भारत की जलवायु NCERT
- भारत की जलवायु- उष्ण कटिबन्धीय मानसूनी जलवायु है।
- मानसून शब्द अरबी भाषा के मोसिम शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ है- मौसम। अर्थात मानसून का अभिप्राय ऋतु अनुसार पवन की दिशा का बदल जाना या उत्क्रमण हो जाना है।

- अक्षांश- भारत दक्षिणी भाग उष्ण कटिबन्ध जबकि उत्तरी भाग शीतोष्ण कटिबन्ध में आता हैं
- हिमालय की स्थिति- हिमालय पर्वत उत्तर धु्रव से आने वाली (साइबेरिया) ठण्डी पवनों को भारत में आने से रोकता है। तथा मानसूनी पवनों को रोककर भारत मे वर्षा करता हैं अतः उत्तरी भारत शीतोष्ण कटिबन्ध में होने के बाद भी उपोष्ण जलवायु का विकास हुआ है।
- समुद्र तल से ऊँचाई- क्षोभमण्डल में प्रति 165 मीटर की ऊँचाई पर 1ह्ब् की दर से तापमान घटता जाता है। जिसे सामान्य ताप पतन दर कहते है। अतः समुद्र तल पर सर्वाधिक तापमान जबकि ऊँचे पर्वतीय भागों पर सबसे कम तापमान पाया जाता है। जैसे- आगरा व दार्जिलिंग दोनो एक ही अक्षांश पर होने के बाद भी शीत ऋतु में आगरा का तापमान 16ह्ब् जबकि दार्जिलिंग का तापमान 4ह्ब् होता है।
- समुद्री से दूरी- दक्षिणी भारत तीन और से समुद्र से घिरा हुआ है जिसके कारण सम जलवायु का विकास हुआ है। जैसे- मुम्बई, तिरूवन्तपुरम्, चेन्नई, कोलकत्ता, विशाखापट्टनम आदि। जबकि उत्तरी भारत समुद्र से दूर होने के कारण विषम जलवायु का विकास हुआ है। जैसे- कानपुर, लखनऊ, जालन्धर, अमृतसर, अबांला, दिल्ली, जयपुर, इलाहाबाद, पटना।
- उच्चावच- भारत में सर्वाधिक पर्वतीय वर्षा होती है। जो एक उच्चावच का स्वरूप है। जैसे- मुम्बई व न्यूमैंगलोर में अधिक वर्षा होना जबकि पश्चिमी घाट का वृष्टि छाया प्रदेश जिसमें पूर्ण व बैंगलोर में कम वर्षा होना है। तथा इसी प्रकार बंगाल की खाड़ी की शाखा राजस्थान के पूर्वी भाग में वर्षा करती है। जबकि पश्चिमी भाग वृष्टि दाया प्रदेश में आता है।
वायुदाब एवं पवन दशाऐं-
- जेट स्ट्रीम- ऊपरी क्षोभमण्डल में (9-13 किमी. की ऊँचाई) पश्चिम से पूर्व की ओर तीव्र गति से चलने वाली लहरदार पवनों को जेट स्ट्रीम कहते है। जिनकी औसत गति शीत ऋतु में 184 किमी/घंटा जबकि ग्रीष्म ऋतु में 100 किमी./घंटा होती है। अर्थात शीत ऋतु में अधिक ग्रीष्म ऋतु में कम होती है। ये पवन मावठ कराने में सहायक है।
- ITCZ (अन्तः उष्ण कटिबन्धीय अभिसरण क्षेत्र)- यह निम्न वायुदाब की पेटी है। जो सूर्य की आभासी गति के साथ गति करती हैं अर्थात सूर्य की लम्बवत किरणें जहाँ पडती हैं ITCZ की पेटी वही स्थापित होती है।
ऋतु अनुसार भारत में मानसून क्रियाविधि-
शीत ऋतु-
- पश्चिमी विक्षोभ/भूमध्य सागरीय चक्रवात/शीतोष्ण चक्रवात
- शीत ऋतु में पश्चिमी विक्षोभ भूमध्य सागर से आर्द्रता ग्रहण कर तुर्की, ईरान, अफगानिस्तान एवं पाकिस्तान होते हुए उत्तरी पश्चिमी भारत में हल्की वर्षा करते है।
- राजस्थान में इसे मावठ कहते है। इसी समय रबी की फसल होने के कारण (गेहूँ, जौ, चना व सरसों) फसलों के लिए लाभदायक होती है। अतः इन्हे गोल्डन ड्राप्स (सुनहरी बूंदे) कहते है। पश्चिमी विक्षोभ को भारत की ओर लाने में पछुआ जैट स्ट्रीम, सहायक है। (पश्चिमी जैट विक्षोभ)
- आर्द्रता का मूल स्त्रोत भूमध्य सागर है तथा रास्ते में कैस्पियन सागर व फारस की खाड़ी से आर्द्रता में पुनः वृद्धि/संवृद्धि करते है।
- उत्तरी पश्चिमी भारत- जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड, पंजाब, हरियाणा, चण्डीगढ़, दिल्ली, राजस्थान, पश्चिमी मध्यप्रदेश व पश्चिमी उत्तरप्रदेश है। (पश्चिम विक्षोभ से वर्षा होती है।)
- शीकालीन मानसून / लौटता मानसून / रिटनिंग मानसून / उत्तर पूर्वी मानसून- शीत ऋतु में सूर्य मकर रेखा पर चमकता है। जिसके प्रभाव से भारत में स्थल से जल की ओर पवने चलना प्रारम्भ होती है। जो कोरियोलिस बल के प्रभाव से उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम की ओर चलती है। तथा बंगाल की खाड़ी से आर्द्रता ग्रहण करते हुए कोरोमण्डल, तट पर वर्षा करती है। (दक्षिण आन्ध्रप्रदेश व तमिलनाडु का तटीय भाग)
ग्रीष्म ऋतु- (मार्च से मध्य जून तक)
- लू- भारतीय मरूस्थल (थार का मरूस्थल) एवं उत्तरी मैदानी भाग में ग्रीष्म ऋतु में चलने वाली गर्म, शुष्क एवं धुलभरी पवनें चलती है जिन्हंे लू कहते है।
- काल बैसाखी- (नार्वेस्टर)- ग्रीष्म ऋतु में (बैसाख माह) जब गर्भ पवनें छोटा नागपुर के पठारी भाग पर पहुंचती है तो बंगाल की खाड़ी के प्रभाव से आर्द्रता में वृद्धि होने से चक्रवाती तूफान के रूप में वर्षा होती है। जिसे पश्चिम बंगाल के रूप में काल बैसाखी तथा असम में बारदोली छीडा कहते है।
- इस तूफानी वर्षा से चावल, जूट व चाय की खेती को लाभ होता है। अतः असम में इसे टी शावर (चाय की वर्षा) भी कहते है।
- आम्र वर्षा (मैंगो शावर)- दक्षिणी भारत में (कर्नाटक व केरल) मानसून पूर्व की हल्की वर्षा (प्री मानसून) से आम की फसल शीघ्र पक जाती है। जिसे आम्र वर्षा कहा जाता है।
- फूलों की बौछार (चेरी ब्लोशम)- दक्षिणी भारत में (कर्नाटक व केरल) प्री मानसून वर्षा से कहवे के पौधों में (काॅफी) तेजी से फूल आने लगत है। जिन्हे फूलों की बौछार कहते है।
- महाराष्ट्र में प्री मानसून वर्षा को कपास की वर्षा कहते है।
वर्षा ऋतु- (मध्य जून से सितम्बर तक)
- 25 मई को- मानसून की सर्वप्रथम वर्षा अण्डमान-निकोबार द्वीप समूह में वर्षा प्रारम्भ होती है।
- 1 जनू को- केरल तट पर अचानक तेज गर्जना के साथ (मालावार तट) पर भारी वर्षा प्रारम्भ होती है। जिसे भारत में मानसून का आगमन कहा जाता है।
- 10 जून को- मानसून मुम्बई व कोलकत्ता पहुंच जाता है।
- 15 जुलाई- सम्पूर्ण भारत में मानसून पहुंच जाता है। (पश्चिम राजस्थान- जैसलमेर जिला)
- सितम्बर के प्रथम सप्ताह में- मानसून पश्चिम से (जैसलमेर) मानसून वापिस लौटना प्रारम्भ होता है।
- जून, जुलाई माह में (निम्न वायुदाब की पेटी) 20-20, उत्तर अक्षांशों के पास स्थापित हो जाती है। जिसके कारण दक्षिणी गौलार्द्ध की व्यापारिक पवनें विषुवत् रेखा को पार करते हुए कारिओलिस बल के अनुसार दांयी की ओर मुडते हुए दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व की ओर चलने लगती है। इन्हें ही भारत में मानसून आगमन या दक्षिण-पश्चिम मानसून के नाम से जाना जाता है।
- दक्षिण-पश्चिम मानसून की दो शाखाऐं है-
- अरब सागर की मानसून शाखा- यह पश्चिमी घाट से टकराकर भारी वर्षा करती है जबकि पूर्व की ओर बढते हुए वर्षा की मात्रा घटती जाती है। तथा वृष्टिछाया प्रदेश की स्थिति होने से कोरोमण्डल तट शुष्क रहता है।
- बंगाल की खाड़ी की मानसून शाखा- यह शाखा अराका योमा पर्वत से टकराकर, भारत की तरफ मुडती है जो मेघालय में वर्षा करते हुए मध्य भारत एवं उत्तरी भारत में हिमालय के साथ-साथ पश्चिम की ओर वर्षा की मात्रा घटती जाती है। ये दोनो शाखाऐं पंजाब में मिलती है तथा हिमाचल प्रदेश में (धर्मशाला) संयुक्त रूप से वर्षा करती है।अरबसागर की शाखा अरावली श्रेणी के समांनान्तर जाने के कारण राजस्थान में क्रम वर्षा कर पाती है।
भारत में वर्षा की विशेषताऐं-
- भारत की औसत वार्षिक वर्षा- 1250mm/125cm
- भारत में मानसून आगमन अनियमित व अनिश्चित है।
- दक्षिणी भारत में वर्षा ऋतु में पश्चिम से पूर्व की ओर वर्षा की मात्रा घटती जाती है।
- मध्य व उत्तरी भारत में वर्षा ऋतु में पूर्व से पश्चिमी की ओर वर्षा की मात्रा घटती जाती है।
भारत में कुल वर्षा का वितरण निम्न है-
- दक्षिण-पश्चिम मानसून वर्षा (मानसून आगमन) = 75%
- उत्तरी पूर्वी मानसून (लौटता मानसून) = 12%
- मानसून पूर्व/प्री मानसून = 10%
- पश्चिमी विक्षोभ व अन्य = 3%
- अलनीनो- यह स्पेनिश भाषा का शब्द है जिसका अर्थ- बालक ईसा/क्राइस्ट शिशु अर्थात ईसा मसीह के जन्मदिवस (25 दिसम्बर माह) के आस-पास पेरू तट हम्बोल्ट/पेरू की ठण्डी जलधारा अचानक गर्म हो जाती है। जिससे भारतीय मानसूनी पवनों की गति कमजोर पड़ जाती है। जिसके फलस्वरूप भारतीय मानसून विलम्ब से आता है तथा सामान्य से कमजोर होता है।
- अलनीनो की घटना 5 से 10 वर्षो में घटित होती है।
- जैसे- भारत में सर्वाधिक प्रभाव 1990-91 ई. में रहा व 2000 ई., 2004 में, 2009 व 2015 में (मानसून 4 जून को आया) आंशिक प्रभाव रहा।
- ला-नीनो- जब पेरू की ठण्डी जलधारा का तापमान सामान्य से 4oC से 10oC कम हो जाए तो उच्च वायुदाब को अधिक विकास होगा। जिससे भारत की ओर आने वाली मानसूनी पवनों की गति तीव्र हो जाती है, तथा भारतीय मानसून सामान्य से अच्छा रहता है। 2016 में ला-नीनो सक्रिय था।
- मानसून प्रत्यावर्तन की ऋतु- (अक्टूबर-नवम्बर माह)
- मध्य अक्टूबर तक उत्तरी भारत से मानसून लौट चुका होता है लेकिन भूमि में आर्द्रता अधिक होने तथा दिन के समय तेज धूप के प्रभाव से दिन का मौसम कष्टदायी होता है जिसे कार्तिक माह की उमस (क्वार की उमस) कहते है। जबकि रात का मौसम अच्छा (सुहावना) होता है।