कृष्ण थापर)
- प्रमुख अवशेष- जुते हुए खेत, सरसों व जले हुये चावल के प्रमाण, ऊँट की हड्डियाँ, अग्नि कुण्ड, युगल शवाधान, शल्य चिकित्सा के प्रमाण, मेसोपोटामिया की बेलनाकर मुद्रा, कच्ची ईंटों के मकान (व्यवस्थित), चित्रांकित फर्श।
- लोथल- (व्यापारिक नगर) गुजरात- राज्य मे अहमदाबाद जिले मे भोगवा नदी के किनारे 1975 मे एस.आर. राव ने लोथल की खोज की (शिकारीपुरा रंगनाथ राव)
- लोथल को लघु मोहनजोदडों तथा लघु हडप्पा भी कहा जाता है।
- प्रमुख अवशेष- अग्नि कुण्ड, शल्य-चिकित्सा के प्रमाण, युगल शवाधान, बंदरगाह/डाॅकयार्ड/गोदीबाडा
- बंदरगाह- सिन्धु घाटी सभ्यता की सबसे बडी संरचना। फारस की मुद्रा (ईरान), नाव का चित्रांकन, मनके बनाने का कारखाना (मिट्टी, पत्थर, हाथीदांत), माप-तौल के पैमाने (16 के गुणज मे), दरवाजे के स्थान पर खिडकियाँ, चावल उत्पादन के प्राचीनतम प्रमाण।
- नोटः- इसे सिन्धु घाटी सभ्यता का प्रथम औद्योगिक नगर/व्यापारिक नगर कहते है।
- चन्हूदडो- पाकिस्तान के सिन्ध प्रांत मे सिन्धु नदी के तट पर इस स्थल की खोज 1931 मे एन.जी.मजूमदार ने की। तथा 1935 मे इसकी विस्तृत खुदाई का कार्य ‘अर्नेस्ट मैके‘ ने करवाया। (नोनीगोपाल-मजूमदार)
- प्रमुख अवशेष- मनके बनाने का कारखाना
- नोट- इसे सिन्धु घाटी सभ्यता का द्वितीय औद्योगिक नगर/व्यापारिक नगर कहते है।
- बिल्ली के पीछे कुत्ते के दौडने के निशान (निशान)
- नोट- लोथल और चन्हूदडों दोनों स्थल एक ही टीले में स्थित स्थल है।
- धौलावीरा- गुजरात राज्य के कच्छ जिले मे स्थित धौलावीरा की खोज श्रीजगपति जोशी ने की।
- धौलावीरा का अर्थ होता है- सफेद कुआँ
- मुख्य अवशेष-
- स्टेडियम के प्रमाण व साइन बोर्ड
- त्रिस्तरीय निवास- (जूनीकरण, गुजरात मे भी स्टेडियम तथा त्रिस्तरीय निवास की संभावना व्यक्त की गई है)
- बाँध निर्माण व नहरों के अवशेष मिलने के कारण इसे सिन्धु घाटी सभ्यता के अन्तर्गत जलाशयों का नगर भी कहते है।
- नोटः- धौलवीरा वर्तमान भारत मे स्थित सिन्धु घाटी का सबसे बडा स्थल है।
- सुरकोटडा- गुजरात के कच्छ जिले मे स्थित इस स्थल को खोज जगपति जोशी ने की।
- प्रमुख अवशेष- एक मात्र स्थल जहाँ से घोडे की हड्डियाँ प्राप्त हुई है।
- रोपड- पंजाब मे सतलज नदी के किनारे स्थित इस स्थल से मनुष्य के साथ कुत्ते को दफनाने के प्रमाण प्राप्त हुए है।
- बालाकोट- पाकिस्तान मे स्थित इस यह स्थल सीप उद्योग के लिए प्रसिद्ध था।
- कोटदीजी- पाकिस्तान मे स्थित इस स्थल से दो बार अग्निकाण्ड के प्रमाण प्राप्त हुऐ है।
- बनवाली- हरियाणा के हिसार जिले मे स्थित है।
- प्रमुख अवशेष- जल निकासी की व्यवस्था का अभाव, जौ और सरसों के अवशेष
- कुणाल- हरियाणा में स्थित इस स्थल से चाँदी के दो मुकुट प्राप्त हुए हैं। जिससे राजतंत्रात्मक शासन प्रणाली का अनुमान लगाया जाता है।
- रोजदी- गुजरात में स्थित इस स्थल से हाथी के अवशेष प्राप्त हुये है।
- दायमाबाद- महाराष्ट्र में स्थिल इस स्थल से काँसे का एक रथ मिला है, जिसको चलाने वाला एक पुरूष है तथा रथ को ले जाने वाले दो बैल है।
मुख्य विषय-
- सिन्धु घाटी के लोग सूती तथा ऊनी वस्त्रों का उपयोग करते थे।
- सिन्धु घाटी के लोग काले मृद-भाण्ड (मिट्टी के बर्तन) का प्रयोग करते थे।
- सिन्धु घाटी के लोग मिस्र और सुमेर (मोसोपोटामिया) के साथ अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार निश्चित रूप से करते है।
- सिन्धु घाटी की निर्यात की मुख्य वस्तु सूती वस्त्र तथा मनके थे।
आयात की वस्तुएँ निम्न प्रकार थी-
क्र. | आयात की वस्तुएँ | स्थल |
1. | सोना | ईरान, अफगानिस्तान, दक्षिणी भारत |
2. | टिन | ईरान, अफगानिस्तान |
3. | सीसा | ईरान, अफगानिस्तान |
4. | चाँदी | ईरान, अफगानिस्तान |
5. | लाजवर्द मणि | बदख्शाँ (अफगास्तिान) |
6. | ताँबा | खेतडी, ब्लूचिस्तान |
सिन्धु घाटी के लोगों ने गेहूँ, जौ, चावल, बाजरा, सरसों, कपास तथा तिल जैसी फसलों का उपयोग किया।
सिन्धु घाटी सभ्यता के प्रमुख स्थल व उनकी स्थिति-
क्र. | सभ्यता | स्थल |
1. | मुण्डीगाक, शोर्तुगोई | अफगानिस्तान |
2. | हडप्पा, मोहनजोदडो, चन्हूदडो, लोहमजोदडो, जुदेरजोदडो, रहमानढेरी, अल्लाहदीनो, आमरी, कोटदीजी, बालाकोट, जलीलपुर, डाबरकोट, सुत्कजेंडोर, डेरा, इस्माइल खाँ। | पाकिस्तान |
3. | माँडा | कश्मीर |
4. | रोपड़, संघोल, चक-86 | पंजाब |
5. | कुणाल, बनवाली, राखीगढी, मिताथल | हरियाणा |
6. | आलमगीरपुर, बडागाँव | उत्तरप्रदेश |
7. | दायमाबाद | महाराष्ट्र |
8. | लोथल, धौलावीरा, सुरकोटड़ा, रोजदी, रंगपुर, मालवण, प्रभासपाटन, देसलपुर | गुजरात |
मुख्य विषय- सिन्धु घाटी सभ्यता मे उपयोग मे लाई गई ईंटों का आकृति अनुपात 4ः2ः1 था। रंगपुर और प्रभासपाटन मे प्राप्त अवशेष सिन्धु सभ्यता के अन्तिम युग से सम्बन्धित है, अतः इन स्थलों को सिन्धु घाटी के औरस पुत्र कहा जाता है।
सिन्धु घाटी सभ्यता का पतन- इस सम्बन्ध में विभिन्न मत प्राप्त होते है।
- आक्रमण- गार्डन चाइल्ड और व्हीलर द्वारा मोहनजोदडो में प्राप्त एक मकान के अस्थि अवशेषों को देखकर आक्रमण की संभावना व्यक्त की है। व्हीलर ने इस युद्ध का उत्तरदायित्व इन्द्र पर स्थापित किया है।
- बाढ- एस.आर. राव और अर्नेस्त मैके- इन दोनों इतिहासकारों ने लोथल व चन्हूदड़ों की परिस्थितियों के आधार पर बाढ की संभावना को व्यक्त किया है जो सर्वाधिक मान्य मत है।
- जलवायु परिवर्तन- राजस्थान मे टेथिस सागर के स्थान पर रेगिस्तान की स्थिति को देखकर अमलानन्द घोष ने जलवायु परिवर्तन के आधार पर सिन्धु घाटी के लोगों के पलायन का मत अभिव्यक्त किया है जो सर्वमान्य नहीं है।
- प्राकृतिक आपदा/महामारी- के.यू.आर. केनेडी ने मोहनजोदडों से प्राप्त कुछ कंकालों मे मलेरिया के साक्ष्य को आधार बनाकर अपने विचार रखे। किन्तु अधिक प्रमाण इस संदर्भ में प्राप्त नहीं होते है।
- प्रशासनिक शिथिलता- जाॅन मार्शल
- नदियों के मार्ग मे परिवर्तन- माधोस्वरूप वत्स