वैदिक संस्कृत से विकसित होकर नागर अपभ्रंश ने राजस्थानी भाषा का रूप धारण किया है। इसकी डिंगल शैली में बहुत अधिक साहित्य लिखा गया है। राजस्थानी भाष के साहित्य को हिन्दी साहित्य के प्रारम्भिक काल का साहित्य माना जाता है।
ऐतिहासिक घटनाएं तथा वीरोचित स्वभाव राजस्थानी साहित्य का मुख्य आधार है यह गद्य और पद्य दोनों में लिखा गया है।
प्रारम्भिक काल-
राजस्थानी भाषा में सन् 1460 ई. तक जो साहित्य लिखा गया उसे प्रांरभिक काल का साहित्य कहा जाता है। इस काल के कई रचनाकारों में से नरपति नाल्ह, चंद वरदाई, पद्मनाभ आदि चर्चित रचनाकार है।
पूर्व मध्यकाल-
राजस्थानी भाषा में सन् 1460 से 1700 ई. तक जो साहित्य लिखा गया है उसे पूर्व मध्यकाल का साहित्य कहा जाता है। पृथ्वीराज राठौड, नाभादास, केशवदास, दुरसाजी आढ़ा आदि इस काल के प्रमुख रचनाकार है। कृष्ण भक्त मीराबाई इसी काल में ही हुई है। इसके पद पूरे भारत में गाए जाते है।
उत्तर मध्यकाल-
राजस्थानी भाषा में 1700 से 1900 ई. तक जो साहित्य लिखा गया है। उसे उत्तर मध्यकाल का साहित्य कहा जाता है इस काल में वीरता, श्रृंगार, भक्ति तथा नीति प्रधान रचनाओं का लेखन अधिक हुआ है। इन रचनाओं के स्तर, कथ्य तथा विविधता को देखते हुए इस काल को राजस्थानी साहित्य का स्वर्ण युग कहा जाता है जग्गाजी खिड़िया, वीरभाण, करणीदान, किरपाराम, बांकीदास, किसनाजी आढ़ा, वृंद आदि इस काल के प्रमुख रचनाकार है। सुंदर कुंवरि तथा गवरीबाई इस काल की प्रसिद्ध कवयित्रियाँ है। गवरीबाई को वागड़ की मीरा कहा जाता है।
आधुनिक काल-
- 1857 ई. के बाद लिखे गए साहित्य को आधुनिक काल का साहित्य कहा जाता है। राजस्थानी के गद्य तथा पद्य साहित्य की कई विधाओं पर पुस्तकें प्रकाश में आई जिनमें गांधीवादी रचनाएं भी है। राष्ट्रीय धारा के चर्चित रचनाकारों में सूर्यमल्ल मिश्रण, बख्तावरजी, केसरीसिंह बारहठ, नाथूसिंह महियारिया, उदयराज उज्जवल आदि प्रमुख है।
- हिन्दी भाषा के विकास में भी राजस्थानी साहित्य की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
- राजस्थानी भाषा का शब्दकोश जोधपुर के सीताराम लालस ने किया। बद्रीनाथ साकरिया ने भी एक अलग शब्दकोश तैयार किया। पद्मश्री विजयदान देथा ने राजस्थान के जनजीवन में बिखरी पड़ी हजारों लोककथाओं कों संग्रहीत किया है जो वातां री फुलवाड़ी के नाम से प्रकाशित हुई है। ये बारह खण्ड़ो मंे उपलब्ध है।
- ऐसा ही राजस्थानी भाषा में जागतीजोत मासिक पत्रिका बीकानेर से प्रकाशित किया है।
प्रचलित साहित्यिक शब्दावली-
- राजस्थान साहित्य अकादमी की स्थापना 1958 ई. में हुई।
- राजस्थान जन मानस में राष्ट्रीय चेतना का शंखनाद सूर्यमल मिश्रण ने किया।
- नोट- राजस्थान साहित्य अकादमी की स्थापना से पूर्व सप्त किरण 1955 ई. में तथा रॉगेय राघव की कृति कब तक पुकारू का प्रकाशन 1957 ई. में हो गया था।
महाकाव्य-
- जिस प्रबन्ध काव्य में 8 से अधिक सर्ग हो उसे महाकाव्य कहा जाता है
- इसमें वीर नायक, श्रृंगार रस या वीर रस में से किसी एक की प्रधानता होती है जैसे- हमीर महाकाव्य (नयनचन्द्र सूरी)
रासो-
- जिस काव्य में युद्ध और नायक की वीरता का वर्णन होता है उसे रासो कहा जाता है जैसे- पृथ्वीराज रासो (कवि चन्दवरवाई)
दूहा (दोहा)-
- ये राजस्थान के सबसे प्राचीन व लोकप्रिय छन्द होते है इनमें सभी रसो एवं विषयों की व्यंजना होती है
- यह अपभ्रंश साहित्य से राजस्थानी भाषा में आया है
- इनमें चार चरण होते हैं जिसके प्रथम व तृतीय चरण में 13 मात्राएं एवं द्वितीय व चौथे चरण में 11 मात्राएं होती है।
सोरठा-
- दूहा व दोहे की मात्राओं को उल्टा कर दिया जाए, तो वह सोरठा काव्य कहलाता है
- राजस्थानी व गुजराती भाषा में सोरठिया दूहा कहते है।
ख्यात-
- ख्यात शब्द को ख्याति का अपभ्रंश माना जाता है।
- मध्यकालीन राजस्थानी साहित्य में गद्य भाग में इतिहास लेखन को ख्यात में लिपिबद्ध किया गया
- इनमें उन बातों का संकलन होता है जो प्रसिद्ध हो जाती है तथा इसी में बात, वार्ता, हकीकत, वंशावली आदि लिखे जाते है जैसे- नैणसी री ख्यात (मुहणोत नैणसी)
विगत-
- विगत से तात्पर्य विस्तृत विवरण से होता है
- ये ग्रन्थ किसी राज्य के राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक व सांस्कृतिक इतिहास का वर्णन करने के लिए लिखे जाते है, जैसे- मारवाड़री परगना विगत (मुहणोत नैणसी)
बचनिका-
- गद्य व पद्य मिश्रित रचना को बचनिका कहते है,
- यह विद्या संस्कृत साहित्य से राजस्थानी साहित्य में आई है, जैसे- अचलदास खींच री बचनिका (शिवदास गाडण), राठौड़ रतनसिंह महेश दासौत री बचनिका (खड़िया जग्गा)
विलास-
- इन काव्य ग्रंथों में आमोद-प्रमोद विषयक वर्णन किया जाता है
- ऐतिहासिक घटनाओं को भी इन ग्रन्थों में संकलित किया जाता है।
परची-
- संत महात्माओं का जीवन चरित जिन पद्यबद्ध रचनाओं में मिलता है उन्हें राजस्थानी भाषा में परची साहित्य या ग्रन्थ कहा जाता है
- इन काव्यों में संत के व्यक्तिगत जीवन, आदर्श सिद्धान्त तथा नियमों का उल्लेख होता है जैसे- कबीरदास की पर्ची, संत दादूजी की पर्ची, संत पीपाजी की पर्ची, संत रैदास की पर्ची।
प्रकाश-
- किसी वंश अथवा व्यक्ति विशेष की उपलब्धियों या घटना विशेष पर प्रकाश डालने वाले साहित्य को प्रकाश कहा जाता है, जैसे- पाबू प्रकाश (आसिया मोड़जी), राज प्रकाश (किशोरदास)
स्तवन-
- स्तुति परख ग्रंथों को स्तवन कहा जाता है
- ऐसे काव्यों का सम्बन्ध किसी महापुरुष, साधु, संत या महासतियों से होता है।
छावली-
- शेखावटी क्षेत्र के लोक देवता डूंगरजी जवाहरजी के लिए हुए गीतों को छावली कहा जाता है।
दवाबैंत-
- जिस राजस्थानी साहित्य में अरबी, फारसी शब्दों का सम्मिलित प्रयोग होता है उन्हें दवाबैंत कहा जाता है जैसे- सुखसरि दवाबैंत, जिननामसूरी दवाबैंत।
बात-
- बात अथवा वार्ता कहानी को कहते है
- राज्य में किसी ऐतिहासिक व्यक्ति या घटना को किस्सों एवं कहानियों में सुनाना या उसे लिपिबद्ध करना बात साहित्य कहलाता है, जैसे- जगदेव पवार री बात, मालावत री बात।
रूपक-
- किसी वंश अथवा व्यक्ति की उपलब्धियों के स्वरूप को दर्शाने वाले काव्य रूपक कहे जाते है जैसे- राजरूपक (कवि रतनू), गुण रूपक (केशवदास), गजगुण रूपक (शिवदास)
मरस्या-
- किसी राजपूत राजा या किसी वीर व्यक्ति की मृत्यु के उपरांत शोक व्यक्त करने के लिए रचे हुए साहित्य को मरस्या कहा जाता है जैसे- राणे जगपत रा मरस्या (यह ग्रंथ मेवाड़ के महाराणा जगतसिंह की मृत्यु पर शोक प्रकट करने के लिए रचा गया)
झूलणा-
- यह एक राजस्थानी काव्य का मात्रिक छन्द है जैसे- महाराणा प्रताप का झूलणा, अमरसिंह राठौड़ का झूलणा।
- राजस्थान के प्रमुख साहित्यकार, इतिहासकार, लेखक, कवि
चन्द्रबरदाई-
- चन्द्रबरदाई द्वारा लिखित ग्रन्थ पृथ्वीराज रासो राजस्थानी भाषा का महत्वपूर्ण महाकाव्य है
- यह ग्रन्थ पृथ्वीराज तृतीय के शासनकाल उसकी उपलब्धियों एवं तुर्को के साथा पृथ्वीराज तृतीय के युद्धों के बारे में उपयोगी जानकारी उपलब्ध करवाता है।
- इस ग्रन्थ में कन्नौज के शासक जयचन्द गहड़वाल द्वारा राजसूर्य यज्ञ का आयोजन तथा पृथ्वीराज द्वारा रानी संयोगिता का हरण के बारे में जानकारी प्रदान करता है।
- चन्द्रबरदाई ने पृथ्वीराज रासो की रचना 12वीं शताब्दी के अन्त में की गई तथा चन्द्रबरदाई पृथ्वीराज चौहान का कवि एवं मित्र था।
- इस मत का समर्थन इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड ने भी किया है, लेकिन डॉ. गोरी चन्द, हीरा चन्द्र ओझा व डॉ. मोती लाल मेनारिया इस ग्रन्थ के लेखन रचना को 15वीं सदी से 17वीं सदी के बीच मानते है।
मलिक मोहम्मद जायसी-
- मलिक मोहम्मद जायसी ने शेरशाह सूरी के शासनकाल में 1540 ई. में पद्मावत् हिन्दी का महत्वपूर्ण काव्य ग्रन्थ लिखा। इस ग्रन्थ में चित्तौड़़ की रानी पद्मिनी की कथा का रोचक वर्णन किया। इसमें पद्मिनी को सिंहल देश की राजकुमारी बताया गया है जिसका विवाह चित्तौड़ के राणा रतन सिंह के साथ हुआ।
- दिल्ली के सुल्तान अलाद्दीन खिलजी ने जब रानी पद्मिनी की सुन्दरता का बखान सुना, तब 1303 ई. में अलाडद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया इस आक्रमण किया। इस आक्रमण में चित्तौड़ के शासक रतनसिंह पराजित हुए तथा पद्मिनी ने हजारों वीरांगनाओं के साथ चित्तौड़ दुर्ग में जौहर किया।
- इतिहासकार डॉ. गौरीशंकर हीराचन्द्र ओझा रानी पद्मिनी की इस कथा को अप्रमाणिक मानते है, लेकिन डॉ. दशरथ शर्मा इस पद्मावत गं्रथ को ऐतिहासिक महाकाव्य मानते है।
नरपति नाल्ह-
- कवि नरपति नाल्ह ने राजस्थानी व गुजराती मिश्रित भाषा में वीसलदेव रासो नामक गं्रथ की रचना अजमेर के चौहान शासक विग्रहराज चतुर्थ (1158-63 ई.) के शासनकाल में हुई, इस शासक को राजा वीसलदेव के नाम से भी जाना जाता था इस गं्रथ में इस शासक की सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त हुई
मुहणोत नैणसी-
- मुहणोत नैणसी का जन्म 1611 ई. में जोधपुर में मोहणोत शाखा के ओसवाल परिवार में हुआ, नैणसी राजस्थानी हिन्दी व डिंगल भाषा में पूर्ण रूप से पारगंत लेखक थे।
- मुहणोत नैणसी ने सर्वप्रथम राजस्थान के इतिहास को लिखने का प्रयास किया, लेकिन यह इतिहास अपनी त्रुटियों के कारण राजस्थान का प्रथम इतिहास नही बन गया
- मुहणोत नैणसी जोधपुर के महाराजा जसवन्त सिंह प्रथम के दरबार में दीवान के पद पर नियुक्त थे, इन्होंने 1658 ई. से लेकर 1670 ई. तक जोधपुर राज्य के प्रशासनिक कार्यो को दीवान के रूप में संचालित किया।
- मुहणोत नैणसी ने अपने ऐतिहासिक ग्रन्थ मारवाड़ रा परगना री विगत तथा नैणसी री ख्यात नामक ग्रन्थ की रचना की। मारवाड़ रा परगना री विगत में मारवाड़ राज्य के छः परगनों का इतिहास एवं राजस्व व्यवस्था की जानकारी देता है। इस ग्रन्थ की तुलना अबुल फजल द्वारा लिखित आइने अकबरी से की जाती है इस कारण मुहणोत नैणसी को मुंशी देवी प्रसाद ने राजस्थान का अबुल फजल कहा।
- मारवाड़ रा परगना री विगत नामक गं्रथ को राजस्थान का गजेटियर कहा जाता है (यद्यपि गजेटियर नामक ग्रन्थ की रचना अर्शकीन नामक लेखक ने की)
- मारवाड़ रा परगना री विगत राजस्थानी भाषा का महत्वपूर्ण ऐतिहासिक एवं प्रशासनिक ग्रन्थ है।
- डॉ. नारायण सिंह भाटी ने मारवाड़ रा परगना री विगत ग्रन्थ को तीन भागों में सम्पादित किया, भाटी राजस्थानी शोध संस्थान चौपासनी, जोधपुर के निदेशक थे
- मुहणोत नैणसी ने 1643 ई. में नैणसी री ख्यात का लेखन प्रारम्भ किया, यह ख्यात साहित्य जगत में सर्वाधिक सम्मानित, प्राचीन एवं विश्वसनीय ग्रंथ है।
- अनूप संस्कृत पुस्तकालय (बीाकनेर) में नैणसी री ख्यात की सबसे प्राचीन प्रतिलिपि उपलब्ध है इसे 1843 ई. में सीथल के चारण कवि बीठूपना ने तैयार किया था।
कर्नल जेम्स टॉड-
- राजस्थान के आधुनिक ऐतिहासिक घटनाओं के संस्थापक, राजस्थान के प्रथम आधुनिक इतिहासकार व पितामह तथा राजस्थान इतिहास के जनक कहे जाने वाले कर्नल जेम्स टॉड का जन्म 20 मार्च, 1782 ई. को इंग्लैण्ड़ इंगलिस्टन नामक शहर में हुआ, ये स्कॉटलैण्ड के मूल निवासी थे इनके पिता का नाम मि. जेम्स टॉड था।
- कर्नल जेम्स टॉड ने सर्वप्रथम राजस्थान में इतिहास सामग्री को संकलित कर इन्हें क्रमबद्ध रूप से लिपिबद्ध किया इस परम्परा को प्रारम्भ करने का श्रेय टॉड को दिया जाता है।
- कर्नल जेम्स टॉड ने ग्रंथ दा एनाल्स एण्ड एल्टीक्यूटीज ऑफ राजस्थान एवं ट्रेवल्स इन वेस्टर्न इण्डिया की रचना की।
- कर्नल जेम्स टॉड का प्रसिद्ध ग्रन्थ दा एनाल्स एण्ड एल्टीक्यूटीज ऑफ राजस्थान है इस ग्रन्थ का प्रथम भाग 1829 ई. में प्रकाशित हुआ तथा 1832 ई. में इस ग्रन्थ का दूसरा भाग प्रकाशित हुआ।
- दा एनाल्स एण्ड एल्टीक्यूटीज ऑफ राजस्थान में प्रदेश के लिए तीन शब्दों का प्रयोग हुआ है- रजवाड़ा, रायथान एवं राजस्थान। इस गं्रथ को दी सेन्ट्रल एण्ड वेस्टर्न राजपूत स्टेटस् ऑफ इण्डिया के नाम से भी जाना जाता है।
गौरीशंकर हीरा चन्द्र ओझा-
- ओझा का जन्म सिरोही जिले के रोहेड़ा गांव में 15 सितम्बर, 1863 ई. में हुआ, इन्होंने सर्वप्रथम सिरोही राज्य का इतिहास 1911 ई. में प्रकाशित किया ओझा ने 1898 ई. में भारतीय प्राचीन लिपि माला नामक ग्रन्थ की रचना की।
- ओझा अजमेर में स्थित राजपूताना म्यूजियम के अध्यक्ष रहे ब्रिटिश सरकार ने इन्हें राय बहादुर तथा महामहोपाध्याय की उपाधि से सम्मानित किया।
कवि राजा श्यामदास-
- इनका जन्म 1838 ई. में मेवाड़ के छालीबाड़ा गांव में हुआ। ये मेवाड़ के महाराणा सज्जनसिंह के समकालीन थे। महाराणा सज्जनसिंह ने इन्हें कवि राजा की उपाधि प्रदान की तथा ब्रिटिश सरकार ने महामहोपाध्याय व कर्नल इम्पी ने इन्हें केसर ए हिन्द की उपाधि दी।
- श्यामदास ने वीर विनोद नामक ग्रन्थ की रचना की जिसमें गौरी शंकर हीराचन्द्र ओझा ने इनका सहयोग किया।
- श्यामदास को रॉयल एशियाटिक सोसायटी का सदस्य बनाया गया इनका निधन 1893 ई. में हुआ।
डॉ. लुइजिपियो टैस्सीटोरी-
- टैस्सीटोरी प्रसिद्ध भाषा वैज्ञानिक, इतिहासकार और विशेषज्ञ पुरातत्ववेत्ता थे। इनका जन्म 13 दिसम्बर, 1887 ई. को इटली के उदिने शहर में हुआ, यह बीकानेर के महाराजा गंगासिंह के समकालीन थे।
- डॉ. तैस्सीतोरी महोदय ने राजस्थान के इतिहास, मातृभाषा और साहित्य को संसार के सामने लाने का श्रेय दिया जाता है।
- इनकी मृत्यु 22 नवम्बर, 1919 ई. में बीकानेर में हुई
- इनकी छतरी व स्मारक बीकानेर में स्थित है।
सूर्यमल मिश्रण-
- प्रसिद्ध कवि सूर्यमल मिश्रण की गणना बूँदी के पाँच रत्नों में की जाती है। इनका जन्म कार्तिक शुक्ला एकम को 1815 ई. में हुआ। इसका प्रसिद्ध ग्रन्थ वंशभास्कर था इस गं्रथ में डिंगल भाषा का प्रयोग किया गया है। यह ग्रंथ बूँदी राज्य पर प्रकाश डालता है।
- इनके पिता चण्डीदान भी बूँदी राज्य के आश्रित कवि थे।
- सूर्यमल मिश्रण ने वीर सतसई, सती रासो धातु, रूपावली, रामरजाट, बलवद विलास आदि ग्रन्थों की रचना की इन सभी ग्रंथों में वंश भास्कर इनका महत्वपूर्ण काव्य था।
- सूर्यमल मिश्रण की मृत्यु 1868 ई. में हुई।
पृथ्वीराज राठौड़-
- पृथ्वीराज राठौड़ जिन्हें साहित्य जगत में पाथल के नाम से जाना जाता है ये बीकानेर नरेश राव कल्याणमल के बेटे तथा बीकानेर के प्रसिद्ध महाराजा रायसिंह के बड़े भाई थे।
- पृथ्वीराज राठौड़ (1549-1600 ई.) ने वेलि किसन रूकमणि री नामक काव्य की रचना की, इस काव्य में भक्ति रस की प्रधानता है तथा 16वीं शताब्दी के रहन-सहन, रीति रिवाज, त्यौहार, वेशभूषा के बारे में जानकारी मिलती है।
- पृथ्वीराज राठौड़ को कवि तैस्सीतोरी ने डिंगल भाषा का हेरोस कहा क्योकि डिंगल भाषा के कवियों में पृथ्वीराज का स्थान सबसे ऊँचा था।
- इनके द्वारा रचित ग्रंथों मे दशम भागवत् रा दूहा, गंगा लहरी, बसदेरावउत, दशरथरावउत मुख्य है।
- अकबर ने पृथ्वीराज राठौड़ को गागरोन दुर्ग जागीर के रूप में प्रदान किया।
मुंशी देवी प्रसाद-
- मुंशी देवी प्रसाद का जन्म जयपुर जिले में माघ शुक्ल 14 को वि. स. 1904 (1847 ई.) में हुआ। इन्हें आधुनिक इतिहास के उन्नायक, मारवाड़ राज्य के कानून निर्माता के रूप में जाना जाता है।
- इन्होंने राजा भारमल, कवि रत्नमाला, ऐतिहासिक चरित्रमाला, प्रतिहार वंश प्रकाश, राजरसनामृत, महिला मृदुवाणी, मारवाड़ का भूगोल तथा कृष्णा कुमारी बाई नामक ग्रन्थों की रचना की।
बांकीदास-
- बांकीदास का जन्म 1781 ई. में भाडियावाह, जोधपुर में हुआ था। इन्हें डिंगल भाषा के श्रेष्ठ कवियों माना जाता है।
- जोधपुर महाराजा मानसिंह ने इनसे प्रभावित होकर इन्हें लाख पसाब का पद प्रदान किया।
- इनके द्वारा रचित ग्रंथ सूरछत्तीसी, कृष्ण दर्पण, कुकवि बत्तीसी, विदुर बत्तीसी, कायर बामनी, आयो अंग्रेज मुल्क रे ऊपर, बांकीदास री ख्यात आदि प्रमुख है।
- इनकी मृत्यु 1833 ई. में हुई
रानी लक्ष्मीकुमारी चूड़ावत-
- इनका जन्म 14 जून 1916 ई. में देवगढ़, मेवाड़ में हुआ।
- इनके द्वारा राजस्थानी भाषा में रचित ग्रंथ मंझलीरात, मूमल डंूगरजी जवाहर री वात, टांवरा री वात, बाघो भारमली।
- रानी लक्ष्मीकुमारी को पद्मश्री सम्मान, कुम्भा पुरस्कार, सोवियत लैण्ड नेहरू आदि पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
- इन्हें राज्य सरकार द्वारा 17 दिसम्बर, 2012 को राजस्थान रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
कन्हैयालाल सेठिया-
- इनका जन्म 1919 ई. में सुजानगढ़, चूंरू में हुआ
- कन्हैयालाल को राजस्थान भाषा के भीष्म पितामह के नाम से भी जाना जाता है।
- इनके द्वारा लिखित पुस्तकें- लीलटांस, पाथल व पीथल, धरती धोरा री, मींझर, कूंजाघर मंजला, मायण रो हेला, अघोरीकाल आदि।
- इनके द्वारा रचित कविताऐं- कुण जमीन रो धणी कुण, अरे घास री रोटी ही जद बन बिलाबडौ ले भाग्यो, आ धरती गोंरा धोंरा री आदि।
- कन्हैयालाल सेठिया को 1976 ई. में लीलटांस पुस्तक के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया।
- 1940 ई. में सुजानगढ़ में हरिजन विद्यालय की स्थापना की और हरिजन मुक्ति आन्दोलन चलाया।
- राज्य सरकार द्वारा इन्हें 17 दिसम्बर, 2012 को राजस्थान रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
- इनका निधन नवम्बर 2008 में हो गया।
हरिदास भाट-
- हरिदास भाट ने अजीतसिंह नामक ग्रन्थ की रचना की। जो डिंगल भाषा में लिखा हुआ।
- इस ग्रन्थ में जोधपुर नरेश जसवन्त सिंह प्रथम और उनके पुत्र अजीतसिंह की वीरताओं का उल्लेख किया गया है।
- इस ग्रन्थ में घटनाओं के साथ तिथियों का भी उल्लेख किया गया है।
पद्मनाथ-
- पद्मनाथ ने 1512 ई. में कान्हड़दे प्रबन्ध नामक ग्रन्थ की रचना की।
- इस ग्रन्थ में जालौर के अन्तिम सौनगिरा चौहान कान्हड़देव के बड़े पुत्र बीरमदेव के बारें में उल्लेख किया गया है।
- इस ग्रन्थ में चार खण्ड, दोहे, चौपाई तथा सवैया छन्द आदि का प्रयोग किया गया
- इस ग्रन्थ में मारू अपभ्रंश भाषा का प्रयोग हुआ है
उद्योतन सूरी-
- उद्योतन का जन्म 8वीं शताब्दी में हुआ था। इन्होंने जालौर दुर्ग में बैठकर कुवलय माला ग्रंथ की रचना की। इस ग्रन्थ में मरू भाषा का प्रयोग भी हुआ है।
दलपति विजय-
- दलपति विजय ने वि. स. 1769 के आसपास खुमाण रासो नामक ग्रंथ की रचना की इस ग्रंथ में मेवाड़ के बप्पारावल से लेकर महाराणा राजसिंह के इतिहास का वर्णन मिलता है। यह डिंगल भाषा का विशाल ग्रंथ है
- यह ग्रन्थ आठ खण्डों, 3500 छन्दों में लिखा हुआ है इसमें दोहा, चौपाई, कवित्त तथा सुन्दर छन्दों का प्रयोग हुआ है।
शिवदास गाडण-
- शिवदास ने अचलदास खींची री बचनिका वीर रसात्मक गद्य पद्य काव्य की रचना की।
- इस ग्रन्थ में गागरौन, झालावाड़ के खींची राजा अचलदास व मालवा के सुल्तान होसंग शाह गौरी के मध्य हुये युद्ध का वर्णन किया गया है।
- यह ग्रन्थ ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण काव्य है इसमें वीर रस, भाषा सौष्ठव की प्रधानता है।
कवि काशी छंगाणी-
- कवि काशी छंगाणी ने छत्रपति रासो नामक ग्रन्थ की रचना 1682 ई. में की। इस ग्रन्थ में बीकानेर के इतिहास का वर्णन किया गया है।
कवि नन्दराम-
- कवि नन्दराम ने जग विलास नामक ग्रंथ की रचना की। इन्होंने राजसी वैभव, राज प्रबन्ध, जगनिवास महल की प्रतिष्ठा, तथा पिछौला झील का वर्णन किया है।
- इस ग्रंथ में मेवाड़ की तत्कालीन सामाजिक, सांस्कृतिक तथा राजनैतिक इतिहास का वर्णन किया गया है।
मोड़जी आश्यिा-
- इन्होंने पाबू प्रकाश नाम ग्रन्थ की रचना की। जिसमें लोक देवता पाबूजी के जीवन पर प्रकाश डाला है।
- इस ग्रंथ में पाबूजी राठौड़ के विवाह मण्डप से उठकर गायों की रक्षा करते हुए अपने प्राणों का बलिदान देने की घटना का वर्णन किया गया है।
- इस ग्रंथ में राजस्थान की संस्कृति का चित्रण किया गया है।
कवि जयानक-
- कवि जयानक ने 12वीं सदी के अन्तिम चरण में पृथ्वीराज विजय नामक ग्रन्थ की रचना की। इस ग्रन्थ में सपादलक्ष (चौहान राज्य) के राजनैतिक व सांस्कृतिक इतिहास का वर्णन किया गया है।
दयालदास-
- इन्होंने दयालदास री ख्यात की रचना की। जिसमें राव बीका से लेकर सरदार सिंह के इतिहास का वर्णन मिलता है।
गिरधर आश्यिा-
- गिरधर आशिया ने सगत रासो नामक ग्रन्थ की रचना की जिसमें मेवाड़ के इतिहास पर प्रकाश डाला है। इस ग्रन्थ में मेवाड़ के महाराणा राजसिंह के शासन की जानकारी मिलती है।
कवि करणीदान-
- इनके द्वारा रचित ग्रंथ सूरज प्रकाश की भाषा डिंगल है जिसमें साढे़ सात हजार छन्द है। इस ग्रंथ में राठौड़ों की 13 शाखाओं का वर्णन किया गया है।
नयनचन्द्र सूरी-
- सूरी द्वारा रचित ग्रन्थ हम्मीर महाकाव्य है जो रणथम्भौर के चौहान राजाओं के इतिहास पर प्रकाश डालता हैं।
- इस ग्रन्थ में हम्मीरदेव चौहान व अलाउद्दीन खिलजी के मध्य युद्ध का वर्णन मिलता है।
- इस ग्रन्थ में रानी रंगदेवी द्वारा जल जौहर का उल्लेख किया गया है
जोधराज-
- जोधराज ने 1728 ई. को हम्मीर रासो ग्रन्थ की रचना की। इस ग्रन्थ में रणथम्भौर के चौहान राजाओं के इतिहास का वर्णन मिलता है।
शारंगधर-
- शारंगधर ने हम्मीर रासो व हम्मीर काव्य की रचना की।
कवि महेश-
- इनके द्वारा रचित ग्रंथ हम्मीर रासो में हम्मीरदेव चौहान व अलाउद्दीन खिलजी के सम्बन्धों का वर्णन मिलता है
भाण्डऊ व्यास-
- भाण्डऊ व्यास ने हमीरायण नामक ग्रंथ की रचना की जिसमें हम्मीरदेव चौहान की उपलब्धियों का वर्णन किया गया है। इस ग्रन्थ में स्वधर्म पालन को उचित बताया है।
चन्द्रशेखर-
- कवि चन्द्रशेखर द्वारा रचित गं्रथ हम्मीर हठ में हम्मीरदेव चौहान की हठधर्मिता का उल्लेख किया गया है।
- चन्द्रशेखर ने सुर्जन चरित्र नामक ग्रन्थ की भी रचना की जिसमें बूँदी के हाड़ा शासकों का वर्णन मिलता है।
अमृत कैलाश-
- अमृत कैलाश द्वारा रचित हम्मीर बंधन में रणथम्भौर के चौहान राजाओं और रणथम्भौर दुर्ग की ऐतिहासिकता का उल्लेख किया गया है।
दुरसाजी आढ़ा-
- दुरसा आढ़ा का जन्म 1535 ई. में धूंदला, जोधपुर में हुआ।
- इनके द्वारा रचित ग्रंथ विरूद्ध छहत्तरी मुख्य है।
- अन्य ग्रंथ- किरतार बावनी, राव श्री सुरताण रा कवित्त, दोहा सोलंकी वीरमदेवजी रा, झूलणा रावत मेघाटा, जीत राजि श्री रोहितासजी रा, झूलणा राव अमरसिंघजी गजसिंघोत रा, श्री कुमार अज्जाजी की भूचर मांटी नी गजनत आदि।
- मुगल सम्राट् अकबर ने इन्हें लाख पसाव का पद प्रदान किया।
कवि बिहारी-
- केशवदास के पुत्र बिहारी का जन्म 1543 ई. में गोविन्दपुर, ग्वालियर में हुआ। इन्होंने बिहारी सतसई नामक गं्रथ की रचना की।
- राजा जयसिंह बिहारी के प्रत्येक दोहे पर एक अशर्फी भेंट स्वरूप देते थे। बिहारी सतसई हिन्दी साहित्य का महत्वपूर्ण ग्रंथ है जिसमें 713 दोहे है। इसकी भाषा राजस्थानी मिश्रित ब्रज है।
- इनकी तुलना शेक्सपीयर से की गई है।
मणि मधुकर-
- इनका जन्म 9 सितम्बर, 1942 को सादुलपुर, चूंरू में हुआ था। इनके द्वारा रचित गं्रथ पगफेरो के लिए इन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ।
- अन्य उपान्यास- सफेद मेमने, पत्तों की बिरादरी, पिंजरे में पन्ना।
विजयदान देथा-
- इनका जन्म 1926 ई. बोरून्दा, जोधपुर में हुआ। इन्होंने बातां री फुलवारी, अलेख, तीणोराव, हिटलर व रुख आदि ग्रंथों की रचनाएं की।
- विजयदान देथा की कहानी दुविधा प्रमुख है जिस पर पहेली फिल्म आधारित थी।
- इन्हें राज्य सरकार ने 17 दिसम्बर, 2012 को राजस्थान रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया।
सीताराम लालस-
- इनका जन्म 1912 ई. में सिणवड़ी, बाड़मेर में हुआ। इन्होंने राजस्थानी भाषा का शब्दकोष लिखा। इस शब्दकोष में 2 लाख से अधिक शब्द है जो 10 खण्डों में संकलित है।
- भारत सरकार ने इन्हें पद्मश्री सम्मान से विभूषित किया।
- इनसाइक्लोपीड़िया ऑफ ब्रिटेनिका ने इन्हें राजस्थान जुबान की मशाल कहकर सम्बोधित किया तथा राजस्थान साहित्य अकादमी ने इन्हें साहित्य मनीषी की उपाधि दी।
- इनका निधन 1986 ई. को जोधपुर में हुआ।
डॉ. रांगेय राघव-
- डॉ. रांगेय राघव का मूल नाम टी.एन. आचार्य था। इनका जन्म आगरा में हुआ। इन्होंने हिन्दी भाषा में लगभग 100 से अधिक कृतियाँ लिखी।
- इनका पहला उपन्यास घरौंदे था।
- अन्य उपन्यास- काका, मुर्दो का टीला, कब तक पुकारू, आखिरी आवाज तथा धरती मेरा घर।
- वातायन- हरीश भादानी
- लहर (बीकानेर से प्रकाशित) और कमर – प्रकाश जैन
- जाग मछन्दर गोरख आया, जोगी मत जा -विश्वम्भर नाथ उपाध्याय
- छप्पन के दुष्काल काल का चित्रण – ऊमरदान
- मींझर और लीलाटॉस – कैन्हयालाल सेठिया
- लाडेसर, नैणां खूट्यौ नीर, अकल बिना ऊंट उभाणौ ओळखांण – बैजनाथ पंवार
- माई एहड़ा पूत जण – मेजन रतनसिंह जांगिड़
- राजस्थानी शब्द कोश के रचनाकार – सीताराम लालस
- झालावाड की विख्यात भवानी नाटयशाला प्रसिद्ध है तथा जयपुर के रामप्रकाश और मानप्रकाश थियटर भी प्रसिद्ध है।