मौर्य काल – मौर्यकालीन राजवंश | Maurya Kalin Rajvansh

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maurya kalin rajvansh

मौर्याेत्तर कालीन राजवंश – Maurya Kalin Rajvansh

शुंग वंश (185 या 184 ई.पू. – 72 ई.पू.)

  • मौर्यो के बाद शुंग वंश शासन में आया और शुंगों ने 187 ई. पू. से 75 ई.पू. यानी 112 वर्षो तक शासन किया।
  • सम्भवतः शुंग उज्जैन प्रदेश के थे। शुंग लोग ब्राह्मण थे और शासन में उच्च पदों पर आसीन थे।
  • ऐसा कहा जाता है कि पुष्यमित्र शुंग मौर्य राजा बृहद्रथ का सेनापति था और एक बार जब राजा सेना का अवलोकन कर रहा था तब सेनापति पुष्यमित्र ने उसकी हत्या कर दी।
  • पुष्यमित्र शुंग राजा बनने के बाद भी अपने आपको सेनापति ही कहता रहा।
  • अवन्ति का राज्य मगध से दूर होने के कारण पाटलिपुत्र से उस पर प्रशासनिक नियंत्रण कर पाना कठिन हो रहा था। इसलिए पुष्यमित्र ने विदिशा को अपनी दूसरी राजधानी बनाया।
  • पुष्यमित्र शुंग के शासन की पहली घटना थी – विदर्भ के साथ उसका युद्ध। इस समय यज्ञसेन विदर्भ का शासक था और वह मौर्यो की राज्यसभा के एक मंत्री का सम्बन्धी था।
  • पुष्यमित्र के पुत्र अग्निमित्र ने यज्ञसेन को हराकर विदर्भ को अपने साम्राज्य में शामिल कर लिया।
  • पुष्यमित्र को यवनों के आक्रमण का भी सामना करना पड़ा। पुष्यमित्र शुंग ने इस युद्ध के पश्चात अश्वमेघ यज्ञ किया।
  • कालिदास द्वारा रचित ‘मालविकाग्निमित्रम्‘ नामक संस्कृत नाटक में यह उल्लेख है कि वासुमित्र ने यवनों को सिन्धु नदी के तट पर पराजित किया।
  • दिव्यावदान के अनुसार पुष्यमित्र ने बौद्ध धर्म का विरोध किया और बौद्धों को सताया था लेकिन इस तथ्य को देखते हुए कि साँची और भरहुत के स्तूपों का पुष्यमित्र के शासनकाल में ही विस्तार किया गया था, यह आरोप सच्चा प्रतीत नहीं होता।
  • पुष्यमित्र ने 36 वर्षो तक शासन किया और उसके बाद उसका पुत्र अग्निमित्र 148 ई.पू. में गद्दी पर बैठा।
  • अग्निमित्र अपने पिता के शासनकाल में विदिशा का शासक रहा।
  • कालिदास के नाटक मालविकाग्निमित्रम् का नायक यही अग्निमित्र था।
  • अग्निमित्र के बाद जेठमित्र (ज्येष्ठ मित्र) गद्दी पर बैठा और उसके बाद वसुमित्र गद्दी पर बैठा।
  • भागवत शुंग वंश का एक प्रतापी राजा था। बेसनगर स्तम्भलेख में इसका नाम भागभद्र मिलता है। इसकी राज्यसभा में ऐंटियालकिडास का राजदूत हेलियोडोरस रहा जिसने विदिशा में वासुदेव के सम्मान में गरुण स्तम्भ स्थापित किया।
  • अन्तिम शासक देवभूति था जिसकी 72 ई.पू. में उसके मंत्री वासुदेव कण्व ने हत्या कर कण्व वंश की स्थापना की।
  • शुंग काल में विदिशा का राजनैतिक एवं सांस्कृतिक महत्व।
  • शुंग काल में संस्कृत भाषा का पुररुत्थान हुआ जिसमें महर्षि पतंजलि का विशेष योगदान था।

कण्व वंश

  • 72 ई.पू. में वासुदेव कण्व ने मगध में शुंगों के स्थान पर कण्व वंश की स्थापना की।
  • शुंगों की भाँति कण्व की ब्राह्मण थे।
  • कण्व वंश में केवल चार शासक हुएवसुमित्र, भूमिमित्र, नारायण व सुशर्मा
  • पुराणों में इस वंश के राजाओं को ‘शुंग भृत्व‘ या शुंगों के मंत्री भी कहा गया है।

सातवाहन वंश

  • पुराणों में सातवाहन शासकों को आन्ध्र-जातीय तथा आन्ध्र-भृत्य कहा गया है।
  • सातवाहन वंश का संस्थापक सिमुक (शिमुक) था।
  • इनकी राजधानी पैठन या प्रतिष्ठान थी।
  • सिमुक के पश्चात् उसका भाई कृष्णा और उसके बाद श्री शातकर्णी प्रथम गद्दी पर बैठा।
  • श्री शातकर्णी प्रथम ने दो अश्वमेघ यज्ञ तथा एक राजसूर्य यज्ञ कराए।
  • नानाघाट और नायनिका अभिलेखों से शातकर्णी प्रथम की उपलब्धियों के बारे में जानकारी मिलती है।
  • शातकर्णी प्रथम को दक्षिणापथ का स्वामी भी कहा जाता है। उसका नाम साँची स्तूप के एक द्वार पर भी उल्लिखित है।
  • सातवाहनों का 17वां राजा हाल हुआ जो एक विद्वान और कवि के रूप में विख्यात है उसी ने प्राकृत में ‘गाथा सप्तशती‘ की रचना की जिसमें ग्रामीण जीवन की मनोहर झाँकी मिलती है।
  • वृहत्कथा का रचयिता गुणाढ्य तथा कातन्त्र नामक संस्कृत व्याकरण का लेखक शर्ववर्मन हाल के समकालीन थे। हाल के काल में अमरावती स्तूप का विस्तार हुआ।

गौतमी पुत्र शातकर्णी (106-130 ई.पू.)

  • गौतमीपुत्र शातकर्णि ने 106 ई. से 130 ई. तक लगभग 24 वर्ष शासन किया। अभिलेखों में उसे शक, यवन पह्लव आदि विदेशी जातियों का विनाशकर्ता कहा है।
  • उसने शक्तिशाली शक सरदार नहपान के क्षहरात वंश का अन्त किया। नासिक प्रशस्ति में उसे क्षहरात वंश का विनाशक तथा सातवाहन वंश की प्रतिष्ठा का पुनः संस्थापक कहा है।
  • गौतमीपुत्र शातकीर्ण पहला ऐसा शासक था जिसने अपने नाम के साथ मातृनाम जोड़ा।
  • नासिक प्रशस्ति तथा गौतमी बलश्री के अभिलेखों से गौतमी पुत्र शातकर्णि की उपलब्धियों के बारे में जानकारी मिलती है।
  • गौतमीपुत्र शातकीर्णि ने वेणकटक स्वामी की उपाधि धारण की तथा वेणकटक नामक नगर की स्थापना की।
  • नासिक अभिलेख में उसे क्षत्रियों का दर्प और मान को चूर करने वाला तथा परशुराम सा पराक्रमी एक ब्राह्मण कहा गया है।
  • गौतमीपुत्र शातकर्णि को त्रि-समुद्रतोय कहा जाता है जिसका अर्थ है कि उसके घोड़े ने तीन समुद्रों का पानी पिया था।

वाशिष्ठी पुत्र पुलमावि (130-154 ई.पू.)

  • वाशिष्ठी पुत्र पुलमावि ने नवनगर नामक नगर की स्थापना कर ‘नवनगर स्वामी‘ की उपाधि धारण की। इसे ‘दक्षिणा पथेश्वर‘ भी कहा जाता है।
  • पुलमावि के सिक्के और शिलालेख आन्ध्रप्रदेश में पाए गए है।इससे यह पता चलता है कि आन्ध्र ईसा की दूसरी शताब्दी में सातवाहन साम्राज्य का हिस्सा बन गया था।
  • इसे ‘‘प्रथम आन्ध्र सम्राट‘‘ भी कहा जाता है।
  • सम्भवतः सातवाहन साम्राज्य को शकों के घातक आक्रमण से बचाने के लिए पुलमावि ने शक शासक रुद्रदामन (रुद्रद्रामा) की बेटी से विवाह किया।
  • श्री यज्ञ शातकर्णि (165-195 ई.पू.) सम्भवतः सातवाहन वंश के महान शासकों में से अन्तिम था। वह व्यापार और जलयात्रा का प्रेमी था। इसके सिक्कों पर जहाज के साथ मछली और शंख चित्रित किए गए है।

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