राजपूताना के इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड ने राजस्थान के इतिहास को विदेशी धरती पर पहचान दिलवाई। टॉड ने राजस्थान की सभ्यता एवं संस्कृति की तुलना यूनान की संस्कृति से की। टॉड ने लिखा है कि यूनान में तो एक ‘थर्मोपल्ली‘ ‘मेराथन‘ और लियोनिडास प्रसिद्ध है लेकिन राजस्थान की तो प्रत्येक रणस्थली ‘थर्मोपल्ली‘ और ‘मेराथन‘ है तथा प्रत्येक घर में ‘लियोनिडास‘ ने जन्म लिया है। तब टॉड ने कहा कि – राजस्थान में कोई छोटा सा भी राज्य ऐसा नही है जहां थर्मोपॉली लियोनिडॉस जैसा वीर पुरुष पैदा नहीं हुआ हो
राजस्थान दुर्गो का प्रदेश कहलाता है दुर्ग निर्माण परम्परा यहां प्राचीन काल से चली आ रही है जिनका सम्बन्ध कोई न कोई ऐतिहासिक प्रसंग या घटना से जुड़ा हुआ है।
राजस्थान की स्थापत्य कला का जनक महाराणा कुम्भा को माना जाता है।
श्यामलदास की पुस्तक वीर विनोद के अनुसार महाराणा कुम्भा ने मेवाड में स्थित कुल 84 दुर्गो में से 32 दुर्गाे को निर्माण करवाया था।
Note- वीर विनोद – वीर विनोद के रचनाकर श्यामलदास का जन्म 5 जुलाई 1836-93 ई. मेवाड़ के धोकलियां गांव में हुआ था। 1879 ई. महाराणा सज्जन सिंह के द्वारा कविराज की उपाधि तथा ब्रिटिश सरकार के द्वारा केसर-ए-हिन्द की उपाधि प्रदान की गई थी।
- महाराणा कुम्भा को दी गई उपाधि- हालगुरू (गिरीदुर्ग का स्वामी होने के कारण)
- हिन्दु सुरताण- मुस्लिम शासकों द्वारा
- राणो-रासो – विद्वानों का आश्रयदाता होने के कारण।
- अभिनव-भरताचार्य – संगीत के क्षेत्र में विपुल ज्ञान के लिए।
वीर विनोद पांच खंड़ो (जिल्द) में विभाजित है –
- प्रथम जिल्द- यूरोप, एशिया, अमेरिका, भारत, आदि का भौगोलिक वर्णन।
- द्वितीय जिल्द- राणा रत्नसिंह से अमरसिंह I तक का इतिहास।
- तृतीय जिल्द- राणा कर्णसिंह से अमरसिंह II तक का इतिहास।
- चतुर्थ जिल्द- अमरसिंह II से जगतसिंह II तक का इतिहास।
- पंचम जिल्द- जवानसिंह से सज्जनसिंह तक का इतिहास
शुक्रनीति के अनुसार राज्य के सात अंग माने गये है जिनमें दुर्ग भी एक है-
- स्वामी (राजा)- सिर
- आमात्य (मंत्री) – आंख
- सुह्नत (गुप्तचर)- कान
- कोश – मुख
- सेना – मन
- दुर्ग – हाथ/बाजू
- राष्ट्र – पैर
शुक्रनीतिकार ने दुर्ग को शरीर के प्रमुख अंग हाथ की संज्ञा दी है।
शुक्रनीति में दुर्गाे के विविध भेदों का उल्लेख करते हुये इनके नौ भेद बताये है-
- एरण दुर्ग- कांटो तथा पत्थरो से जिसका मार्ग दुर्गम है। जैसे – रणथंभौर
- वन दुर्ग- जिसके चारों ओर वन हो। जैसे – रणथम्भौर
- धन्व दुर्ग- जिसके चारों तरफ मरुभूमी हो। जैसे – जैसलमेर
- गिरी दुर्ग- जो दुर्ग पहाडी पर स्थित हो। जैसे- चित्तौड, सिवाणा
- पारिख दुर्ग- जिसके चारों ओर खाई हो। जैसे- लोहागढ़
- जल/औदक दुर्ग- जिसके चारों ओर पानी हो। जैसे – गागरोण, भैंसरोड
- सैन्य दुर्ग- जो अभेध हो या जीता न जा सके
- सहाय दुर्ग- जिसमें सदा साथ देने वाले वीर बन्धुजनों का साथ हो। इस श्रेणी के दुर्ग का उल्लेख राजस्थान में कही भी नहीं मिलता।
- पारिध दुर्ग- जिसके चारों ओर दीवार हो। जैसे – कुंभलगढ़
याज्ञवल्क्य के अनुसार- राज्य में दुर्ग की स्थिति से राजा की सुरक्षा, प्रजा एवं कोश की रक्षा होती है।
मनुस्मृति के अनुसार- दुर्ग में स्थित एक धनुर्धर सौ धनुर्धरों को तथा सौ धनुर्धर एक सहस्त्र धनुर्धरों को मार गिरा सकता है।
चित्तौडगढ दुर्ग ‘‘धान्वन दुर्ग‘‘ की श्रेणी को छोड़कर सभी श्रेणियों में रखा जा सकता है।
कौटिल्य के अनुसार दुर्ग चार प्रकार के होते है-
- औदक दुर्ग (जल)
- पार्वत दुर्ग (गिरी)
- धान्वन दुर्ग (मरुस्थल)
- वन दुर्ग
शुक्रनीति के अनुसार सैन्य दुर्ग सर्वश्रेष्ट है कौटिल्य व मनु के अनुसार गिरी दुर्ग सर्वश्रेष्ट है
Note- विश्व विरासत में शामिल राजस्थान के छः दुर्ग- चितौडगढ़, कुम्भलगढ़, गागरोन, जैसलमेर, रणथम्भौर, आमेर
Note- कंबोडिया के नामपेन्ह शहर मंे यूनेस्को की विरासत संबंधी वैश्विक समिति की 36वीं बैठक में 21 जून 2013 को राजस्थान के 6 दुर्गो को एवं जन्तर मन्तर वेधशाला को शामिल किया गया था।
चितौडगढ़ दुर्ग-
- यह अजमेर से खण्डवा जाने वाले रेल मार्ग पर स्थित है।
- इस दुर्ग का निर्माण 7वीं शताब्दी में चित्रागंद मौर्य ने करवाया था जो गिरी दुर्ग की श्रेणी में आता है।
- यह किला राजस्थान का गौरव, दक्षिणी-पूर्व का प्रवेश द्वार तथा यह राजस्थान के समस्त किलों का सिरमौर कहलाता है।
- इस दुर्ग के लिए एक पंक्ति है कि ‘‘गढ तो चितौडगढ बाकी सब गढैया‘‘
- मेवाड़ के गुहिल वंश के संस्थापक बप्पा रावल ने राजा मानमौरी को 734 ई. में हराकर यह दुर्ग जीता था। इसलिए यह मेवाड़ के शासकों के अधीन रहा है।
- यह दुर्ग राजस्थान का सबसे बड़ा लिविंग फोर्ट है, तथा इसके बाद दूसरा सबसे बड़ा लिविंग फोर्ट जैसलमेर का किला है।
- इस दुर्ग में लाखोटा की बारी देखी जाती है।
- इस दुर्ग की आकृति व्हेल मछली के समान प्रतीत होती है।
- यह राजस्थान का एक मात्र दुर्ग है जिस पर खेती की जाती है, तथा यह दुर्ग मेसा पठार पर स्थित है, जो 616 मी. ;छब्म्त्ज्द्ध ऊँचा है।
- दुर्ग के अन्दरः- कालिका माता, तुलजा माता, कुंभ श्याम व मीरा आदि के मंदिर स्थित है पुरोहितों की हवेलियां, रामपुरा की हवेली, सलूम्बर की हवेली, भामाशाह की हवेली, मोर मंगरी, भीमताल कुण्ड, मोती बाजार, गोरा महल, फत्ता की हवेली, बादल महल, पद्मनी महल, जैमलजी तालाब, विजय स्तम्भ, कीर्ति स्तम्भ बने हुये है।
- श्रृंगार चंवरी- 1448 ई. में महाराणा कुंभा के कोषाध्यक्ष केल्हाशाह के पुत्र बेलाक थे जिन्हांेने श्रृंगार चंवरी का निर्माण करवाया था (स्ंइ ।ेेपेजंदज 2017द्ध
- सात दरवाजे- पाण्डवपोल, भैरवपोल, हनुमान पोल, गणेश पोल, रामपोल, लक्ष्मण पोल, जोड़न पोल
- विजय स्तम्भ- 1437 ई. में सांरगपुर के युद्ध में मालवा (मांडू) के शासक ‘‘महमूद खिलजी‘‘ को पराजित कर कुंभा ने मालवा को अपने अधिकार में कर लिया था इसी विजय के उपलक्ष में कुंभा ने अपने पुत्र जैता कूपा और नापा के निर्देशन में शिल्पकार मण्डन के द्वारा 1440 ई. में निर्माण शुरू करवाया गया यह 1448 ई. में बनकर तैयार हुआ।
- यह 122 फीट ऊंचा तथा 9 मंजिला है इसे गौरी शंकर हीराचन्द औझा ने भारतीय कला का विश्व कोश कहा है।
- विजय स्तंभ की तीसरी मंजिल पर नौ बार अरबी भाषा में अल्लाह नाम अंकित है।
- विजय स्तंभ राजस्थान पुलिस का प्रतीक चिह्न है।
- यह राजस्थान की प्रथम इमारत है जिस पर 15 अगस्त 1949 को एक रूपये का डाक टिकट जारी किया था।
- कर्नल जेम्स टॉड ने इसके बारे में कहा है, कि यह कुतुबमीनार से भी बेहतरीन इमारत है।
- कीर्ति स्तम्भ- इसका निर्माण 11वीं शताब्दी मंे बघेरवाल शासक जैन जीजा ने करवाया था जो सात मंजिला व 75 फीट ऊंचा है।
- कीर्ति स्तम्भ प्रशस्ति को लिखने की शुरूआत अत्रि ने की तथा समाप्त उसके पुत्र महेश ने की।
- बीका खोह- चत्रंग तालाब के समीप ही बीका खोह नामक बुर्ज है गुजरात के सुल्तान बहादुरशाह के आक्रमण के समय लबरी खां फिरंगी ने सुरंग बनाकर किले की दीवार विस्फोट से उड़ा दी थी।
- भाक्सी- यह एक इमारत है जिसका निर्माण महाराणा कुंभा ने करवाया था। इसे बादशाह की भाक्सी भी कहा जाता है
- घोडे दौडाने के चौगान- यहां पहले सेना की कवायद हुआ करती थी इसी को लोग घोडे दौडने का चौगान कहते है।
- खातन रानी का महल- महाराणा क्षेत्र सिंह ने अपनी उपपत्नि खातन रानी के लिए यह महल बनवाया था। इसी रानी से चाचा तथा मेरा नामक दो पुत्रों का जन्म हुआ था जिन्होने 1433 ई. में महाराणा मोकल की हत्या कर दी थी।
- राव रणमल की हवेली- यह खंडर के रूप में विद्यमान है। राव रणमल की बहन हंसाबाई से महाराणा लाखा का विवाह हुआ। राव चुडा ने प्रतिज्ञा की यदि हंसाबाई के कोई पुत्र उत्पन्न हुआ तो मैं मेवाड़ की गद्दी त्याग दूंगा। विवाह के 13 माह बाद हंसाबाई से मोकल का जन्म हुआ इसी कारण राव चूड़ा को मेवाड़ का भीष्म पिता कहा जाता है।
- कालिका माता का मन्दिर-
- इस मन्दिर का निर्माण मेवाड़ के गुहिलवंशीय राजाओं ने करवाया था। मूल रूप से यह एक सूर्य मन्दिर था बाद में औरंगजेब के आक्रमण के दौरान यह मूर्ति तोड दी गई थी। महाराणा सज्जन सिंह ने मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाया था। वही पर कालिका माता की मूर्ति स्थापित करवाई गई थी।
- महासती जौहर स्थल-
- समिध्देश्वर महादेव के मन्दिर के समीप विस्तृत मैदानी हिस्सा है। जहां वीरांगनाओं का प्रसिद्ध जौहर स्थल है। जिसे महासती जौहर स्थल कहा जाता है।
- मीराबाई का मन्दिर-
- मीराबाई मन्दिर के सामने रैदास की छत्तरी स्थित है, मीरा के गुरू रैदास के चरण चिन्ह (पगल्या) अंकित है।
- तुलजा माता का मन्दिर-
- तुलजा मन्दिर का निर्माण दासी पुत्र बनवीर ने करवाया था बनवीर भवानी का उपासक था। उसने अपने वजन के बराबर सोना तुलवाकर इस मन्दिर का निर्माण करवाया था। इसलिए इसे तुलजा माता का मन्दिर कहा जाता है।
- आल्हा काबरा की हवेली-
- भामाशाह की हवेली के पास ही आल्हा काबरा की हवेली है काबरा गौत्र के माहेश्वरी पहले महाराणा के दीवान थे।
- प्रथम साका – 25 अगस्त 1303 ई.
- अलाउद्दीन खिलजी ने 1303 ई. में जब चितौड़गढ़ पर आक्रमण किया उस समय चितौड़गढ़ का शासक राणा रतनसिंह लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गये व रानी पद्मनी ने 1600 महिलाओं के साथ जौहर का आयोजन किया तथा इस आक्रमण में पद्मनी का चाचा गोरा व भाई बादल भी वीरगति को प्राप्त को हो गये।
- विजय उपरान्त खिलजी ने अपने पुत्र खिज्र खां को सौंपकर इसका नाम खिज्रावाद रख दिया था।
- अमीर खुसरो-खाजाइन-उल-फुतूह ग्रन्थ में भी चितौड़गढ़ का वर्णन मिलता है।
मलिक मोहम्मद जायसी द्वारा रचित – पद्मावत ग्रन्थ (1540 ई.) के अनुसार अलाउद्दीन का चित्तौड़ पर आक्रमण करने का कारण राणा रतनसिंह की रानी पद्मनी को प्राप्त करने की लालसा बताई गई।
- दूसरा साका – 8 मार्च 1535 ई.
- गुजरात के शासक बहादुर शाह ने 1534-35 ई. में जब चितौड़गढ़ पर आक्रमण किया उस समय यहां का राजा रानी कर्मावती के अल्पवय पुत्र महाराणा विक्रमादित्य थे।
- राजमाता कर्मावती ने हुमायूं को राखी भेज कर सहायता की मांग की, लेकिन हुमायंू ने सहायता नही की।
- रानी कर्मावती ने देवलिया प्रतापगढ़ के रावत बाघ सिंह के नेतृत्व में मेवाड़ के राजपुत योद्धाओं ने केसरिया किया तथा रानी कर्मावती ने अन्य राजपुत रानियों के साथ जौहर का आयोजन किया
- इसका वर्णन श्यामलदास की पुस्तक वीर विनोद में मिलता है।
- तीसरा साका – 25 फरवरी 1568 ई.
- अक्टूबर 1567 ई. में अकबर ने चितौड पर आक्रमण किया उस समय यहां का शासक राणा उदयसिंह था
- राणा किले का भार जयमल व फत्ता को सौंपकर गोगुन्दा की पहाड़ियों में चला गया।
- इस युद्ध में जयमल राठौड और फत्ता सिसोदिया दोनों मारे गये और फत्ता की रानी फुल कंवर के नेतृत्व में अन्य राजपूत रानियों ने जौहर का आयोजन किया।
- 25 फरवरी 1568 ई. में अकबर का चितौड पर अधिकार हो गया। अन्त में किले की बागड़ोर आसफ खां को सौंपकर स्वयं अकबर अजमेर चला गया।
- इस युद्ध में जयमल और फत्ता की बहादुरी से प्रसन्न होकर अकबर ने आगरा के किले के प्रवेश द्वार के बाहर इन दोनों की हाथी पर सवार संगमरमर की प्रतिमाएं स्थापित करवायी।
- जयमल और फत्ता की प्रतिमा जुनागढ़ के किले (बीकानेर) में स्थित है। जो रायसिंह ने स्थापित करवाई थी।
- इस अभियान का वर्णन श्यामलदास की पुस्तक वीर विनोद में किया गया है।
- पद्मनी की कथा
- पद्मनी सिंहलद्वीप लंका के राजा गोवर्धन व रानी चम्पावली की पुत्री थी।
- राजा रतनसिंह ने हीरामन नामक तोते से पद्मनी के सौन्दर्य व यौवन के बारे में सुना था जो हुबहु आदमी की तरह बोलता था तब पद्मनी को प्राप्त करने के लिए एक योगी का भेष धारण करके रतनसिंह सिंहलद्वीप जाता है और कठोर परिश्रम के बाद पद्मनी को प्राप्त करके चित्तौड़ ले आता है।
- पद्मनी चित्तौड़ में प्रतिदिन भिखारियों को भीख देती थी। एक दिन राघव चेतन ब्राह्मण तांत्रिक ने पद्मनी को देख लिया था। राघव चेतन ब्राह्मण को पहले राणा रतनसिंह ने किसी कारण वश राज्य से निष्कासित कर दिया था।
- इस नाराज ब्राह्मण राघव चेतन ने महाराणा के द्वारा किये गए अपमान का बदला लेने के लिये अलाउद्दीन खिलजी के पास दिल्ली जाकर पद्मनी की सुन्दरता व यौवन के बारे में ओर बढा-चढ़ा कर खिलजी को अवगत करा देता है।
- तब कहा जाता है कि खिलजी का चित्तौड़ पर आक्रमण करने का कारण पद्मनी को प्राप्त करना था।
रणथम्भौर दुर्ग-
- सवाई माधोपुर में (505 मीटर ऊंची पहाडी पर) (NCERT) स्थित है।
- इस दुर्ग का निर्माण 8वीं शताब्दी में अजमेर के चौहान शासक रंतिदेव ने करवाया था।
- यह दुर्ग विषम आकृति वाली सात पहाडियों से घिरा हुआ है इसलिये अबुल-फजल ने अपने ग्रंथ आईने -ए-अकबरी में इसके बारे में कहा है कि अन्य सब दुर्ग नंगे है जबकि यह दुर्ग बख्तरबंद है।
- दुर्ग के अन्दर-
- रणथम्भौर का प्रवेश द्वार नौलखा दरवाजा कहलाता है जिसका जीर्णोद्धार जयपुर के महाराजा जगतसिंह ने करवाया था। इस नौलखा द्वार से आगे त्रिकोणी दरवाजो का समूह है जिसे चौहान काल में तोरण दरवाजा, मुस्लिम काल में अंधेरी दरवाजा, जयपुर शासकों के काल में त्रिपोलिया दरवाजा कहा जाता था।
- 32 खम्भों की छतरी जो 50 फीट ऊंची है जिसका निर्माण चौहान शासक हम्मीर ने करवाया था। (हम्मीर ने अपने पिता जयसिंह के 32 वर्षाे के शासनकाल की स्मृति में इस दुर्ग का निर्माण करवाया था।)
- पद्मला तालाब, हम्मीर महल, हम्मीर की कचहरी, सुपारी महल, बादल महल, जैन मंदिर, त्रिनेत्र गणेश जी का मन्दिर, सामन्तों की हवेली, दिल्ली दरवाजा, जंवरा-भंवरा विशाल इमारत तथा पीर सदरूद्दीन की दरगाह स्थित है।
- यहां केवल गणेशजी के मुख की पूजा होती है गर्दन, हाथ, शरीर, आयुध व अन्य अवयव इस प्रतिमा में नहीं है।
- इस दुर्ग में प्रसिद्ध जौंरा-भौंरा भव्य अनाज के गोदाम स्थित है।
- राणा सांगा की रानी कर्मावती द्वारा शुरू करी गई अधूरी छतरी स्थित है।
- झांई का युद्ध (1299 ई.)- अलाउद्दीन खिलजी की ओर से युद्ध का नेतृत्व बयाना के शासक उलगूखां तथा कड़ा के शासक नूसरत खां ने किया था। जबकि हम्मीर देव की ओर से धर्मसिंह और भीमसिंह ने किया था।
- रणथम्भौर किले के बारे में जलालुद्दीन खिलजी ने कहा कि – मैं इस दुर्ग को मुस्लिम भाइयों के सिर के बाल बराबर भी नहीं समझता।
- रणथम्भौर का युद्ध (11 जुलाई 1301 ई.)- यह युद्ध अलाउद्दीन खिलजी और हम्मीर चौहान के मध्य हुआ था। चन्द्रशेखर द्वारा रचित हम्मीर हठ के अनुसार- हम्मीर ने अलाउद्दीन खिलजी के विद्रोही सेनापति मीर मुहम्मद शाह को अपने यहां शरण देकर खिलजी को चेतावनी दी थी।
- मीर मुहम्मद शाह (महमांशाह) खिलजी की बेगम चिमना से प्रेम करता था जिसको भगाकर हम्मीर के यहां शरण ली थी।
- इस युद्ध में रणमल व रतिपाल के विश्वासघात के कारण रणथम्भौर पर अलाउद्दीन खिलजी का अधिकार हो गया था।
- हम्मीर की पत्नि रंगदेवी के नेतृत्व में अन्य राजपुत रानियों ने पद्मला तालाब में जल जौहर रचाया जो राजस्थान का एकमात्र जल जौहर है।
- इस युद्ध का वर्णन हम्मीर महाकाव्य (नयन चन्द्र सूरी) में मिलता है।
- रणथम्भौर दुर्ग में एक ऐसा महल है, जिसमें तीन साम्प्रदायिक संस्कृतियों का समन्वय देखने को मिलता है। एक ही स्थान पर मन्दिर, मस्जिद, गिरजाघर स्थित है। इस महल को सुपारी महल कहा जाता है।
- रणथम्भौर के जोगी महल में मारवाड के मालदेव व हुमायूं की मुलाकात हुई।
- अमीर खुसरो ने रणथम्भौर दुर्ग के बारे में लिखा है, कि क्रुफ्र का गढ इस्लाम का घर हो गया।
नोट- हम्मीर रासौ- जोधराज/सांरगधर
हम्मीर हठ- चन्द्रशेखर
सिवाना दुर्ग-
- बाड़मेर जिले में स्थित इस दुर्ग का निर्माण 954 ई. में परमार शासक वीर नारायण ने करवाया था।
- अलाउद्दीन खिलजी के समय यहां का शासक कान्हड़देव का भतीजा सातलदेव था।
- इस दुर्ग पर कूमट नामक झाडी बहुतायत मात्रा में मिलती है इसलिये इसे कूमट दुर्ग भी कहा जाता है।
- प्रथम साका – 1308 ई. में अलाउद्दीन के आक्रमण के समय हुआ उस समय यहां का शासक सातलदेव था। अलाउद्दीन खिलजी का सेनापत्ति कुमालुद्दीन गुर्ग ने सातलदेव के सेनापति भायला पंवार को प्रलोभन देकर दुर्ग में स्थित भांडेलाव तालाब को गौरक्त से अपवित्र करवा दिया इस विश्वासघात के कारण किले पर अलाउद्दीन का अधिकार हो गया।
- दूसरा साका – 1582 ई. में अकबर के कहने पर मारवाड़ का मोटा राजा उदयसिंह के द्वारा आक्रमण किया गया था। उस समय सिवाना का शासक वीर कल्ला रायमलोथ था जिसके नेतृत्व में राजपुत रानियों ने जौहर किया।
जालौर का किला (सुवर्णगिरि)-
- यह सोनगिरि पहाड़ी (2408 फुट ऊंची) पर स्थित लूनी की सहायक सुकड़ी नदी के तट पर बना हुआ है। जिसका निर्माण गुर्जर-प्रतिहार राजा नागभट्ट प्रथम ने आठवीं शताब्दीं में प्रारम्भ करवाया था। लेकिन किले का पूर्ण निर्माण 10वीं शताब्दीं में परमार शासक धारावर्ष ने करवाया था।
नोट- ताज-उल-मासिर का लेखक हसन निजामी लिखता है कि यह ऐसा किला है जिसका दरवाजा कोई आक्रमणकारी नहीं खोल सका।
- इस किले पर परमार, चौहान, सोलंकी, तुर्क और राठाडों का समय-समय पर आधिपत्य रहा है। यहां दो मंजिला रानी का महल, सोहन बावडी, ढ़हियों की पोल, मानसिंह का महल, वीरमदेव की चौकी, मलिकशाह की दरगाह, तथा एक तोप मस्जिद स्थित है, जो पूर्व में परमार शासक भोज द्वारा निर्मित संस्कृत पाठशाला थी।
- साका- जालौर का प्रसिद्ध शासक कान्हड़देव चौहान (1305-1311 ई.) था जो अलाउद्दीन खिलजी से दुर्ग की रक्षा करता हुआ अपने पुत्र वीरमदेव सहित वीरगति को प्राप्त हो गया था।
- पद्मनाथ द्वारा रचित गं्रथ कान्हड़दे प्रबन्ध के अनुसार 1298 ई. में अलाउद्दीन खिलजी की सेना गुजरात अभियान पर जा रही थी जो गुजरात जाने के सीधे मार्ग में जालौर पडता था परन्तु कान्हड़देव ने शाही सेना को जालौर मार्ग से नहीं जाने दिया तो शाही सेना दूसरे मार्ग से गुजरात चली गई अन्त में शाही सेना गुजरात को जीतकर वापस दिल्ली के लिये रवाना हुई तो इस बार भी शाही सेना ने जालौर होकर गुजरने की सोची तो, कान्हड़देव की राजपुत सेना ने आक्रमण कर दिया और गुजरात से लूटकर लाये गये धन का कुछ भाग राजपुतों के हाथ में आ गया इस समय तो शाही सेना चुपचाप दिल्ली लौट गई।
- 1305 ई. में अलाऊद्दीन खिलजी ने अपने इस अपमान का बदला लेने के लिये अपने सेनापत्ति मुल्तानी को जालौर पर आक्रमण करने के लिए भेजा जिसमें अलाऊद्दीन व कान्हड़देव के मध्य समझौता हुआ। समझौते के तहत कान्हड़देव व पुत्र वीरमदेव दिल्ली दरबार में पेश हुए जहां वीरमदेव को खिलजी ने अपने दरबार में नियुक्त कर लिया। वहां पर अलाउद्दीन खिलजी की राजपुत्री फिरोजा को वीरमदेव से प्यार हो गया।
- अलाउद्दीन खिलजी ने इसको अपना अपमान माना और उसने जालौर दुर्ग पर आक्रमण करने के लिये कमालुद्दीन गुर्ग के नेतृत्व में सेना भेजी।
- दहिया राजपुत बीका को कमालुद्दीन गुर्ग ने दुर्ग का लालच देकर दुर्ग के गुप्त मार्ग का पता ज्ञात कर लिया तब इस घटना की जानकारी बीका की पत्नि क्षत्रिया को हुई तो क्षत्रिया ने अपने पति बीका को रात्रि में मौत के घाट उतार दिया और सारी बात क्षत्रिया ने कान्हड़देव को अवगत कराई लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। इस प्रकार 1311 ई. में जालौर दुर्ग में शाही सेना गुप्त मार्ग से प्रवेश कर गई और इसी के साथ कान्हडदेव पुत्र वीरमदेव दुर्ग की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।
- खिलजी के आदेशानुसार वीरमदेव को जिंदा या मुर्दा दिल्ली लाया जाये अन्त में वीरमदेव का सिर काटकर दिल्ली ले जाया गया जहां फिरोजा ने वीरमदेव का सम्मानपूर्वक दाह संस्कार करवाया और स्वयं यमुना नदी में कूदकर अपनी जान दे दी।
कुंभलगढ़ दुर्ग (राजसमंद)-
- यह पर्वत दुर्ग राजसमंद जिले के सादड़ी गांव के पास मेवाड़ व मारवाड़ की सीमा पर अवस्थित है।
- जिसका निर्माण सम्राट अशोक के पुत्र संप्रति के द्वारा बनवाये गये अवशेषों पर (1448 से 1458 ई.) महाराणा कुंभा के शासनकाल (1433-68 ई.) में शिल्पकार मंडन की देखरेख में 1448 से 1458 ई. के दौरान पूर्ण हुआ।
- जिसकी प्राचीर 36 किमी. लम्बी है जिस पर तीन चार घुडसवार एक साथ चल सकते है, इस पहाडी दुर्ग तक पहुंचने के लिए कायलाना गांव होकर गुजरना पडता है इस दुर्ग दीवार की तुलना चीन की दीवार से की जाती है।
- इसी दुर्ग के कटारगढ़ में मामादेव नामक कुण्ड के किनारे महाराणा कुम्भा के पुत्र ऊदा ने कुम्भा की हत्या (1468 ई.) की। इसलिए इतिहास में ऊदा को पित्र हन्ता कहते है।
- दुर्ग के अन्दर एक दुर्ग ओर बना हुआ है जिसे कटारगढ़ का दुर्ग कहते है, इस दुर्ग का निर्माण महाराणा कुंभा ने अपने निवास हेतु बनवाया था। इसी दुर्ग में महाराणा उदयसिंह का राज्याभिषेक तथा 9 मई 1540 ई. को महाराणा प्रताप का जन्म हुआ था।
- कटारगढ़ दुर्ग के बारे अबुल फजल ने कहा था कि यह दुर्ग इतनी बुलंदी पर बना हुआ है कि नीचे से ऊपर की ओर देखने पर सिर से पगड़ी गिर जाती हैं।
- यह राजस्थान के सर्वाधिक सुरक्षित किलों में से एक है, जो मेवाड की आंख तथा मेवाड़ की संकट कालीन राजधानी कहलाता है। उदयसिंह एवं महाराजा प्रताप ने अपने संकट के दिन यही बिताये थे।
- इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड ने सुदृढ प्राचीर, बुर्जो, कंगूरों के कारण इसकी तुलना एस्ट्रकन दुर्ग से की है।
- यहां झाली रानी का महल (झाली का मालिया) कुंभा महल, कुंभश्याम मंदिर, पृथ्वीराज (उडना राजकुमार) की 12 खम्भों की छतरी आदि स्थित है।
- महाराणा रायमल का पुत्र पृथ्वीराज एक अच्छा धावक था इसलिए इसे इतिहास में उड़ना राजकुमार के नाम से जाना जाता था।
- महाराणा प्रताप ने चावण्ड से पहले कुम्भलगढ़ को अपनी राजधानी बनाया था।
- बणवीर के हाथों से उदयसिंह को बचाकर अपने पुत्र चन्दन की बली देने वाली दासी पन्नाधाय को इसी कुम्भलगढ़ दुर्ग में आशादेवपुरा ने शरण दी थी।
- किले का आरेठ पोल नामक दरवाजा केलवाड़ा कस्बे के पश्चिम में कुछ दूरी पर 700 फीट नाल चढ़ने पर बना हुआ है फिर 1.5 किमी. हल्ला पोल फिर हनुमान पोल फिर विजयपोल, नींबू पोल, भैंरवपोल, चौगानपोल, पागड़ापोल तथा गणेशपोल आदि दरवाजे आते है।
- हल्दीघाटी के युद्ध (1576 ई.) के बाद 1578 ई. में शाहबाज खां के नेतृत्व में मुगल ने इस किले पर आक्रमण किया प्रथम बार ये किला मेवाड़ के शासकों के हाथ से निकला था लेकिन पुनः महाराणा प्रताप ने इस पर अधिकार कर लिया तब से 1947 ई. तक यह किला मेवाड़ के शासकों के अधीन रहा।
मेहरानगढ़ किला- जोधपुर
- इस दो मंजिले (NCERT) दुर्ग की नींव भौरचिरैया पहाड़ी पर 13 मई 1459 ई. को राव नारा की मदद से राव जोधा ने रखी थी
- इस दुर्ग की नींव का प्रथम पत्थर रिद्धि बाई (करणी माता) ने रखा।
- यह दुर्ग जिस पहाड़ी पर बना है वहां चिड़ियानाथ नामक योगी तपस्या करता था अतः यह पहाड़ी चिड़ियाटूंक कहलाई।
- यह दुर्ग गिरि दुर्ग की श्रेणी में आता है।
- मेहरानगढ का किला मयूरध्वज, कागमुखी, चिड़ियाटूंक तथा गढ़ चिंतामणी आदि नामो से जाना जाता है।
- मेहरानगढ़ संस्कृत के मिहिर शब्द से बना है जिसका अर्थ सूर्य होता है।
- राव जोधा सूर्य के उपासक थे इसलिए उन्होने इस दुर्ग का नाम मिहिरगढ़ रखा। लेकिन राजस्थान की बोली के स्वर से मिहिरगढ़ से मेहरानगढ़ हो गया।
- मारवाड़ के राठौड़ की प्रसिद्ध राजधानी मंड़ौर थी।
- रूड़यार्ड़ किपलिंग ने इस दुर्ग के बारे में कहा है कि यह परियों व देवताओं द्वारा बनाया गया दुर्ग है।
- (NCERT) किलें का मूलभाग राव जोधा ने बनवाया इसके बाद 1538-78 ई. के दौरान जसवंत सिंह ने किले का विस्तार करवाया।
- फतह पोल दरवाजे का निर्माण 1707 ई. में मुगलों की जीत के उपलक्ष्य में करवाया था।
- जयपोल दरवाजे का निर्माण 1806 ई. में महाराजा मानसिंह ने जयपुर व बीकानेर के शासकों पर जीत के उपलक्ष्य में बनवाया था।
- किले के अन्दर – किलकिला, गजनी खां, शम्भूबाण तोपे (NCERT)स्थित है मोतीमहल, फतह महल, फूल महल, श्रृंगार महल, जहूरखां की मजार, भूरेखां की मजार, श्रीनगर चौकी, शीशमहल, कीरत सिंह सोड़ा की छत्तरी, धन्ना की छत्तरी, तख्त विलास, पदमसागर व राणीसर नामक तालाब आदि स्थित है।
- चामुण्ड़ा माता का मन्दिर- इस मन्दिर का निर्माण राव जोधा ने करवाया तथा पुनः निर्माण राजा तख्त सिंह ने करवाया था।
- यहां 2008 मे भगदड़ मच जाने के कारण 250 श्रदालुओ की मौत हुई थी। जिसके लिए जसराज चोपड़ा आयोग का गठन किया गया था।
- इस दुर्ग में राठौड़ों की कुल देवी नागणेची माता का मन्दिर व भूरे खां की मजार प्रसिद्ध है।
- नागणेची माता का मुख्य मन्दिर बाड़मेर जिले की पचपदरा तहसील के नागोणा गांव मंे स्थित है जहां पर माता की लकड़ी की प्राचीन मूर्ति दर्शनीय है।
- इस दुर्ग की तलहटी में जसवंत सिंह द्वितीय की स्मृति में महाराजा सरदार सिंह ने पूर्णतः सफेद संगमरमर से युक्त जसवंत थड़ा नामक इमारत बनवाई इसी इमारत को राजस्थान का ताजमहल कहा जाता है व दूसरा ताजमहल अबली मीणी का महल है।
- शेरशाह सूरी ने 1544 ई. गिरिसुमेल के युद्ध मंे मालदेव को हराकर इस दुर्ग में सूरी मस्जिद का निर्माण करवाया।
नोट- मालदेव को हशमत वाला शासक/हिन्दू बादशाह के नाम से जाना जाता है
- मोती महल- राजा सूरसिंह द्वारा निर्मित (1596-1619 ई.)
- फूल महल- अभयसिंह द्वारा निर्मित (1724-1749 ई.)
- तख्त विलास- तख्त सिंह द्वारा निर्मित (1843-1873 ई.)
- यहां एक तांत्रिक के तहत दुर्ग की नींव में राजिया नामक व्यक्ति को जिंदा चुनवा दिया था।
- प्रसिद्ध विद्धान जैकलिन कैनेड़ी ने इस दुर्ग को विश्व के आठवें आश्चर्य की संज्ञा दी।
- यह किला वीर दुर्गादास राठौड की स्वामी भक्ति का साक्षी रहा है।
वीर दुर्गादास राठौड
- वीर दुर्गादास का जन्म 13 अगस्त 1638 ई. को सालवा गांव में हुआ था। इनके पिता आसकरण जोधपुर के महाराजा गजसिंह के सेवक थे आसकरण के तीन रानियां थी। दुर्गादास तीसरी रानी का पुत्र था। आसकरण ने दुर्गादास व उसकी माता का त्याग करके उन्हें मारवाड़ के लूनवा गांव में छोड़ दिया यही पर दुर्गादास ने शिक्षा ग्रहण की।
- 1655 ई की घटना थी कि जोधपुर राज्य के एक कर्मचारी (पशुचारण) ने दुर्गादास की खडी फसल को बर्बाद करने पर दुर्गादास ने उसकी हत्या कर दी थी। जसवंत सिंह दुर्गादास की बहादुरी से प्रसन्न होकर उसे अपना सेवक बना लिया था।
- जसवंत सिंह को औरंगजेब ने काबुल प्रांत में जमरूद की थानेदारी सौंपी वही पर जसवंत सिंह की 1678 ई. में मृत्यु हो गई उस समय उसकी दो रानियां नरूकी और जादमन गर्भवती थी। 1679 ई. में दोनों रानियों के दो पुत्र हुये बड़े का नाम अजीतसिंह और छोटे का नाम दलथंभन रखा।
- पेशावर से राठौड़ दल दिल्ली पहुंचकर औरंगजेब से मिलकर अजीत सिंह को मारवाड़ राज्य का शासक बनाने का आग्रह किया लेकिन औरंगजेब ने नागौर के इन्द्रसिंह को जोधपुर का राजा बना दिया। और अजीतसिंह को अपने सैनिको की पहरेदारी में बैठा दिया जब वीर दुर्गादास को औरंगजेब की नीति पर शक हुआ तो औरंगजेब ने अजीत सिंह को फुलो की टोकरी में छिपाकर मारवाड़ पहुंचाया।
नोट- कर्नल जेम्स टॉड ने वीर दुर्गादास राठौड़ को राठौड़ो का यूलीसेज कहा।
जैसलमेर दुर्ग-
- जैसलमेर दुर्ग को राजस्थान का अण्डमान, रेगिस्तान का गुलाब, गालियों का किला, त्रिकुटागढ़, सोनारगढ़ तथा स्वर्णगिरि आदि नामों से जाना जाता है।
- इसकी नींव 12 जुलाई 1155 ई. को महारावल जैसल भाटी के द्वारा रखी गई थी। इसका पूर्ण निर्माण जैसल के पुत्र शालीवाहन द्वितीय ने 1187 ई. में करवाया।
- यह किला दूर से देखने पर पहाडी पर लंगर डाले हुए एक जहाज का आभास कराता है।
- यह दुर्ग धान्वन श्रेणी में आता है।
- किले का मुख्य प्रवेश द्वार अक्षयपोल कहलाता है।
- इस दुर्ग पर जब सूर्य की किरणें चमकती है तब यह दुर्ग सोने के समान चमकता है इसलिए इसे सोनारगढ व स्वर्णगिरि दुर्ग भी कहा जाता है।
- यह किला बिना चुने के सिर्फ पीले पत्थरों पर पत्थर रखकर बनाया गया था। जिसे उत्तर भड किवाड का किला भी कहा जाता है जिसमें सर्वाधिक 99 दुर्ग है।
उत्तर भड किवाड की संज्ञा हनुमानगढ के भटनेर दुर्ग को भी प्राप्त है।
- इस किले के तहखाने में जिनभद्र सूरी द्वारा पुरानी हस्तलिखित पाण्डुलिपि के दुर्लभ भण्डार है।
- इस दुर्ग में जैसलू कुआं स्थित है जिसका निर्माण भगवान कृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से किया था।
- इस किले के बारे में अबुल फजल ने कहा था यह ऐसा किला है जहां पहुंचने के लिए पत्थर की टांगे चाहिए
गढ दिल्ली गढ आगरो, अधगढ बीकानेर।
भलो चुणायो भाटीयो, सिरे तौ जैसलमेर।।
- यह राजस्थान के चितौड दुर्ग के बाद दूसरा सबसे बडा लिविंग फोर्ट है।
- प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक सत्यजीत रे ने सोनार किला नामक फिल्म का निर्माण इसी दुर्ग में किया।
- दुर्ग के चारों ओर घाघरानुमा परकोटा बना हुआ है, जिसे कमरकोट कहा जाता है
- जैलसमेर दुर्ग- जनवरी 2005 में विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया।
- इस दुर्ग पर 2009 में पांच रूपये का डाक टिकट जारी किया गया।
- किले के अन्दरः- जिनभ्रद सूरी ग्रन्थ का हस्त लिखित दुर्लभ भण्डार, रंगमहल, मोतीमहल, गजविलास, जवाहर विलास, प्राचीन जैनमंदिर -पार्श्वनाथ, संभवनाथ, ऋषभदेव आदि मंदिर अपनी शिल्प एवं सौन्दर्यता के कारण दिलवाडा के जैन मंदिरों के समतुल्य है।
- जैसलमेर के ढाई साके
- पहला साका- अलाउद्दीन खिलजी (1296-1316 ई.) के आक्रमण के दौरान 1299 ई. में हुआ था उस समय यहां का शासक मूलराज प्रथम था।
- दूसरा साका- फिरोज तुगलक (1351-1388 ई.) के आक्रमण के दौरान 1357 ई. में हुआ था उस समय यहां का शासक रावदूदा था। सेनापति त्रिलोक सिंह व अन्य भाटी सरदार वीरगति को प्राप्त हुये।
- तीसरा साका- (1550 ई.) कंधार का निष्कासित शासक अमीर अली के आक्रमण के दौरान हुआ उस समय यहां का शासक लूणकरण भाटी था। इसी भाटी शासक लूणकरण ने अमीर अली को शरण दी थी कुछ समय पश्चात इसने षडयंत्र रचकर किले पर अचानक आक्रमण कर दिया। जिसमे राजा सहित अन्य सैनिक वीरगति को प्राप्त हो गये लेकिन इस युद्ध में महिलाओं के द्वारा जौहर का आयोजन नहीं हो पाया। इसलिए यह इतिहास का अर्द्धसाका कहलाता है।
गागरौण का जल दुर्ग- (मुस्तफाबाद)
- यह किला झालावाड से 4 किमी. दूर कालीसिंध व आहू नदियों के संगम पर स्थित है।
- आहू और कालीसिंध नदियों के पवित्र संगम स्थल को स्थानीय भाषा में सामेल जी कहा जाता है।
- जिसका निर्माण 12वीं सदीं में 1195 डोड राजा बीजलदेव ने करवाया था। डोड राजपुतों के नाम पर इसे डोडगढ व धुलरगढ़ भी कहा जाता है
- यह एकमात्र दुर्ग है जो बिना किसी नींव के चट्टान पर स्थित है।
- इस दुर्ग में कोटा रियासत के द्वारा सिक्के ढालने के लिए एक टकसाल स्थापित की गई जहां बादशाह शाहआलम के समय चांदी की मुद्रा को ढाला जाता था।
- खिंची राजवंश के संस्थापक देवनसिंह ने धुलरगढ़ को जीतकर इसका नाम गागरौण रखा था।
- किले के अन्दर – संत पीपा की छतरी (प्रतापसिंह), संत हम्मीदुद्दीन चिश्ती (मीठे साहब) की दरगाह (निर्माता औरंगजेब), मधुसूधन मंदिर (कोटा के राव दुर्जनसाल द्वारा निर्मित)
नोट- संत पीपा रामानन्द के शिष्य थे जो राजस्थान मे़ं भक्ति आंदोलन की अलख जगाने वाले प्रथम संत थे। जिनका अन्तिम समय टोंक जिले के टोडा ग्राम मे़ं व्यतित हुआ
- औरंगजेब द्वारा निर्मित बुलन्द दरवाजा दर्शनीय है।
- इस किले के पीछे एक पहाड़ी है जिसे गिध कराई कहते है प्राचीनकाल मे़ं राजबन्दियों को यहां मृत्युदण्ड दिया जाता था। इसलिए इस किले को मौत का किला भी कहा जाता है।
- इस किले के परकोटे को जालिमकोट के नाम से जाना जाता है
- किले के अन्दरः- दीवान-ए-आम, दीवान – ए – खास, जनाना महल, नक्कार खाना, भैरवी पोल, सिलेह खाना आदि प्रमुख है
- प्रथम साका – 1423 ई. में मांडू (मालवा) के शासक होशंग शाह के आक्रमण के दौरान हुआ था उस समय यहां का शासक अचलदास खिंची था।
- जिसका वर्णन शिवदास गाडण द्वारा रचित कृति अचलदास खिंची री वचनिका में किया गया है।
- दूसरा साका – 1444 ई. में मांडू (मालवा) के शासक महमूद खिलजी के आक्रमण के दौरान हुआ था। उस समय यहां का शासक अचलदास खिंची का पुत्र पाल्हणसी था जिसमे सुल्तान की विजय हुई सुल्तान ने इस दुर्ग का नाम मुस्तफावाद रखा। अपने शासनकाल के दौरान समय-समय पर यह किला राणा सांगा (1509-28 ई.), 1532 ई. गुजरात के बहादुर शाह, 1542 ई. शेरशाह सूरी, 1562 ई. में अकबर तथा शाहजहां (1628-58 ई.) आदि के अधीन रहा इसके पश्चात गागरोण को कोटा के राव मुकुन्दसिंह को दे दिया 1948 ई. तक यह कोटा राज्य के अन्तर्गत ही रहा।
भटनेर का किला- (हनुमानगढ)
- यह दिल्ली -मुल्तान मार्ग पर स्थित है
- इस दुर्ग का निर्माण घग्घर नदी के तट पर भाटी राजा भूपत ने तीसरी शताब्दी (288 ई.) में करवाया था जो 50 बीघा भूमि पर विस्तृत है
- यह राजस्थान का सबसे प्राचीन किला है यह किला उत्तरी प्रवेश द्वार का रक्षक या उत्तरी सीमा का प्रहरी कहलाता है
- यह राजस्थान का सर्वाधिक विदेशी आक्रमण सहने वाला किला है
- जिस पर सबसे अधिक मंगोल, मध्य एशियाई व मुगलों के आक्रमण हुए है।
- 1001 ई. महमूद गजनवी ने भटनेर पर आक्रमण किया उस समय यहां का शासक विजयराज भाटी था।
- तीन दिन तक चले इस घमासान युद्ध में विजयराज भाटी वीरगति को प्राप्त हो गये थे।
- जिसका वर्णन वीर विनोद ग्रंथ में किया गया है।
- बलबन के शासक काल (1266-87 ई.) में शेर खां यहां का हाकिम था जिसने यही से मंगोल आक्रमणों का सफलतापूर्वक सामना किया।
- 1398 ई. में तैमूर ने भारत पर आक्रमण किया उस समय भटनेर को भी तैमूर की क्रुरता का शिकार होना पडा उस समय यहां का शासक दुलीचन्द था।
- 1527 ई. में बीकानेर के राव जैतसी ने भटनेर को अपने अधिकार में कर लिया था।
- 1534 ई. में हुमायूं के भाई कामरान ने आक्रमण किया था उस समय जैतसी का सेनापत्ति खैतसी लड़ता हुआ वीरगति को प्राप्त हो गया।
- 1549 ई. में भटनेर पर राठौड ठाकुरसी ने अधिकार कर लिया।
- 1570 ई. के लगभग अकबर ने इस पर अधिकार कर लिया था इसके बाद (1574-1612 ई.) तक बीकानेर के राजा रायसिंह और उसके पुत्र दलपत सिंह के अधीन रहा।
- 1805 ई. में बीकानेर के महाराजा सूरत सिंह ने इस किले को मंगलवार के दिन अपने अधिकार में लेकर इसका नाम हनुमानगढ़ कर दिया था।
- गुलाम वंश के शासक बलबन के चचेरे भाई शेरखां की कब्र भी इस किले में स्थित है।
- तैमूर ने इस किले के बारे में अपनी आत्मकथा तुजुक-ए-तैमूरी में लिखा है कि मैने इतना मजबूत व सुरक्षित किला पूरे हिन्दुस्तान में कहीं नहीं देखा।
- यह राजस्थान का वह दुर्ग है जिसमें हिन्दु स्त्रियों के साथ मुस्लिम स्त्रियों ने भी जौहर का आयोजन किया था।
जूनागढ़ किला- (बीकानेर)
- (महाराजा रायसिंह 1574-1612)
- जूनागढ़ किलें का निर्माण 30 जनवरी 1586 ई. में राती घाटी नामक स्थान पर महाराजा रायसिंह ने करवाया था।
- 14 फरवरी 1594 ई. को मंत्री कर्मचन्द्र के निर्देशन में बनकर तैयार हुआ।
- इस दुर्ग का निर्माण हिंदु व मुस्लिम शैली के समन्वय से हुआ है।
- धान्वन दुर्ग की श्रेणी का बना यह किला चतुष्कोणीय (1078 परिधि) आकृति का बना हुआ है इसमें समान दूरी पर 37 विशाल बुर्ज है। प्रवेश द्वार- प्रमुख दरवाजा – सूरजपोल, पूर्वी दरवाजा- कर्णपोल, पश्चिमी -चांदपोल दरवाजा स्थित है।
- जयमल व पत्ता की गजारुढ़ मूतियां स्थापित है यह मूर्तियां रायसिंह ने स्थापित करवाई थी जो कुछ समय पश्चात औरंगजेब के द्वारा तुड़वा दी गई थी।
- बीकानेर के महाराजा डूंगरसिंह ने किले के भीतर एक घंटाघर स्थापित करवाया जिसे न्याय का घंटा कहते थे।
- दुर्ग में पेयजल हेतु रामसर व रानीसर नामक कुएं प्रसिद्ध है।
- यहां 33 करोड देवी देवताओं वाला मन्दिर स्थित है, जिसमें हेरंब गणपति (सिंह पर सवार गणपति) की दुर्लभ प्रतिमा स्थित है।
- किले के दर्शनीय स्थल-
- लालगढ़ महल (महाराजा गंगासिंह द्वारा निर्मित)
- अनूप महल (महाराजा अनूपसिंह द्वारा निर्मित) यहां बीकानेर के राजाओं का राज्याभिषेक होता था।
- कर्ण महल (महाराजा अनूपसिंह द्वारा निर्मित)
- अन्य- रायसिंह चौबारा, चन्द्रमहल, फूलमहल, गजमंदिर, रतन निवास, रंगमहल, दलले निवास, लाल निवास, सूरत निवास, मोती महल, कुंवरपदा, गंगा निवास, 12 दरियां आदि।
लोहागढ़/भरतपुर किला (राजस्थान का सिंह द्वार)-
- लोहागढ़ किले का निर्माण 1733 ई. में सूरजमल जाट ने करवाया था। इस किले के स्थान पर पहले एक गढी थी। जिसका निर्माण 1700 ई. में रूस्तम सोगरिया ने करवाया था।
- मिट्टी से निर्मित यह दुर्ग अपनी अजेयता के कारण लोहागढ़ का किला कहलाता है।
- किले के चारों ओर 100 फीट चौडी खाई बनी हुई है, इसलिए यह पारिख दुर्ग की श्रेणी में आता है किले के चारों ओर सुजान गंगा नहर बहती है जिसमें मोती झील से पानी लाया जाता है।
- भरतपुर किले में दो विशाल दरवाजे है इनमें से उत्तरी कलात्मक द्वार अष्ठधातु दरवाजा तथा दक्षिणी द्वार लोहिया दरवाजा कहलाता है।
- दिल्ली विजय- 1765 ई. में महाराजा जवाहर सिंह के द्वारा अष्टधातु से निर्मित किवाड़ को दिल्ली के लाल किले से उखाड़कर भरतपुर किले में लगवाया था। जिसे अलाउद्दीन खिलजी चितौड़ से छीनकर दिल्ली लाया था।
- भरतपुर के महाराजा रणजीत सिंह ने यहां अंग्रेजों के विद्रोही जसंवत राव होल्कर को शरण देने के कारण नाराज अंग्रेजों ने 1805 ई. में जनवरी से अप्रेल तक जनरल लेक के नेतृत्व में किले को घेरे रखा। लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिल पाई। विवश होकर अंग्रेजों को महाराजा रणजीत सिंह से संधि करके लौटना पड़ा इसलिए यह अपनी अजेयता के कारण लोहागढ़ का किला कहलाता है।
- इसीलिए इस दुर्ग को हिन्दुस्तान का अजेय दुर्ग भी कहते है।
- किले के अन्दरः- जामा मस्जिद, कोठी खास, रानी किशोरी, रानी लक्ष्मी का महल, गंगा मन्दिर आदि।
नाहरगढ किला- जयपुर
- यह किला 599 मीटर ऊंची पहाड़ी पर बना है।
- नाहरगढ़ किले का निर्माण 1734 ई. में सवाई जयसिंह द्वितीय ने प्रारम्भ करवाया था। लेकिन वर्तमान स्वरुप 1868 ई. में सवाई रामसिंह द्वितीय ने प्रदान किया था।
- नाहरगढ़ किले का नाम नाहरसिंह भोमिया के नाम पर पड़ा।
- यहां सवाई माधोसिंह ने अपनी 9 पासवानों के नाम पर एक जैसे 9 महलों (सूरज प्रकाश, खुशहाल प्रकाश, जवाहर प्रकाश, ललित प्रकाश, लक्ष्मी प्रकाश, आनन्द प्रकाश, चन्द्र प्रकाश, रत्न प्रकाश तथा बसन्त प्रकाश) का निर्माण करवाया था इसके अलावा माधोसिंह द्वारा निर्मित माधवेन्द्र महल है।
- इन्हीं नौ महलों के कारण इसे सुदर्शनगढ़ भी कहा गया है।
- महाराजा जगतसिंह की प्रेमिका रसकपुर को इसी किले में कैद करके रखा गया था।
- नाहरगढ़ दुर्ग की तलहटी में जयपुर के कछवाह शासकों की छतरियां स्थित है, जिन्हंे गैटोर की छतरियां कहा जाता है।
- यह किला जयपुर का पहरेदार कहलाता है।
चूरू का किला
- चूरू किले का निर्माण 1694 ई. में ठाकुर कुशालसिंह ने गद्दी पर बैठने के बाद 1739 ई. में करवाया था।
- इस किले की एक ऐतिहासिकता है कि अपनी आजादी व अस्मिता की रक्षा के लिए यहां के राजा शिवसिंह ने 1814 ई. में बीकानेर के महाराजा सूरतसिंह के विरूद्ध किले में लोहे के गोला बारूद खत्म होने पर चांदी के गोले दागे गये थे।
नागौर का किला
- नागौर किले का निर्माण महाराजा सोमेश्वर के मंत्री कैमास ने करवाया था।
- यह दुर्ग धान्वन दुर्ग की श्रेणी में आता है।
- यह दोहरे परकोटे वाला किला है जिसमें 28 बुर्ज है।
- यह दुर्ग नागदुर्ग, नागऊर, नागाणा व अहिछत्रपुर दुर्ग के नाम से भी जाना जाता है।
- 1570 ई. में जब अकबर अजमेर आया उस समय इस दुर्ग में नागौर दरबार का आयोजन रखा था।
- नागौर दुर्ग में अकबर ने शुक्र तालाब का निर्माण करवाया।
- यह राजस्थान का वह दुर्ग है जिसमें बाहर से चलाये गए तोपों के गोले किले को बिना हानि पहुंचाये ऊपर से निकल जाते है।
- यह दुर्ग जोधपुर महाराजा गजसिंह के पुत्र अमरसिंह राठौड की वीरता का प्रतीक रहा है।
- अमरसिंह राठौड ने सलावत खां द्वारा गंवार कहने पर उसका वध कर दिया था।
- मुगल सम्राट अकबर के नवरत्नों में शामिल फैजी व अबुल फजल की यह जन्म स्थली है।
- इसी दुर्ग में अमरसिंह राठौड की छतरी स्थित है, जो 16 खम्भों वाली छतरी कहलाती है।
- 2007 ई. में यूनेस्कों द्वारा इसे साफ-सफाई के लिए अवार्ड ऑफ एक्सीलेंस से सम्मानित किया गया था।
- तराइन के द्वितीय युद्ध (1192 ई.) के बाद यह किला मुहम्मद गौरी ने हस्तगत कर लिया उसके बाद कुतुबुद्दीन ऐबक, इल्तुतमिश तथा बलबन का अधिकार रहा। 1400 ई. में फिरोजखान नागौर का पहला स्वतंत्र सुल्तान बना। 1423 ई. में मंडोर के राव चूडा, मेवाड़ के महाराणा मोकल एवं महाराणा कुंभा के अधिकृत रहा, कुंभा ने यहां से हनुमानजी की मूर्ति ले जाकर कुभलगढ़ में स्थापित करवाई फिर शेरशाह एवं मालदेव के अधीन रहा।
- किले के अन्दरः- 6 विशाल दरवाजे –
- सिराईपोल
- बिचलीपोल
- कचहरीपोल
- सूरजपोल
- धूपीपोल
- राजपोल
- अमरसिंह राठौड़
- मारवाड़ राजघराने के राजपूत अमरसिंह राठौड़ मुगल शहंशाह शाहजहां के दरबार में थे उसके अपने बेहतरीन युद्ध कौशल और वीरता से प्रभावित होकर शहंशाह ने उसे नागौर क्षेत्र का सूबेदार बना दिया।
- मुगल दरबार में उनके बढ़ते प्रभाव से अन्य दरबारी अमरसिंह से ईर्ष्या करते थे। 1644 ई. की बात है जब एक दिन शहंशाह की अनुमति के बिना अमरसिंह शिकार पर चला गया तो अन्य दरबारियों ने उनके खिलाफ शाहजहां को भड़का दिये।
- शाहजहां ने अमरसिंह को दरबार में तलब किया और जुर्माना भी लगाया तो उसी समय गुस्सायें अमरसिंह ने अपनी तलवार निकालकर सबको चुनौती दे डाली।
- इसी दौरान दरबारी सलावत खां ने हमला किया तो भरे दरबार में शहंशाह के सामने ही अमरसिंह ने उसका सिर काट दिया।
- इस पर पूरी मुगल सेना ने अमरसिंह को पकड़ने की कोशिश की। परन्तु अमरसिंह मुगलों से युद्ध करता हुआ अपने घोड़े बहादुर पर सवार होकर किले की दीवार से कूद गया। घोड़े की वही मौत हो गई और अमरसिंह भाग निकला।
- शहंशाह ने ये जिम्मेदारी अमरसिंह के साले अर्जुन सिंह को दी। अर्जुन सिंह धोखा देकर साजिश के तहत अमर सिंह को किले में ले आया। जहां अमरसिंह की हत्या कर दी गई।
तारागढ़ किला (अजयमेरू दुर्ग) – अजमेर
- बीठली पहाडी पर बने इस दुर्ग को गठबीठली का किला भी कहा जाता है इस किलें का निर्माण 1113 ई. में अजयराज चौहान ने करवाया था।
- यह दुर्ग अरावली पर्वतमाला के मध्य में स्थित होने के कारण इसे अरावली का अरमान कहते है।
- यह दुर्ग राजस्थान के मध्य में होने के कारण इसे राजस्थान का हृदय व राजपूताने की कुंजी कहते है।
- तारागढ़ दुर्ग पर सर्वाधिक स्थानीय आक्रमण हुये इसी दुर्ग में शाहजहां के बडे पुत्र दाराशिकोह का जन्म हुआ।
- मुगल बादशाह शाहजहां के मंत्री विठ्लदास गौड़ ने इसका पुनः निर्माण करवाया था।
- मेवाड़ के राणा रायमल के ज्येष्ठ पुत्र उड़ना राजकुमार पृथ्वीराज की पत्नि ताराबाई के नाम पर यह तारागढ़ कहलाया। 1505 ई. में पृथ्वीराज ने यहां कुछ समय के लिए शासन संभाला था। उसी शासनकाल में इस किले का नाम तारागढ़ पडा।
- दुर्ग के अन्दर तारागढ़ के प्रथम गवर्नर मीर सैयद हुसैन खिंगसवार की दरगाह स्थित है जो मीरान साहब की दरगाह के नाम से प्रसिद्ध है। जिन्होंने 1202 ई. में किले की रक्षा करते हुए अपने प्राण त्याग दिये थे।
- यहां मालदेव की रुठी रानी उम्मादे की छत्तरी, पृथ्वीराज चौहान का स्मारक स्थल, घोडे की मजार, चश्मा-ए-नूर नामक जलाशय आदि स्थित है।
- यह किला मराठों के अधिकार में रहा था। नाना साहब मराठा ने यहां नाना साहब का झालरा बनवाया था इसके अलावा किले में 14 विशाल बुर्ज व पांच बडे जलाशय है जिसमें नाना साहब का झालरा, गोल झालरा तथा इब्राहीम का झालरा प्रमुख है।
- किले में हिंजडे की मजार बनी हुई है।
- बिशप हैबर ने इसे पूर्व का जिब्राल्टर कहा था।
- जिब्राल्टर क्या है- यूरोप के दक्षिणी छोर पर भूमध्य सागर के किनारे स्थित एक स्वशासी ब्रिटिश विदेशी क्षेत्र है जिब्राल्टर ऐतिहासिक रूप से ब्रिटेन के सशस्त्र बलों के लिए एक महत्वपूर्ण आधार रहा है।
- उम्मादे की कथा
- जोधपुर के राव मालदेव का विवाह जैसलमेर के रावल लुणकरण की पुत्री उम्मादे के साथ हुआ था। विवाह की प्रथम रात को उम्मादे ने अपनी दासी भारमली को मालदेव को बुलाने के लिए भेजा तो उस समय मालदेव शराब के नशे में था। वह भारमली को ही उम्मादे समझ बैठा और विवाह की प्रथम रात दासी भारमली के साथ बिताई। जब प्रातः काल उम्मादे को इस बात का पता चला तो वह मालदेव से रूठकर अजमेर के तारागढ़ दुर्ग में चली गई इसलिए इतिहास में इसे रूठी रानी के नाम से जाना जाता है। 1562 ई. में मालदेव की मृत्यु के साथ सती हो गई।
तारागढ़ किला (बूंदी)
- यह शिखरनूूमा पर्वत पर स्थित किला है जिसे नीचे से ऊपर की ओर देखने पर तारे के समान दिखाई देता है इसलिए यह तारागढ का किला कहलाता है।
- यहां पर प्राचीन काल में बूंदा मीणा का शासन था उसी के नाम पर इस शहर का नाम बूंदी पड़ा।
- इस किले का निर्माण 14वीं शताब्दी (1354 ई.) में हाड़ा शासक बरसिंह ने करवाया था।
- अंग्रेज लेखक रूडयार्ड़ किपलिंग ने सुखमहल में ठहरकर जंगल नामक पुस्तक की रचना की थी और किलंे के बारे में कहा है, कि यहां के महलों का निर्माण भूत-प्रेतों ने करवाया है।
- यहां नौबत खाना, अश्व शाला, सुखमहल, अनिरूध महल, फूल सागर तालाब, रानी जी की बावडी, जीवरक्खा महल, दूधा महल, 84 खंम्भों की छतरी, फुलसागर, जैतसागर तथा गर्म गुंजन तोप आदि प्रमुख है।
- राजस्थान में सर्वप्रथम मराठों ने बूंदी पर आक्रमण किया था।
- यहां के महलों के बारे में कर्नल जेम्स टॉड ने कहा कि बूंदी के महल राजस्थान के सर्वश्रेष्ट महलों में से एक है।
- रानी जी की बावड़ी- इसका निर्माण राजा अनिरूध सिंह की रानी नाथावत ने करवाया था।
- बूंदी के राजमहल अपने शिल्प व सौन्दर्य के कारण प्रसिद्ध है विशेषकर उम्मेद सिंह के शासनकाल में निर्मित चित्रशाला (रंग विलास) चित्रशैली का उदाहरण है।
- तारागढ़ दुर्ग में सर्वाधिक छोटे बडे़ महलों की संख्या अधिक होने के कारण इसे महलों का परिसर भी कहते है।
- मेवाड़ के राणा लाखा (1382-1421 ई.) अथक प्रयासों के बावजूद बूंदी पर अधिकार न कर सका तब राणा लाखा ने मिट्टी का नकली बूंदी दुर्ग बनवाकर इसे ध्वस्त किया तथा अपनी प्रतिज्ञा पूरी की। लेकिन नकली दुर्ग की रक्षा के लिए कुम्भा हाड़ा ने अपने प्राणों की बाजी लगा दी।
- यह किला महाराणा कुम्भा, राव सुर्जन हाड़ा, आमेर के राजा सवाई जयसिंह तथा उसके बाद 1818 ई. में यह किला अग्रेंजों के प्रभाव में चला गया।
अकबर का किला (मैग्जीन) – (अजमेर)
- अकबर किलें का निर्माण 1570 ई. में ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए अकबर ने करवाया था इसे अकबर का दौलत खाना भी कहते है।
- मुस्लिम निर्माण पद्धति से बना यह राजस्थान का एकमात्र किला है।
- 1573 ई. में महाराणा प्रताप के विरूद्ध हल्दी घाटी युद्ध की योजना को भी अन्तिम रूप इसी किले में दिया गया था।
- 1597 ई में महाराणा प्रताप की मृत्यु के पश्चात उनका पुत्र अमरसिंहं गद्दी पर बैठा। उधर मेवाड़ को मुगल शासक जहांगीर अपने अधीन करने के उद्देश्य से महाराणा अमरसिंह पर लगातार दबाव बनायें रखा था। जिसके लिए जहांगीर 1613 ई. से 1616 ई. तक इसी किले में तीन वर्ष तक रूका रहा था। अन्त में निरन्तर दबाव के चलते 1615 ई. में मेवाड़ व मुगलो (जहांगीर व अमरसिंह) के बीच संधि हुई
- इसी समय 10 जनवरी 1616 ई. में ब्रिटिश सम्राट जेम्स प्रथम के राजदूत सर टॉमस रो से जहांगीर की मुलाकात हुई थी जहां सर टॉमस रो ने ईस्ट इण्डिया कम्पनी के लिए भारत में व्यापार करने की अनुमति प्राप्त की थी।
- 1801 ई. में अंग्रेजों ने इस किले पर अधिकार कर इसे अपना शस्त्रागार (मैग्जीन) बना लिया इसलिए इसे मैग्जीन किला भी कहते है।
- 1908 ई. में यहां एक पुरातात्विक संग्रहालय (राजपूताना म्यूजियम) की स्थापना की गई थी।
अचलगढ़ किला – माउण्ट आबू, सिरोही
- अचलगढ़ किले का निर्माण प्रारम्भ में परमार शासकों ने करवाया था। लेकिन इसका पुनः निर्माण 1452 ई. में महाराणा कुंभा ने किया था।
- यहां गुजरात के शासक महमूद बेगड़ा के आक्रमण के समय उसकी सेना पर मधुमक्खियों के झुण्ड ने आक्रमण कर दिया था। वह स्थान भंवराथल के नाम से प्रसिद्ध है।
- दुर्ग के अन्दर ओखा रानी का महल, सावन-भादो झील, देवरानी-जेठानी के कोठे, अचलेश्वर महादेव का मन्दिर, कपूर सागर सरोवर व मन्दाकिनी कुण्ड प्रमुख है।
- अचलेश्वर महादेव के मन्दिर में महाराणा कुम्भा द्वारा निर्मित कवि दुरसा आढा की पीतल की मूर्ति स्थापित है
- यहां भगवान शिव के पैर की अगूंठे की पूजा भी की जाती है।
आमेर का किला -जयपुर
- आमेर किले का निर्माण कछवाह राजा धुलेवराय ने करवाया था लेकिन वर्तमान स्वरुप 1600 ई. में राजा मानसिंह ने दिया था।
- किले की तलहटी में मावठा झील स्थित है।
- राजा मानसिंह प्रथम ने बंगाल से शीला देवी की मूर्ति लाकर आमेर में स्थापित करवाई थी। बाद में राजा मानसिंह द्वितीय ने इसे वर्तमान मन्दिर का रूप प्रदान किया।
- दुर्ग के अन्दरः- रंगमहल, दिलखुश महल तथा शीशमहल प्रमुख है।
- प्रसिद्ध इतिहासकार विशप हैबर ने आमेर के दुर्ग में बने हुए महलों के बारे में लिखा था कि- मैने क्रेमलिन में जो देखा है और परम ब्रह्मा के बारे में सुना है उससे कही बढ़कर ये महल है।
जयगढ़ का किला- जयपुर
- यह राजा मानसिंह द्वारा निर्मित किला है जिसे वर्तमान स्वरुप सवाई जयसिंह ने प्रदान किया था। उन्ही के नाम पर इस किले का नाम जयगढ़ पडा।
- जिस पहाड़ी पर यह किला है उसे चिल्हटीबा कहा जाता था इसलिए इसे चिल्ह का किला भी कहते है।
- इस किले में अनेक सुरंगे बनी हुई है। इसलिए इसे रहस्यमयी दुर्ग तथा संकटमोचन किला भी कहा जाता है।
- किले में तीन प्रवेश द्वार है – डूंगर दरवाजा, अवनि दरवाजा, भैंरू दरवाजा।
- जयबाण तोप- यह विश्व की सबसे बडी तोप है जिसका निर्माण 1720 ई. में सवाई जयसिंह ने करवाया था इसकी मारक क्षमता 22 मील है जब इसको प्रथम बार चलाया गया तो इसका गोला चाकसू में जाकर गिरा।
- इस किले में कछवाह शासकों का खजाना रखा हुआ था जिसे 1976 ई. में तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने खुदाई करवा के सारा खजाना दिल्ली पहुंचा दिया था।
- किले में एक राजनैतिक बंदी गृह है। जिसे विजयगढ़ी के नाम से जाना जाता है। जिसमें सवाई जयसिंह ने अपने भाई विजय सिंह (चीमा जी) को यहां गिरफ्तार करके रखा था। जिसके नाम से विजयगढ़ी पडा।
- जयगढ़ किले में प्राचीन राम हरिहर और काल भैरव मन्दिर स्थित है।
बाला किला- अलवर
- बाला किलें का निर्माण आमेर नरेश कोकिलदेव के पुत्र दुल्हेराय ने करवाया था।
- यह निकुंभ क्षत्रियों द्वारा निर्मित है।
- अलावत खां मेवाती ने इस दुर्ग के मुख्य प्रवेश द्वार एवं परकोटे का निर्माण करवाया तथा इनके पुत्र हसन खां मेवाती ने इस किलें का पुनः निर्माण करवाया।
- हसन खां मेवाती खानवा के युद्ध (1527 ई. रूपवास, भरतपुर) में राणा सांगा की ओर से लड़ते हुए वीरगति का प्राप्त हुये और मुगलों ने इस किले पर अपना अधिकार कर लिया। औरंगजेब की मृत्यु के बाद भरतपुर के शासक सूरजमल ने मुगलों से छिनकर अपना अधिकार स्थापित किया तथा सूरजकुण्ड नामक जलाशय का निर्माण करवाया।
शाहबाद किला – बारां
- शाहबाद किलें का निर्माण 1521 ई. में चौहान राजा मुकुटमणी देव ने करवाया था।
- शेरशाह सूरी अपने कांलिजर अभियान पर जाते समय इसे अपने अधिकार में करके इसका नाम अपने पुत्र सलीम पर सलीमाबाद रखा था।
- किलें के अन्दर नवलवान नामक तोप रखी हुई है।
शेरगढ (धौलपुर)-
- यह कुषाण कालीन किला है जिसका निर्माण राजा मालदेव ने करवाया था।
- 1540 ई. में शेरशाह सूरी ने इसका पुनः निर्माण करवाकर इसका नाम शेरगढ़ रखा था।
- यहां हुनहुंकार तोप स्थित है।
- यह राजपूताने का एकमात्र किला है, जो तीन राज्यों की सीमा पर स्थित है।
- इसे दक्खिन का द्वारगढ़ भी कहते है।
शेरगढ़ किला – बारां
- शेरगढ किले का निर्माण 791 ई. में नागवंशीय शासकों ने करवाया था।
- यह किला बारां जिले की अटरू तहसील में परवन नदी के तट पर स्थित है इसे कोशवर्धन का किला भी कहा जाता है।
- 1542 ई. में शेरशाह सूरी ने मालवा अभियान के दौरान इस किले का पुनः निर्माण करवाया था तथा इसका नाम शेरगढ़ रखा।
- मुगल शासक फर्रूखशियर ने इस दुर्ग को कोटा महाराव भीमसिंह को प्रदान कर दिया था यहां कोटा के शासको का दीवान जालिमसिंह झाला ने इस किले का पुनः निर्माण करवा कर यहां झालाओं की हवेली का निर्माण भी करवाया।
- अमीर खां पिंडारी ने अंग्रेजों के खौफ से बचने के लिए अपनी बेगम व अनेक महिलाओं को इसी दुर्ग में आश्रय दिया।
चौमूं का किला-
- यह 1595-97 ई. के दौरान ठाकुर कर्णसिंह द्वारा निर्मित है।
- इसे चौमुंहागढ़, धारधारगढ़ तथा रघुनाथगढ़ आदि नामों से जाना जाता है।
भैंसरोड़ किला – चितौड़गढ़
- यह राजस्थान का एक मात्र किला है जिसका निर्माण व्यापारियों ने करवाया था।
- यह चम्बल व बामनी नदियों के संगम पर बना हुआ है जो जल दुर्ग की श्रेणी में आता है।
- इसे राजस्थान का वैल्लोर कहा जाता है।
बयाना किला (विजयगढ़ का किला)-
- यह एक पार्वत दुर्ग है इसका निर्माण 1040 ई. में यादव राजा विजयपाल ने करवाया था।
- यह दुर्ग वर्तमान में भरतपुर जिले में स्थित है।
- अपनी दुर्भेधता के कारण बयाना दुर्ग को विजयगढ़ भी कहते है।
- इस किले का प्राचीन नाम भादानक था।
- मध्य युग में बयाना क्षेत्र नील के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध था।
- इस किले में प्राचीन विजयस्तम्भ, लोदी मीनार, उषा मस्जिद स्थित है।
डीग का किला –
- 1740 ई. में बदनसिंह द्वारा निर्मित
तिमनगढ़/त्रिभुवनगढ़ किला – बयाना, भरतपुर
- इस किले के अन्दर नणद भोजाई का कुआं व एक विशाल बाजार दर्शनीय स्थल बने हुये है।
कुचामन किला –
- नागौर (जागीरी किलों का सिरमौर)
- कुचामन किलें के बारे में कहा जाता है- ऐसा किला राणी जायी के पास भले हो, ठूकराणी जायी के पास नहीं हो।
अन्य दुर्ग –
नीमराणा किला (पंचमहल) | अलवर |
कांकणवाड़ी किला | अलवर (मिर्जा राजा जयसिंह द्वारा निर्मित) |
फतेहपुर किला | सीकर |
करणसर किला | जयपुर |
बनेड़ा किला | भीलवाड़ा |
मण्ड़रायल किला | करौली (ग्वालियर दुर्ग की कुंजी) |
अचलगढ़, बसन्ती एवं मचान दुर्ग | महाराणा कुंभा द्वारा निर्मित |
अमीरगढ़ दुर्ग | दक्खन की चाबी |
दौसा किला | सूप छाजले की आकृति |
मांड़लगढ़ | भीलवाड़ा |
ऊँटगिर का किला | करौली |
पचेवर का किला | टोंक |
अंसीरगढ़ | टोंक |
बाड़ी का किला | धौलपुर |