मौर्यकाल का इतिहास – History of Maurya Vansh
जानकारी के स्त्रोत-
- विशाखदत्त- मुद्राराक्षस
- मेगस्थनीज- इण्डिका
- क्षेमेन्द्र- वृहत्कथामंजरी
- अशोक के अभिलेख
- कौटिल्य- अर्थशास्त्र
- हेमचन्द्र- परिशिष्टपर्वन
- भद्रबाहु- कल्पसूत्र
- रूद्रदामन- जूनागढ़ अभिलेख
- सोमदेव- कथासरित्सागर
- विष्णु पुराण
चन्द्रगुप्त मौर्य (322-298 ई.पू.)-
- चाणक्य की सहायता से चन्द्रगुप्त मौर्य ने नन्द वंश के अन्तिम शासक घनानन्द को मारकर मौर्य साम्राज्य की स्थापना की।
- मौर्य शासकों की राजधानी पाटलिपुत्र थी।
- चन्द्रगुप्त मौर्य को यूनानी रचनाओं में सेन्ट्रोकोट्टस व एन्ड्रोकोट्टस कहा गया है।
- सर विलियम जोन्स प्रथम इतिहासकार है जिन्होंने इन नामों का समीकरण चन्द्रगुप्त मौर्य से किया।
- विशाखदत्त की रचना मुद्राराक्षस में चन्द्रगुप्त मौर्य का वृषल कहा गया है। जिसके आधार पर इन्हें निम्न कुल का माना जाता है।
- चन्द्रगुप्त मौर्य ने 305 ई.पू. में यूनानी शासक सेल्युकस को पराजित किया।
- इस युद्ध में पराजित होकर सेल्युकस ने काबुल, कन्धार, हेरात तथा ब्लूचिस्तान के क्षेत्र चन्द्रगुप्त को प्रदान किये।
- सेल्युकस ने अपनी पुत्री हेलना का विवाह चन्द्रगुप्त मौर्य के साथ कर दिया। हेलना का नाम कार्नेलिया भी प्राप्त होता है।
- भारतीय इतिहास में इसे प्रथम अन्तर्राष्ट्रीय विवाह माना जाता है।
- बदले में चन्द्रगुप्त मौर्य ने सेल्युकस को 500 हाथी भेंट किये। मगध का क्षेत्र हाथियों के लिए प्रसिद्ध था। सेल्युकस से युद्ध व सन्धि का उल्लेख एप्पियानस के विवरण से प्राप्त होता है।
- इस विजय के बाद चन्द्रगुप्त ने भारत मे एक बड़े साम्राज्य की स्थापना की।
- प्लूटार्क ने लिखा है।- चन्द्रगुप्त ने 6 लाख की सेना लेकर सम्पूर्ण भारत को रौंद दिया।
- विन्सेंट स्मिथ- सम्पूर्ण भारतीय इतिहास में साम्राज्य की जिस सीमा को प्राप्त करने के लिए अंग्रेज भी तरसते रहे, उस सीमा को चन्द्रगुप्त मौर्य ने प्राप्त किया था।
नोट- सम्पूर्ण भारतीय इतिहास में सबसे बड़ा साम्राज्य क्षेत्र मौर्य शासकों का था।
- जस्टिन ने चन्द्रगुप्त मौर्य की सेना का डाकुओं का गिरोह कहा।
- प्लूटार्क व जस्टिन ने चन्द्रगुप्त मौर्य की सिकन्दर से भेंट का उल्लेख किया है।
- चन्द्रगुप्त मौर्य ने सौराष्ट्र (गुजरात) में अपने राज्यपाल पुष्पगुप्त के माध्यम से किसानों के हित में सुदर्शन झील का निर्माण करवाया।
- चन्द्रगुप्त मौर्य ने जैन धर्म अपनाया।
- इनके समय में पाटलिपुत्र में प्रथम जैन संगीति का आयोजन हुआ जिसकी अध्यक्षता स्थूलभद्र ने की।
- इस जैन संगीति मे जैन धर्म दो भागों में विभक्त हो गया।
- स्थूलभद्र के नेतृत्व वाले उत्तर भारत के जैन श्वेताम्बर कहलाये। जबकि भद्रबाहु के नेतृत्व वाले दक्षिण में पलायन करने वाले जैन दिगम्बर कहलाये।
- चन्द्रगुप्त मौर्य भी भद्रबाहु के साथ श्रवणबेलगोला (कर्नाटक) चले गये। जहाँ चन्द्रगिरि पर्वत पर सल्लेखना (उपवास) के द्वारा अपने प्राणों को त्याग दिया।
- चन्द्रगुप्त मौर्य की अंगरक्षक महिलाएं होती थी।
- चन्द्रगुप्त मौर्य के शासन के अन्तिम 12 वर्षो में पाटलिपुत्र में अकाल पड़ा था।
चाणक्य/कौटिल्य/विष्णुगुप्त-
- इन्होंने अर्थशास्त्र की रचना की जो राजनीति से सम्बन्धित ग्रन्थ है। इसकी भाषा संस्कृत है।
- अर्थशास्त्र में 15 अधिकरण तथा 180 प्रकरण प्राप्त होते है।
- चाणक्य चन्द्रगुप्त मौर्य का प्रधानमंत्री था।
मेगस्थनीज-
- मेगस्थनीज ने यूनानी भाषा मे इण्डिका लिखी जो अब प्राप्त नही है।
- मेगस्थनीज चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में राजदूत के रूप में आया था।
- इण्डिका में इन्होंने लिखा कि भारत में दास प्रथा नहीं थी जबकि अन्य विवरण इसके विपरीत है।
बिन्दुसार- 298ई.पू. – 274 ई.पू. (24 वर्ष)
- बिन्दुसार को यूनानी ग्रन्थों में अमित्रोचेट्टस/अमित्रघात कहा गया है।
- ये आजीवक सम्प्रदाय के अनुयायी थे।
- बिन्दुसार के शासनकाल में तक्षशिला में एक जनविद्रोह हुआ जिसे दबाने के लिए अशोक व सुसीम को भेजा गया।
नोट- भारत का प्राचीनतम विश्वविद्यालय तक्षशिला था, जिसकी स्थापना भरत के पुत्र तक्ष ने की। तक्षशिला में ही चाणक्य ने ज्ञान प्राप्त किया।
- बिन्दुसार ने वैदेशिक सम्बन्धों को बढ़ावा दिया।
- सीरिया के शासक ऐन्टीयोकस प्रथम ने अपने राजदूत डाईमेकस को बिन्दुसार के दरबार में भेजा।
- मिस्र के शासक टाॅलमी फिलाडेल्फस-II ने अपने राजदूत डायनोसिस को बिन्दुसार के दरबार में भेजा।
अशोक (273 ई.पू. – 232 ई.पू. तक)-
- सिंहली अनुश्रुतियों मे अशोक को 99 भाईयों का हत्यारा कहा गया।
- अशोक प्रारम्भिक जीवन में उज्जैन का राज्यपाल था।
- वह पहले शैव सम्प्रदाय का अनुयायी था तथा बाद मे बौद्ध धर्म अपना लिया।
- अशोक के बौद्ध होने के प्रमाण भाब्रू अभिलेख से प्राप्त होते है।
- दीपवंश तथा महावंश ग्रंथों (श्रीलंका) से पता चलता है कि अशोक को बौद्ध धर्म में निग्रोध ने दीक्षित किया।
- दिव्यावदान के अनुसार अशोक को उपगुप्त ने दीक्षित किया।
- अशोक के शासनकाल में पाटलिपुत्र में तीसरी बौद्ध का संगीति का आयोजन हुआ।
- इस बौद्ध संगीति की अध्यक्षता मोगलिपुत्र तिस्स ने की इसके अनुमानित समय 251 ई.पू. माना जाता है।
- इस बौद्ध संगीति मे तीसरे पिट्क अभिधम्म पिट्क का संकलन किया गया।
- अशोक ने चन्द्रगुप्त मौर्य के द्वारा बनवायी गई सुदर्शन झील का जीर्णोद्वार करवाया।
- अशोक के समय यहां का राज्यपाल तुषास्प था।
- अशोक के देवानाम् प्रियदर्शी की उपाधि धारण की।
- उसने श्रीनगर तथा देवपत्तन (ललितपाटन) नामक नगरों की स्थापना करवाई।
- अशोक ने लुम्बिनी नेपाल में भू-राजस्व की दर 1/6 के स्थान पर 1/8 कर दी।
- अशोक के सम्बन्ध में जानकारी मुख्य रूप से उसके अभिलेखों से प्राप्त होती है।
- ये अभिलेख एकाश्मक थे (एक ही पत्थर से बने हुये)
- डी.आर. भण्डारकर एकमात्र इतिहासकार है, जिन्होंने अशोक के अभिलेखों के आधार पर मौर्य काल का इतिहास लिखा।
- अशोक के अभिलेखों की भाषा प्राकृत थी।
- 1750 में टीफैन्थेलर ने सबसे पहले अशोक के दिल्ली मेरठ अभिलेख की खोज की।
- 1837 में जेम्स प्रिंसेप ने इन अभिलेखों को पढ़ने में सफलता प्राप्त की।
इन अभिलेखों के चार विभाजन है-
- शिलालेख/वृहत् शिलालेख
- लघुशिला लेख
- स्तम्भ लेख
- लघुस्तम्भलेख
अशोक के 14 – 14 वृहत् शिलालेख भारत में 8 स्थानों से प्राप्त हुये।
- मानसेहरा- पाकिस्तान
- शाहबाजगढ़ी- पाकिस्तान
- जौगढ़- उड़ीसा
- धौली- उड़ीसा
- एर्रगुड़ि- आन्ध्रप्रदेश
- सोपारा- महाराष्ट्र
- गिरनार- गुजरात
- कालसी- देहरादून (उत्तराखण्ड)
अशोक के अभिलेखों की चार लिपियाँ प्राप्त होती है।
- ब्राह्मीलिपि-
- यह लिपि बाँयें से दाँये ओर लेखन से सम्बन्धित है।
- अशोक के भारत में प्राप्त लगभग सभी अभिलेख ब्राह्मी लिपि में है
- खरोष्ठी लिपि-
- इसके अन्तर्गत लेखन दाँये से बाँयी ओर होता है। जैसे- उर्दू।
- पाकिस्तान में प्राप्त मानसेहरा और शाहबाजगढ़ी के शिलालेख खरोष्ठी लिपि में है।
- आरमाइक लिपि-
- यह लिपि ऊपर से नीचे की ओर लेखन से सम्बन्धित है। जैसे- गणित।
- तक्षशिला तथा लघमान (अफगानिस्तान) से प्राप्त अभिलेख आरमाइक लिपि में है।
- आरमाइक + यूनानी-
- अफगानिस्तान में शर-ए-कुना का अभिलेख इस प्रकार का है, इसे द्विलिपीय अभिलेख कहते है।
नोट- अशोक अपनी शांति नीति तथा धम्म संचालन के लिए इतिहास में प्रसिद्ध है। उसका धर्म जन कल्याण पर आधारित था।
- अशोक के प्रथम शिलालेख में जीव-हत्या को निषेध घोषित किया गया है।
- द्वितीय शिलालेख में अशोक ने सीमान्त राज्यों के सम्बन्ध में जानकारी दी है तथा उसके जन-कल्याणकारी कार्यो जैसे- कुएँ खुदवाना तथा छायादार वृक्ष लगवाना आदि की जानकारी प्राप्त होती है।
- तृतीय शिलालेख में युक्त, राजुक, प्रादेशिक जैसे अधिकारियों के साथ अशोक द्वारा जनकल्याण हेतु राज्य का विचरण करने की जानकारी प्राप्त होती है।
- पांचवें शिलालेख मे धर्ममहामात्र की नियुक्ति की जानकारी प्राप्त होती है, यह अधिकारी जनता के नैतिक उत्थान के लिए उत्तददायी था।
- अशोक के 12वें शिलालेख से उसकी धार्मिक सहिष्णुता की नीति प्राप्त होती है।
- 13वें शिलालेख से कलिंग (उड़ीसा) पर आक्रमण तथा पश्चाताप सहित शांति नीति को अपनाने की जानकारी प्राप्त होती है।
नोट- अपने राज्याभिषेक के (269 ई.पू.) के आठवें वर्ष (261 ई.पू.) में अशोक ने कलिंग पर आक्रमण किया तथा वहाँ नन्दराज नामक शासक को पराजित किया। इस युद्ध में 1 लाख से अधिक लोगों की मृत्यु हुई।
- प्रथम पृथक शिलालेख (कलिंग) में अशोक ने सम्पूर्ण प्रजा को अपनी सन्तान कहा है।
- अशोक के मेरठ (यू.पी.) तथा टोपरा (हरियाणा) के अभिलेखों को फिरोजशाह तुगलक सुरक्षा की दृष्टि से दिल्ली लेकर आया था। (सल्तनकाल का अकबर- फिरोज तुगलक)
- मुगल सम्राट अकबर कौशाम्बी अभिलेख को इलाहाबाद लेकर आये। कौशाम्बी में अभिलेख में अशोक की रानी कारूवाकी का नाम प्राप्त होता है अतः इसे रानी का अभिलेख भी कहते है।
- इस अभिलेख के अनुसार अशोक के एक पुत्र का नाम तीवर था।
- भाब्रू का अभिलेख सबसे लम्बा अभिलेख माना जाात है जिसकी खोज कैप्टेन बर्ट ने की।
- रूमिन्नदेइ्र (नेपाल) का अभिलेख अशोक का सबसे छोटा अभिलेख माना जाता है जिसमें अशोक के द्वारा राज्याभिषेक के 20वें वर्ष में लुम्बिनी की यात्रा का उल्लेख प्राप्त होती है।
- निगालीसागर, नेपाल अभिलेख से जानकरी मिलती है कि अशोक ने कनकमुनि बुद्ध के स्तूप को विस्तृत करवाया।
- अशोक ने अपने राज्याभिषेक के दसवें वर्ष में बौद्ध गया की यात्रा की।
- अशोक के चार अभिलेखों से उसका नाम प्राप्त होता है- गुर्जरा- मध्य प्रदेश, मास्की- कर्नाटक, उदैगोलम- कर्नाटक, निट्टूर- कर्नाटक। दो अभिलेखों गुर्जरा व मास्की में उसे देवानाम प्रियदर्शी कहा गया है।
अशोक के स्तम्भ लेखों का विवरण-
- सारनाथ- सारनाथ (उत्तरप्रदेश) से भारत का राजकीय चिह्न प्राप्त किया गया।
- यहाँ चार सिंहों की संयुक्त मूर्ति प्राप्त है।
- इस अभिलेख में चार पशु दर्शाये गये है।
- हाथी, घोड़ा, शेर और बैल।
- साँची- मध्यप्रदेश में भी सारनाथ के समान चार सिंहों की संयुक्त मूर्ति है। तथा दाना चुगते हंसों का चित्रण है।
- लौरिया नन्दनगढ़ (बिहार)- एक शेर
- बसाढ़ (बिहार)- एक शेर (मयूर का चित्रण भी इस स्तम्भ पर प्राप्त है)
- रामपुरवा-I (बिहार)- एक शेर
- रामपुरवा- II (बिहार)- एक साँड़/बैल
- संकिसा (मध्यप्रदेश)- एक हाथी
- अशोक ने आजीवक सम्प्रदाय के भिक्षुओं के लिए बिहार में बराबर की गुफाओं का निर्माण करवाया।
- कुणाल यह दृष्टिहीन था, बहुत कम प्रमाण अशोक के बाद कुणाल को शासक स्वीकार करते है।
सम्प्रति-
- यह जैन धर्म का अनुयायी था।
दशरथ-
- यह आजीवक सम्प्रदाय का अनुयायी था। इसने भी देवानामप्रियदर्शी की उपाधि धारण की थी।
- दशरथ ने आजीवक सम्प्रदाय के भिक्षुओ के लिए बिहार मे नागार्जुनी गुफाओं का निर्माण करवाया।
वृहद्रथ (Maurya Kaal Ka Antim Shasak)-
- यह बौद्ध धर्म का अनुयायी था।
- यह मौर्य वंश का अन्तिम शासक था, जिसकी हत्या करके 185 ई.पू. मं शुंग वंश के शासक पुष्यमित्र शुंग ने नये साम्राज्य की स्थापना की।
मौर्य साम्राज्य के पतन के कारण-
- शान्ति नीति- हेमचन्द्र राय चैधरी
- ब्राह्मणों की प्रतिक्रिया- हर प्रसाद शास्त्री
- अत्यन्त केन्द्रीयकृत शासन व्यवस्था- रोमिला थापर
- वित्तीय समस्याएँ- डी.डी. कोशाम्बी
मौर्य प्रशासन (Maurya Kalin Prashasan)- मौर्यकाल की शासन व्यवस्था अत्यन्त केन्द्रीकृत थी।
प्रशासनिक इकाईयाँ-
- देश- सम्पूर्ण साम्राज्य (राजा)
- राज्य/प्रान्त- प्रान्तपति
- आहार/विषय (जिला)- विषयपति
- स्थानीय- 800 गाँवों का समूह
- द्रोणमुख- 400 गाँवों का समूह
- खार्वटिक- 200 गाँवों का समूह
- संग्रहण- 100 गाँवों का समूह
- ग्राम- सबसे छोटी इकाई
मौर्यकाल में प्रशासनिक अधिकारी- चाणक्य के अनुसार राजा की सहायता के लिए 18 मंत्री या अधिकारी होते थे जिन्हें तीर्थ कहा जाता था।
- प्रधानमंत्री- राजा के बाद सबसे शक्तिशाली अधिकारी
- पण्याध्यक्ष- व्यापार से सम्बन्धित मुख्य अधिकारी
- विविताध्यक्ष- चारागाहों का प्रमुख
- आकराध्यक्ष- खानों का प्रमुख
- समाहर्ता- भू-राजस्व संगृकर्ता अधिकारी
- सन्निधाता- कोषाध्यक्ष
- सीताध्यक्ष- राजकीय भूमि से सम्बन्धित अधिकारी
- लक्षणाध्यक्ष- राजकीय टकसाल का मुख्य अधिकारी
- दण्डपाल- पुलिस अधिकारी
- आटविक- वन प्रदेश से सम्बन्धित अधिकारी
- पौतवाध्यक्ष- माप-तौल से सम्बन्धित अधिकारी
- प्रदेष्टा- फौजदारी मामलों का न्यायधीश
- व्यावहारिक- दीवानी मामलों का न्यायाधीश
- रूपदर्शक- सिक्कों की शुद्धता जांचने वाला अधिकारी
- कर्मान्तिक- उद्योगधन्धों से सम्बन्धित अधिकारी
मौर्यकाल में गुप्तचर- दो प्रकार के गुप्तचर होते थे-
- संचारा- विचरण करते हुये सूचना एकत्रित करने वाले गुप्तचर।
- संस्था- एक ही स्थान पर रूककर सूचना इकट्ठी करने वाले गुप्तचर।
मौर्यकाल में न्यायालय- दो प्रकार के न्यायालय
- धर्मस्थीय- दीवानों मामलों (धन सम्बन्धी) का न्यायालय।
- कण्टकशोधन- फौजदारी मामलों से सम्बन्धित न्यायालय।
मौर्यकाल के सिक्के (Maurya Kaal Ke Sikke)-
- सोने के सिक्के- सुवर्ण, निष्क।
- चाँदी के सिक्के- पण, कार्षापण।
- ताँबे के सिक्के- माषक, काकणी।
मौर्यकाल में राजधानियाँ- इतने बड़े साम्राज्य को व्यवस्थित करने के लिए 5 राज्य व राजधानियाँ थी।
- उत्तरापथ- तक्षशिला,
- दक्षिणापथ- सुवर्णगिरि,
- अवन्ति- उज्जैन
- कलिंग- तोसली
- मध्य प्रदेश (प्राची)- पाटलिपुत्र
मौर्यकाल के बन्दरगाह- दो बन्दरगाह प्रसिद्ध थे-
- भृगकच्छ- भारत की पश्चिमी सीमा पर स्थित बन्दरगाह जो वर्तमान गुजरात में है।
- ताम्रलिप्ति- भारत की पूर्वी सीमा का प्रसिद्ध बन्दरगाह, जो वर्तमान बंगाल में स्थित है।
अशोक के द्वारा भेजे गए धर्म प्रचारक-
- मज्झन्तिक- कश्मीर व तक्षशिला
- महारक्षित- यवन (यूनान क्षेत्र)
- महाधर्मरक्षित- महाराष्ट्र
- महादेव- महिष्मंडल (मैसूर)
- संघमित्रा, महेन्द्र- श्रीलंका
मेगस्थनीज के अनुसार भारतीय समाज सात वर्गो में बंटा हुआ था-
- दर्शनिक
- सभासद्
- किसान
- आभीर (अहीर/ग्वाले)
- सैनिक
- शिल्पी
- निरीक्षक
कौटिल्य का सप्तांग सिद्धान्त- कौटिल्य के अनुसार राजतंत्र के लिए सात अंगों की अनिवार्यता है-
- राजा
- जनपद
- बल (सेना)
- दुर्ग
- कोष
- मित्र
- अमात्य (मंत्री)
मौर्यकाल में स्थापत्य कला (Maurya Kalin Kala)-
- अशोक के अभिलेख स्थापत्य की श्रेष्ठता के उदाहरण है। इसके अलावा मौर्यशासकों द्वारा बनवाये गये लकड़ी के महल विशिष्ट थे।
- फाह्यान् ने लिखा है मौर्यकाल के ये महल देवताओं ने अपने हाथों से बताये है।
- एरियन ने मौर्यकाल के महलों को सूसा व एकबतना के महलों से सुन्दर बताया है।
मौर्यकाल मूर्तिकाल (Maurya Kal Ki Murti Kala)-
- इस युग में यक्ष व यक्षी की मूर्तियाँ मुख्य रूप से प्राप्त होती है।
मेगस्थनीज के अनुसार मौर्यकाल में शासनकाल पाँच-पाँच लोगों की छः समितियों द्वारा चलाया जाता था। (कुल-30)
कर व्यवस्था-
- सीता- राजकीय भूमि पर लगने वाल कर।
- भाग- किसानों की भूमि का लगने वाला कर।
- उद्रंग- सिंचाई कर।
- रज्जू- भूमि की माप के बदले लिया जाने वाला कर।
- विष्टि- बेगार श्रम।
- प्रणय- आपातकाल में लिया जाने वाला कर।
- हिरण्य (सोना)- अनाज के स्थान पर नकद लिया जाने वाला कर।
FAQ
चंद्रगुप्त मौर्य का समय काल 1420 ईसा पूर्व था ?
चंद्रगुप्त मौर्य का शासनकाल 322 ई. पू. से 298 ई. पू. (24 वर्ष) तक रहा। चंद्रगुप्त मौर्य ने अपने मंत्री चाणक्य (कौटिल्य) की मदद से नंद शासक घनानन्द को युद्ध में पराजित कर मौर्य साम्राज्य की नींव ड़ाली