Chol Vansh Ka Itihas | Chola Dynasty

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Chol Vansh Ka Itihas

चोल वंश (Chol Vansh)-

  • भारत में स्थानीय स्वशासन का प्रारम्भिक उपयोग चोल प्रशासन में दिखायी देता है।
  • शक्तिशाली नौ सेना का गठन करने वाला प्रथम राजवंश चोल राजवंश कहलाता है।
  • प्रारम्भिक रूप से चोल पल्लवों के सामन्त थे तथा इनके स्थान पर नये राजवंश की स्थापना की।

चोलों का स्थानीय स्वशासन-

  • परान्तक-I के उत्तरमेरूर अभिलेखों से चोल स्थानीय स्वशासन की जानकारी प्राप्त होती है।

स्थानीय स्वशासन की ईकाईयाँ-

  • राज्य- देश
  • मण्डलम्- प्रान्त
  • कोट्टम (वलनाडु)- जिला
  • नाडु- तहसील
  • कुर्रम- ग्राम समूह
  • ग्राम- गाँव

प्रमुख शासक-

  • विजयालय (850 ई.-871 ई.)- चोल वंश का संस्थापक (Chol Vansh Ka Sansthapak) जो पल्लवों का सामन्त था।
  • आदित्य-I (871 ई.-907 ई.)- इसने पल्लवों को पूर्णतया पराजित करके स्वतंत्र साम्राज्य की स्थापना की। इसे चोल साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक माना जाता है।
  • परान्तक-I (907 ई.-953 ई.)- परान्तक-I के उत्तरमेरूय अभिलेखों से चोल स्थानीय स्वशासन की जानकारी प्राप्त होती है।
    • परान्तक-I ने वेल्लूर के युद्ध में पाण्डेय शासक को पराजित करके मदुरैकोण्ड की उपाधि धारण की।
नोट- पाण्ड्य राज्य की राजधानी मुदरै थी।
  • उत्तमचोल- चोल साम्राज्य में सोने के सिक्के चलाने वाला प्रथम शासक उत्तमचोल था।
  • राजराजा- (985 ई.-1014ई.)- राजराजा-प् ने तंजौर में (तंजावुर) प्रसिद्ध राजराजेश्वर या वृहदेश्वर मन्दिर बनवाया।
    • यह दक्षिण भारत का सबसे बड़ा मन्दिर है।
    • राजराजा-I ने मण्डलूर के युद्ध में चेर शासक को पराजित किया। तथा माण्डलूरशालैकमरूत की उपाधि धारण की।
    • राजराजा-I ने श्रीलंका के शासक को हराकर उत्तरी श्रीलंका को छीन लिया तथा उसे चोल साम्राज्य का एक प्रान्त बनाया। इसका नाम मुम्डिचोलमण्डलम् रखा।
  • राजेन्द्र प्रथम (1014 ई.-1044 ई.)- चोल साम्राज्य का सबसे प्रतापी शासक जिसने उत्तरी भारत में पाल वंश के शासक महिपाल को पराजित करके गंगा तक के क्षेत्र को जीता। तथा गंगैकोण्डचोल की उपाधि धारण की। इसने गंगैकोण्ड चोलपुरम् नामक नगर बसाया।
    • इसने भारत के पूर्व में 12 द्वीपों पर विजय प्राप्त की।
    • इसने सम्पूर्ण श्रीलंका पर अधिकार कर लिया।

चोल प्रशासन के तीन भाग-

  1. उर- जनसामान्य की संस्था। (जैसे- ग्रामसभा)
  2. सभा/महासभा- अग्रहार प्राप्त ब्राह्मणों की संस्था
  3. नगरम्- व्यापारियों की संगठित संस्था।
नोट- चोल काल में शासन संचालन में कुछ समितियाँ भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती थी जिन्हें वारियम् कहा जाता था।

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