वायुमंडल का संघटक-
नाइट्रोजन 78%, ऑक्सीजन 21%, आर्गन 0.93%, कार्बन डाइऑक्साइड 0.03%, अन्य सभी 0.04%
- क्षोभमण्डल- वायुमंडल की सबसेस निचली परत है। यह परत सबसे सघन है। इस परत की ऊँचाई धु्रवों पर 8 किमी. तथा भूमध्य रेखा 19 किमी. है। इस परत की औसत ऊँचाई 13 किमी. है। इस मंडल का समस्त वायु भार का 75 प्रतिशत भाग आ जाता है। मौसम संबंधी सभी घटनाएं इसी मंडल में होती है। जैसे बादलों का निर्माण, तूफान, चक्रवात आदि।
- समताप मंडल- यह परत बादलों एवं मौसम संबंधी घटनाओं से लगभग मुक्त होती है। इसी कारण इस मंडल में वायुयान उड़ान के लिए आदर्श दशाएं पाई जाती है। इसमें 20 से 35 किमी. की ऊँचाई पर ओजोन गैस की सघनता पाई जाती है। ओजोन परत द्वारा सूर्य से आने वाली हानिकारक पराबैंगनी किरणों का अवशोषण करके पृथ्वी पर आने से रोकती है।
- मध्यमंडल- 50 से 80 किमी. तक पाई जाती है। इसका न्यूनतक तापमान 100ह्ब् पाया जाता है।
- आयन मंडल- 80 से 400 किमी. तक है आयनमंडल का विस्तार होता है। तापमान तेजी से बढ़ती जाता मंडल की हवा विद्युत आवेशित होती है। पृथ्वी से प्रेषित रेडियो तरंगे इसी मंडल से परावर्तित होकर पुनः पृथ्वी पर वापस लौट आती है।
- बहिर्मंडल- यह वायुमंडल की सबसे ऊपरी परत है। इसमें हल्की गैंस हीलियम और हाइड्रोजन गैस पाई जाती है। मानव निर्मित उपग्रह इसी मंडल में स्थापित किए जाते है।
वायुमंडल के संघटन
वायुमंडल अनेक गैसों का मिश्रण है जिसमें ठोस और तरल पदार्थो के कण असमान मात्राओं में तैरते रहते है। नाइट्रोजन सर्वाधिक मात्रा में है। उसके बाद क्रमशः ऑक्सीजन, ऑर्गन, कार्बन-डाई-ऑक्साइड, नियॉन, हीलियम, ओजोन व हाइड्रोजन आदि गैसाों का स्थान आता है। इसके अलावा जलवाष्प, धूल के कण तथा अन्य अशुद्धियां भी असमान मात्र में वायुमण्डल में मौजूद रहती है। संसार की मौसमी दशाओं के लिए जलवाष्प, धूल के कण तथा ओजोन अत्यधिक महत्वपूर्ण है। विभिन्न गैसों की 99% भाग मात्र 32 किमी. की ऊँचाई तक सीमित है जबकि धूलकणों व जलवाष्प का 90% भाग अधिकतम 10 किमी. की ऊँचाई तक ही मिलता है।

- नाइट्रोजन (78%)- यह वायुमंडलीय गैसों का सर्वप्रमुख भाग है। लेग्यूमिनस पौधे वायुमंडलीय नाइट्रोजनी पोषक तत्वों की पूर्ति करते है।
- ऑक्सीजन (21%)- यह मनुष्यों व जन्तुओं के लिए प्राणदायिनी गैस है। पेड़-पौधे प्रकाश संश्लेषण क्रिया के द्वारा इसे वायुमंडल में छोड़ते है।
- ओजोन परत के अवश्रय के कारण एक छिद्र बन गया है वह छिद्र कहां स्थित है- अंटार्कटिका के ऊपर
- डोलड्रम पेटी का विस्तार कितना होता है- 5o उत्तर – 5o दक्षिण
- वायुमण्डल में कौनसी अक्रिय गैस सबसे अधिक है- आर्गन
- सामान्य वायु दाब कहां पाया जाता है- सागर तल पर
- वायुमण्डल में सबसे अधिक गैस- नाइट्रोजन
- क्षोभमण्डल की धरातल से औसत ऊँचाई कितनी है- 12 से 14 किमी.
- शांत पेटी किस रेखा के दोनो और पाई जाती है- भूमध्य रेखा
- वायुमण्डल मुख्यतः नाइट्रोजन व ऑक्सीजन गैसों से मिलकर बना है।
- वायु व पवन- वायुदाब की पेटियां दो प्रकार की होती है- 1. ताप जनित 2. गति जनित।
वायु व पवन- वायुदाब की पेटियां दो प्रकार की होती है-
- ताप जनित
- गति जनित
तापजनित पेटियाँ-
- भूमध्य रेखीय (विषुवत रेखा) निम्न वायुदाब की पेटी भूमध्य रेखा से 5o उत्तरी अक्षांश व 5o दक्षिणी अक्षांश तक यह पेटी पाई जाती है इसे डोलड्रम/शांत पेटी भी कहते है। यह पेटी अत्याधिक ताप के कारण बनती है।
- धु्रवीय उच्च वायुदाब की पेटी- दोनो ध्रुवों पर तापमान न्यून होने के कारण ध्रुवीय उच्च वायुदाब पेटी बनती है।
गति जनित पेटियाँ-
- उपोषण उच्च वायुदाब पेटी- दोनों गोलार्द्धो में 30o से 35o के मध्य उपोषण उच्च वायुदाब पेटी बनती है। पृथ्वी की घूर्णन गति के कारण विषुवत रेखा से उठी पवनों इसी भाग में आकर नीचे उतरती है। इस पेटी की अश्व अक्षांश भी कहते है।
- उपधु्रवीय निम्न वायुदाब की पेटियाँ- यह पेटी दोनों गोलार्द्धो में 60o से 65o के मध्य पाई जाती है। पृथ्वी की घूर्णन गति के कारण इस पेटी से हवाएं विक्षेपित हो जाती है। जिससे इस पेटी में निम्न वायुदाब रहता है।
- कॉरिआलिस बल/फेरल का नियम- उत्तरी गोलार्द्ध में पवनें दाहिनी ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में पवनें बायी ओर मुड़ जाती है।
पवनें-
- सनातनी/ग्रहीय/स्थायी/प्रचलित पवन- पृथ्वी पर विस्तृत क्षेत्र पर एक ही दिशा में वर्ष भर चलने वाली पवन को सनातनी पवन कहते है।
- उदाहरण- 1. व्यापारिक पवन 2. पछुआ पवन 3. धु्रवीय पवन।
- वायापारिक पवन- 30o अक्षांशों से 0o अक्षांशों की ओर चलने वाली पवन व्यापारिक पवन कहलाती है।
- पछुआ पवन- 35o से 60o अक्षांशों की ओर चलने वाली पवन को पछुआ पवन कहते है।
- धु्रवीय पवन- धु्रवों से 65o अक्षांश की ओर चलने वाली पवन को धु्रवीय पवन कहते है।
- उदाहरण- 1. व्यापारिक पवन 2. पछुआ पवन 3. धु्रवीय पवन।
- सामयिक (मौसमी पवनें)- ये पवने समय के अनुसार अपनी दिशा में परिवर्तन कर लेती है। जैसे भारत में मानसूरी पवनें। दिशा में परिवर्तन कर लेती है। जैसे- भारत में मानसूनी पवनें।
- स्थानीय पवनें- ये पवनें किसी छोटे क्षेत्र में किसी समय विशेष पर चलती है। जैसे भारत के उत्तरी क्षेत्र की गर्म एवं शुष्क स्थानीय पवन जो ग्रीष्मकाल में चलती है जिसे लू कहते है।