गुप्तकाल (Gupt Kaal)-
- प्राचीन भारतीय इतिहास का स्वर्णकाल जिसमें विकेन्द्रीयकृत शासन व्यवस्था थी।
- गुप्तकाल के शासकों ने गरूढ़ को अपना राजकीय चिह्न बनाया, ये शासक मुख्य रूप से वैष्णव सम्प्रदाय के अनुयायी थे।
- Gupt Kaal Ka Sansthapak श्रीगुप्त था। द्वितीय शासक घटोत्कच था।
नोट- इन दो शासकों की उपाधियाँ राजा व महाराजा की प्राप्त होती है जिससे निश्चित किया जाता है कि ये किसी पूर्ववर्ती साम्राज्य के सामन्त थे।
गुप्त काल के शासक (Gupt Kaal Ke Shasak)-
- श्रीगुप्त
- घटोत्कच
- चन्द्रगुप्त-I (319 ई. से 335 ई.)
- समुद्रगुप्त (335 ई. – 375 ई.)
- रामगुप्त (375-380 ई.)
- चन्द्रगुप्त-II (380-412 ई.)
- कुमारगुप्त-I (415 ई. – 454 ई.)
- स्कन्दगुप्त (454 ई. – 467 ई.)
- भानुगुप्त-
- विष्णुगुप्त-
गुप्त काल की राजकीय भाषा (Gupt Kaal Ki Rajkiya Bhasha)-
- गुप्त काल की भाषाऐं संस्कृत और प्राकृत थी।
गुप्तकाल की राजधानी (Gupt Kaal Ki Rajdhani)-
- पाटलिपुत्र
चन्द्रगुप्त-I (319 ई. से 335 ई.)
- इसे गुप्त राजवंश का वास्तविक संस्थापक माना जाता है।
- इसने 319 ई. में गुप्त संवत् चलाया।
नोट- विक्रमी संवत् 57 ई. पू. (विक्रमादित्य ने), शक् संवत् 78 ई. (कनिष्क ने), गुप्त संवत् 319 ई.पू. (चन्द्रगुप्त ने), हिजरी संवत् 622 ई. (मोहम्मद साहब ने)
- चन्द्रगुप्त-I ने महाराजाधिराज की उपाधि धारण की।
- चन्द्रगुप्त-I ने लिच्छवी वंश की राजकुमारी कुमादेवी से विवाह किया।
- इस उपलक्ष्य में राजा-रानी प्रकार के सिक्के चलाये।
समुद्रगुप्त (335 ई. – 375 ई.)
- विन्सेंट स्मिथ ने समुद्रतल को भारत को नेपोलियन कहा है।
- प्रयाग प्रशस्ति में इसे 100 युद्धों का विजेता कहा गया है।
- समुद्रगुप्त की उपाधियाँ- अप्रतिरथ, सर्वराजोच्छेता, पराक्रमांक, अश्वमेध पराक्रम
- समुद्रगुप्त ने लगभग सम्पूर्ण भारत को जीता तथा अलग-अलग नीतियों के माध्यम से अपने साम्राज्य को मजबूत बनाया।
1. प्रसभोद्धरण- उत्तर भारत के राजवंशों को समूल नष्ट करने की नीति प्रसभोद्धरण कहलाती है।
2. ग्रहणमोक्षानुग्रह- दक्षिण भारत के शासकों को पराजित करके उन पर सीधा नियंत्रण स्थापित करने के स्थान पर राज्य लौटा देने तथा निश्चित कर प्राप्त करे की नीति।
3. आत्मनिवेदन तथा कन्योपायन- विदेशी जातियों (शक, कुषाण) के विरूद्ध दो नीतियाँ अपनायी।
प्रथम नीति के अनुसार दरबार में उपस्थिति की अनिवार्यता तथा द्वितीय नीति के द्वारा वैवाहिक सम्बन्धों की स्थापना की गई
- समुद्रगुप्त वीणा बजाने में सिद्धहस्त था। उसके सिक्कों से यह जानकरी प्राप्त होती है।
- संभवतः समुद्रगुप्त एक अच्छा रचनाकार भी था। क्योकि उसकी उपाधि कविराज प्राप्त होती है।
प्रयाग प्रशस्ति-
- समुद्रगुप्त के सम्बन्ध में जानकारी का मुख्य स्त्रोत हरिषेण द्वारा संस्कृत में लिखी प्रयाग-प्रशस्ति है।
- यह गद्य-पद्य (चम्पू) दोनों में है।
- मूलतः यह अशोक के कौशाम्बी अभिलेख पर लिखित है जिसे अकबर इलाहाबाद (प्रयाग) लेकर आया था।
- इस अभिलेख पर अकबर, बीरबल तथा जहाँगीर के नाम भी प्राप्त होते है।
समुद्रगुप्त के सिक्के-
- धनुर्धारी प्रकार के सिक्के (सोने के)
- परशु प्रकार के सिक्के (सोने के)
- वीणा वादन प्रकार के सिक्के (सोने के)
- व्याघ्रहनन प्रकार के सिक्के (सोने के)
- गरूढ़ प्रकार के सिक्के (सोने के)
- अश्वमेध प्रकार के सिक्के (सोने के)
रामगुप्त (375-380 ई.)
- विशालदत्त की रचना देवीचन्द्र गुप्तम् के अनुसार किसी शक शासक ने रामगुप्त को पराजित किया। पराजित होकर इसने अपनी पत्नी ध्रुवदेवी/धु्रवस्वामिनी शकों को सौंप दी।
- रामगुप्त के छोटे भाई चन्द्रगुप्त-II ने वंश की प्रतिष्ठा को बचाने के लिए शक शासक को पराजित करके धु्रवदेवी को मुक्त करवाया।
- अपने भाई रामगुप्त की हत्या करके धु्रवदेवी से विवाह किया तथा शकारि की उपाधि धारण की।
- रामगुप्त के ताँबे के कुछ सिक्के भी प्राप्त हुये है।
चन्द्रगुप्त-II (380-412 ई.)
- चन्द्रगुप्त-II ने परमभागवत तथा विक्रमादित्य की उपाधि धारण की।
- इसने उज्जैन को अपनी दूसरी राजधानी बनाया।
इसके दरबार में नवरत्न थे-
- क्षपणक- ज्योतिष
- शंकु- स्थापत्य
- घटकर्पर- (ज्ञात नहीं है)
- वेतालभट्ट- जादूगर
- अमरसिंह- व्याकरणाचार्य
- कालिदास- संस्कृत के प्रसिद्ध रचनाकार
- धन्वन्तरी- चिकित्सा
- वराहमिहिर- ज्योतिष
- वररूचि- संस्कृत के व्याकरणाचार्य
कालिदास- कालिदास को भारत का शेक्सपीयर कहा जाता है इनकी 7 रचनायें प्रसिद्ध है-
- दो महाकाव्य-
- रघुवंश- रघु कुल के शासकों का वर्णन।
- कुमारसम्भव- कार्तिकेय जन्म की कहानी।
- तीन नाटक-
- विक्रमोर्वशीय- पुरुरवा व उर्वशी की प्रेमकथा।
- मालविकाग्निमित्रम्- मालविका व अग्निमित्र की प्रेमकथा।
- अभिज्ञानशाकुन्तलम- दुष्यन्त व शकुन्तला की प्रेमकथा।
- दो खण्डकाव्य–
- मेघदूत- बादल के माध्यम से प्रेम सन्देश भेजने की कथा।
- ऋतुसंहार- छः ऋतुओं का वर्णन।
- चन्द्रगुप्त-II की उपाधियाँ देवश्री तथा देवराज भी प्राप्त होती है।
- चन्द्रगुप्त-II समय में चाँदी के सिक्के का प्रचलन शुरू हुआ।
चन्द्रगुप्त-II के सिक्के-
- सिंह-निहन्ता प्रकार के सिक्के।
- छत्रधारी प्रकार के सिक्के।
- पर्यक प्रकार के सिक्के।
गुप्तकाल के सर्वाधिक सिक्के बयाना भरतपुर से प्राप्त हुये है।
चन्द्रगुप्त-II से सम्बन्धित अभिलेख-
- साँची का अभिलेख- मध्यप्रदेश
- मथुरा का अभिलेख- उत्तरप्रदेश
- उदयगिरी का अभिलेख- उड़ीसा
- महरौली लौह स्तम्भ लेख- दिल्ली (इस लौह स्तम्भ पर अभी तक जंग नही लगा है)
कुमारगुप्त-I (415 ई. – 454 ई.)
- गुप्तवंश का प्रथम शासक जो शैव सम्प्रदाय का अनुयायी था।
- गुप्तकाल के सर्वाधिक अभिलेख कुमारगुप्त के प्राप्त हुये है।
- इसने गरूढ़ के स्थान पर मयूर को अपना राजकीय चिह्न बनाया।
- कुमारगुप्त-I ने बिहार क्षेत्र में नालन्दा विश्वविद्यालय की स्थापना करवाई। जो बौद्धधर्म के महायान सम्प्रदाय का ऑक्सफोर्ड माना जाता है।
- कुमारगुप्त-I समुद्रगुप्त के समान ही अवश्मेध यज्ञ करवाया।
- कुमारगुप्त के सिक्के- मयूर प्रकार के सिक्के।
- प्रसिद्ध अभिलेख- विलसड़/भिलसद अभिलेख (उत्तरप्रदेश)
- कुमारगुप्त की उपाधियाँ- महेन्द्र, महेन्द्रादित्य, अश्वमेध महेन्द्र, शक्रादित्य।
स्कन्दगुप्त (454 ई. – 467 ई.)
- (शैव सम्प्रदाय)
- हूणों को पराजित करने के कारण हूणारि की उपाधि धारण की।
- चीन के साथ राजदूत सम्बन्धों की स्थापना की।
- स्कन्दगुप्त ने नई राजधानी अयोध्या को बनाया।
- स्कन्दगुप्त ने सुदर्शनझील का जीर्णोद्धार करवाया।
- स्कन्दगुप्त के सम्बन्ध में जानकारी मुख्यतः दो अभिलेखों से प्राप्त होती है-
- जूनागढ अभिलेख, भितरी स्तम्भ लेख (उत्तरप्रदेश)
सुदर्शन झील-
- निर्माण- चन्द्रगुप्त मौर्य- पुष्यगुप्त (राज्यपाल)
- जीर्णोद्धार- अशोक- तुषाष्प (राज्यपाल)
- जीर्णोद्धार- रूद्रदामन (शक)- सुविशाख (राज्यपाल)
- जीर्णोद्धार- स्कन्दगुप्त (गुप्त)- चक्रपालित (राज्यपाल)
नोट- सुदर्शन झील के सम्बन्ध में सम्पूर्ण जानकारी रूद्रदामन के जूनागढ़ अभिलेख से प्राप्त होती है।
- भारत में यह संस्कृत भाषा का प्रथम अभिलेख माना जाता है।
- यह एकमात्र अभिलेख है जिसमें चन्द्रगुप्त मौर्य तथा अशोक का नाम एकसाथ प्राप्त होता है।
भानुगुप्त-
- 510 ई. में भानुगुप्त के ऐरण अभिलेख से सती प्रथा के प्रथम अभिलेखिय साक्ष्य प्राप्त होते है।
- इस अभिलेख के अनुसार भानुगुप्त के मंत्री गोपराज की पत्नी सती हो गयी।
विष्णुगुप्त (Gupt Kaal Ka Antim Shasak)-
- इसे गुप्तकाल का अन्तिम शासक स्वीकार किया जाता है।
- गुप्तकाल का शासन लगभग 550 ई. तक चला।
गुप्तकाल का प्रशासन (Gupt Kaal Ki Prashasnik Vyavastha)-
प्रशासनिक इकाईयाँ-
- देश- राजा (गोपा)
- भुक्ति (प्रान्त)- उपरिक/भुक्तिपति
- आहार/विषय (जिला)- विषयपति
- वीथि (तहसील)- वीथिपति
- पेठ (ग्राम समूह)- पेठपति
- ग्राम- महत्तर
प्रशासनिक अधिकारी-
- ध्रुवाधिकरणिक- भू-राजस्व संग्रहकर्ता अधिकारी
- भाण्डागारिक- कोषाध्यक्ष
- रणभाण्डागारिक- युद्ध के समान से सम्बन्धि अधिकारी
- करणिक- लिपिक
- गोल्मिक- वनप्रदेश से सम्बन्धित अधिकारी
- शौल्किक- बिक्री/चूंगी कर से सम्बन्धित अधिकारी
- महासन्धिविग्रहिक- युद्ध व शान्ति से सम्बन्धित अधिकारी (विदेश मंत्री)
- महाबलाधिकृत- प्रमुख सेनापति
- महाप्रतिहार- महलों की सुरक्षा एवं व्यवस्था का अधिकारी
- महाअक्षपटलिक- आय-व्यय के लेखों से सम्बन्धित अधिकारी
- दण्डपाशिक- पुलिस अधिकारी
- महादण्डनायक- मुख्य न्यायाधीश
- विनयस्थितिस्थापक- शिक्षा एवं धर्म से सम्बन्धित अधिकारी
- कुमारामात्य- सर्वोच्च प्रशासनिक अधिकारी
- अग्रहारिक- दान विभाग का प्रमुख अधिकारी
गुप्तकाल के सिक्के (Gupt Kaal Ke Sikke)-
- सोने के सिक्के- दीनार
- चाँदी के सिक्के- रूपक/रुय्यक
नोट- फाह्यान के अनुसार जनसामान्य का लेन-देन कौड़ियों के माध्यम से होता था।
- फाह्यान- फाह्यान चन्द्रगुप्त-II के समय से गुप्त राजदरबार में आया। यह चीनी यात्री था।
- इसने भारत को ब्राह्मणों का देश कहा है।
- गुप्तकाल में कठोर दण्ड नहीं दिये जाते थे। सम्भवतः मृत्युदंड निषेध था।
- फाह्यान ने चाण्डालों के सम्बन्ध में विस्तृत विवेचन किया है।
गुप्त कालीन स्थापत्य कला (Gupt Kalin Sthapatya Kala)-
गुप्तकाल में मन्दिर निर्माण कला (Gupt Kaal Ke Mandir)-
भारत इतिहास में सबसे पहले मन्दिरों का निर्माण गुप्तकाल में हुआ।
प्रमुख मंदिर-
- तिगवाँ (मध्यप्रदेश) का विष्णु मन्दिर
- भूमरा (मध्यप्रदेश) का शिव मन्दिर
- नचनाकुठार (मध्यप्रदेश) का पार्वती मन्दिर
- देवगढ़ झाँसी (उत्तरप्रदेश) का दशावतार मन्दिर
- भीतर गाँव (उत्तरप्रदेश) का ईंटों का बना मन्दिर
नोट- देवगढ़ का दशावतार मन्दिर शिखर मन्दिर का आरम्भिक उदाहरण है।
गुप्तकाल में चित्रकला (Gupt Kaal Ki Kala)-
- अजन्ता औरंगाबाद महाराष्ट्र से 29 गुफाये प्राप्त हुई है। जिनमें प्राप्त चित्र बौद्ध धर्म से सम्बन्धित है।
- 16वीं व 17वीं गुफा के चित्रों को गुप्तकालीन माना जाता है।
नोट- एलौरा महाराष्ट्र के चित्र हिन्दु, बौद्ध व जैन तीनों धर्मो से सम्बन्धित है।
गुप्तकाल में मूर्ति-निर्माण कला (Gupt Kaal Ki Murti Kala)-
- गुप्तकाल में संयुक्त प्रतिमाओं का उदय दिखाई देता है।
- इस काल मे गंगा व यमुना की मूर्ति, ब्रह्मा, विष्णु, महेश की मूर्ति तथा अर्द्धनारीश्वर मूर्तियां मुख्यतः प्राप्त होती है।
- इसके अलावा बुद्ध की मूर्तियां भी प्राप्त होती है।
- इस युग की मूर्तियां मथुरा शैली की है।
नोट- गुप्तकाल में मूर्ति निर्माण के तीन प्रमुख केन्द्र मथुरा, सारनाथ तथा पाटलिपुत्र थे।
मूर्ति निर्माण की शैलियां-
- मथुरा शैली-
- विशुद्ध भारतीय शैली
- लाल पत्थर का उपयोग
- आभूषण व सज्जा का अभाव
- गान्धार शैली-
- हिन्द यूनानी शैली (इण्डोग्रीक)
- काले-पत्थर का उपयोग
- अत्यधिक सजावट
- कनिष्क के समय में भारत में आगमन।
गुप्तकाल में साहित्य (Gupt Kaal Ka Sahitya)-
- विशाखदत्त- मुद्राराक्षस, देवीचन्द्रगुप्तम्
- शुद्रक- मृच्दकटिकम्
- वात्स्यायन- कामसूत्र
- विष्णु शर्मा- पंचतंत्र
- अमरसिंह- अमरकोष (संस्कृत का विश्वकोष)
- याज्ञवल्क्य स्मृति में कार्यस्थ जाति का प्रथम बार उल्लेख मिलता है। यह आय-व्यय के लेखों का संधारण करने वाली एक जाति थी।
- नारद स्मृति और बृहस्पति स्मृति में कन्या को पुत्र के समान बताया गया है।
गुप्तकाल में ज्ञान-विज्ञान-
- आर्यभट्ट- जन्म 476 ई., स्थान कुसुमपुर (पाटलिपुत्र), पुस्तक- आर्यभट्टीयम्, सूर्य सिद्धांत
आर्यभट्ट ने दशमलव की खोज की।
सूर्यग्रहण व चन्द्रग्रहण के सम्बन्ध में वास्तविक स्थिति को स्पष्ट किया। - ब्रह्मगुप्त- इनका जन्म भीनमाल जालौर में हुआ।
प्रमुख पुस्तके– ब्रह्मसिद्धान्त, वेदांग ज्योतिष, खण्डखाद्यक - वराहमिहिर- इनका जन्म अवन्ति में हुआ।
प्रमुख पुस्तके– पंचसिद्धान्तिका, वृहत्जातक, लघुजातक, वृहत्संहिता। - भास्कर-I- इनका जन्म महाराष्ट्र में माना जाता है।
प्रमुख पुस्तकें– महाभास्कर्य, लघुभास्कर्य, भाष्य (श्री भाष्य) - पाल्काप्य- हस्त्यायुर्वेद (हस्ति$आयुर्वेद) नामक रचना लिखी जो हाथियों की चिकित्सा से सम्बन्धित थी।
- वाग्भट्ट- अष्टांग हृदय
गुप्तकाल का आर्थिक परिदृश्य (Gupt Kaal Ki Samajik Vyavastha)-
- गुप्तकाल में भू-राजस्व की दर 1/6 से 1/3 तक थी।
- भाग/भोग व उद्रंग जैसे कर प्राप्त किये जाते थे।
- श्रेणी- एक ही प्रकार के शिल्प से सम्बन्धित व्यापारियों का समूह।
- पूग- विभिन्न प्रकार के शिल्पों से सम्बन्धित व्यापारियों का समूह।
- निगम- एक नगर के समस्त व्यापारियों का समूह निगम कहलाता था।
- सार्थवाह- गुप्तकाल में लूटमार की घटनाओं से बचने के लिए व्यापारी एक स्थान से दूसरे स्थान तक समूह बद्ध होकर जाते थे, इनके मुखिया को सार्थवाह कहा जाता था।